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Showing posts from August, 2020

भगवान परशुराम की कथा| रोमांच की दुनिया। पौराणिक कथा। हिंदू धर्म। (Story of Bhagwan Parashuram)। Romanch Ki Duniya | Mythology | Hindu Dharma

भगवान परशुराम की कथा महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु नाम की एक गाय थी जो सभी वैभवों से युक्त सभी इच्छाएं पूर्ण करती थी। उस समय हैहयवंश मे कृतवीर्य का पुत्र कार्तवीर्य अर्जुन सिंहासन पर आरुढ़ था। उसने दत्तात्रेय जी से वरदान मे सहस्त्रहाथ प्राप्त किए थे। वह परमप्रतापी क्षत्रिय शक्ति के मद मे मतवाला हो गया था। अनेक नगरों को जीतकर उसने अपने साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक कर लिया था और अब सुखपूर्वक शासन कर रहा था।  एक समय सहस्त्रार्जुन वन मे शिकार करता थक गया तो पास ही महर्षि जमदग्नि के आश्रम मे उसने शरण ली। महर्षि ने राजा, उसके मंत्रियों, अनुचरों, अंगरक्षकों तथा सेना का कामधेनु गाय के प्रताप से खूब स्वागत-सत्कार किया। अर्जुन ने इस गाय को देखकर इसे लेना चाहा और अपने सैनिकों को गाय छीन लेने का आदेश दिया। महर्षि तथा उनकी पत्नी के अत्यधिक आग्रह के बाद भी अर्जुन का अहंकार कम ना हुआ और वह गाय लेकर चल दिया। भगवान परशुराम उस समय आश्रम पर नहीं थे। जब वे आए और उन्हें पता चला तो सहस्त्रार्जुन पर बहुत अधिक क्रोध आया और उन्होनें उसी समय सहस्त्रार्जुन की राजधानी माहिष्मती पर धावा बोल दिया। माहिष्मती के द्व

भगवान राम के 108 नाम। रोमांच की दुनिया। हिंदू धर्म। (108 names of Bhagwan Ram)| Romanch Ki Duniya | Hindu Dharma

भगवान राम के 108 नाम पद्मपुराण के उत्तरखंड मे भगवान शिव ने माता पार्वती को भगवान राम के 108 नाम बताए। उनके सभी नाम अर्थ सहित दिए जा रहे हैं। 1. श्रीराम- जिनमें योगीजन रमण करते हैं, ऐसे सच्चिदानंदघनस्वरूप श्री राम अथवा सीता-सहित राम। 2. रामचंद्र- चंद्रमा के समान आनंददायी एवं मनोहर राम। 3. रामभद्र- कल्याणमय राम 4. शाश्वत- सनातन भगवान। 5. राजीवलोचन- कमलसमान नेत्रों वाले  6. श्रीमान राजेंद्र- श्री सम्पन्न राजाओं के राजा, चक्रवर्ती सम्राट 7. रघुपुङ्गव- रघुकुल मे सर्वश्रेष्ठ 8. जानकीवल्लभ- जनककिशोरी सीता के प्रियतम 9. जैत्र- विजयशील 10. जितामित्र- शत्रुओं को जीतने वाले 11. जनार्दन- सम्पूर्ण मनुष्योंद्वारा याचना करने योग्य 12. विश्वामित्रप्रिय- विश्वामित्र के प्रियतम 13. दांत- जितेन्द्रिय 14. शरण्यत्राणतत्पर- शरणागतों की रक्षा मे संलग्न 15. बालिप्रमथन- बालि वानर को मारने वाला 16. वाग्मी- अच्छे वक्ता 17. सत्यवाक- सत्यवादी 18. सत्यविक्रम- सत्य पराक्रमी 19. सत्यव्रत- सत्य का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाला 20. व्रतफल- सम्पूर्ण व्रतों के प्राप्त होने योग्य फलस्वरूप 21. सदा हनुमदाश्रय- सदैव हनुमान जी क

भगवान विष्णु के दस अवतार | रोमांच की दुनिया । {ten avatar(incarnation) of Bhagwan Vishnu} Mythology | Romanch Ki Duniya |

भगवान विष्णु के दस अवतार पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के कुल दस अवतार हैं जिन्हें वे समय-समय पर दुष्टों के विनाश तथा सत्पुरुषों की रक्षा के लिए लेते हैं। स्वयं भगवान ने गीता के चौथे अध्याय के आठवें श्लोक मे कहा है- परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्क्रताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥  सत्पुरुषों की रक्षा के लिए तथा दुष्टों के विनाश के लिए, धर्म की स्थापना के लिए मै युग-युग मे अवतार लेता हूं। पुराणों मे भगवान के अवतारों का जो क्रम दिया गया है उसे हम यहां दे रहे हैं। 1. मत्स्य अवतार 2. कूर्म अवतार 3. वराह अवतार 4. नरसिंह अवतार 5. वामन अवतार 6. परशुराम अवतार 7. राम अवतार 8. कृष्ण अवतार 9. बुद्ध अवतार 10. कल्कि अवतार सभी अवतारों की पौराणिक कथाएं 1. मत्स्य अवतार प्रलय काल के समय भगवान विष्णु एक मत्स्य का रूप रखकर वैवस्वत मनु के पास गए और भगवान के कहे अनुसार मनु सभी जीवों के एक‌‌‌‌-एक जोड़े को लेकर एक बड़ी नाव पर तब तक रहे जब तक प्रलयकाल समाप्त नहीं हो गया। 2. कूर्म अवतार समुद्र मंथन के समय जब मंदराचल पर्वत को क्षीरसागर मे उतारा गया तब वह डूबने लगा। उसे साधने के लिए भगवान ने

भगवान परशुराम का जन्म| रोमांच की दुनिया। पौराणिक कथा। हिंदू धर्म। (Birth of Bhagwan Parashuram)| Romanch Ki Duniya | Mythology | Hindu Dharma

भगवान परशुराम की जन्म पुरुरवा और उर्वशी के पुत्रों के वंश मे कुशिक-वंशीय महाराजा गाधि हुए जिनकी पुत्री सत्यवती महर्षि ऋचीक को पसंद आ गई और उन्होनेंं उसका विवाह कराने के लिए गाधि से कहा। महाराजा गाधि महर्षि ऋचीक से विवाह नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होनें महर्षि से ऐसे एक हज़ार घोड़ों को लाने की शर्त रख दी जो पूरी तरह से श्वेत हों किंतु उनके एक-एक कान श्याम हों। महर्षि ऋचीक वरुण से एक हज़ार ऐसे ही घोड़े ले आए और तब महाराजा गाधि ने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि से कर दिया। काफी समय बाद सत्यवती और उसकी मां दोनों ने पुत्र चाहा जिसके लिए महर्षि ऋचीक ने अलग-अलग मंत्रों से दोनों के लिए चरु पकाया और स्नान करने चले गए। सत्यवती की मां ने यह सोचकर कि ऋचीक ने अपनी पत्नी के लिए अधिक उत्तम मंत्र उपयोग किया होगा, सत्यवती का चरु ग्रहण कर गई और सत्यवती ने अपनी मां का चरु ग्रहण कर लिया। जब महर्षि वापस आए और उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी ने वह चरु पी लिया जो उनकी सास को पीना चाहिए था तो वे बहुत दुखी हुए। कारण यह था कि महर्षि ऋचीक ब्राह्मण थे अतः उनका पुत्र ब्राह्मण होना चाहिए जो शांत, सत्कर्म करने वाला होना चाहि

मत्स्य अवतार की कथा (Story of Matsya Avatar) Mythology

मत्स्य अवतार की कथा अग्निपुराण के द्वितीय अध्याय मे वर्णित कथा के अनुसार एक समय वैवस्वत मनु कृतमाला नदी मे जल से पितरों को तर्पण कर रहे थे कि उसी समय उनके हाथ मे एक छोटी सी मछली(मत्स्य) आ गई। राजा ने उसे वापस नदी मे फेंक देने का विचार किया कि मछली बोल पड़ी कि हे महराज! मुझे जल मे न फेंकिए क्योंकि मुझे यहां के ग्राह आदि जलीय जंतुओं से भय है। राजा ने उसके ऊपर दया करके उसे कलश मे डाल लिया किंतु कलश मे पड़ते ही उसका आकार कलश से भी बड़ा होने लगा। उसने राजा से किसी बड़े पात्र मे डालने की विनती की तो राजा ने उसे एक नांंद में डाल दिया। कुछ समय पश्चात मत्स्य का आकार नांद से भी बड़ा होने लगा तो उसने पुनः विनती की तो राजा ने उसे सरोवर मे डाल दिया किंतु वहां भी उसका आकार बढ़ गया तो राजा ने उसे समुद्र मे डाल दिया। इतने समय मे मनु यह जान चुके थे कि यह कोई साधारण मत्स्य नहीं है वरन कोई अलौकिक चीज है। जब मत्स्य को समुद्र मे डाला गया तो वह एक लाख योजन बड़ा हो गया तब राजा ने उसके हाथ जोड़े और बोले कि निश्चय ही आप भगवान नारायण हैं और अपनी लीला कर रहें हैं। मत्स्यरूपी भगवान ने उत्तर दिया कि हे राजन मैंने दुष्टों

राम रामेति रामेति रमे श्लोक (Ram Rameti Rameti Rame) Shlok

राम रामेति रामेति रमे श्लोक भगवान शंकर और भगवान नारायण दोनों ही एक दूसरे को सदैव पूजते रहते हैं और इसी तरह शैव और वैष्णव पंथ एक दूसरे के लिए सदैव पूरक रहे हैं। एक समय भगवान शंकर ने माता पार्वती को विष्णु सहस्त्रनाम जप का सुझाव दिया। देवी आदिभवानी माता पार्वती ने उसी दिन से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ प्रारम्भ कर दिया। महादेव इस बात से अत्यंत प्रसन्न रहने लगे। एक दिन भगवान शिव ने माता को भोजन साथ करने का आमंत्रण दिया किंतु माता ने कहा कि उनको अभी विष्णु सहस्त्रनाम का जप करना है। इस पर देवाधिदेव बहुत प्रसन्न हुए किंतु उस समय उनको अत्यंत भूख लगी थी इसलिए उन्होने कहा- पार्वती! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो क्योंकि भगवान विष्णु मे तुम्हारी भक्ति है किंतु मै तो भगवान राम का नाम लेकर ही विष्णु सहस्त्रनाम का फल प्राप्त कर लेता हूं अतः तुम भी अभी भगवान राम का नाम लो। तब भगवान शिव ने उन्हें राम मंत्र बताया- राम रामेति रामेति रमे रामे मनो रमे। सहस्त्रनाम तततुल्यं राम नाम वरानने॥ तब देवी माता पार्वती ने इस मंत्र का जप किया और फिर माता ने देवाधिदेव के साथ भोजन किया। भोजन करने के पश्चात माता पार्वती ने उत

विलासिता से दूर: प्रेरणादायक श्लोक | रोमांच । away from lust | (Inspiring Shloks) Mythology | the romanch

किं विद्यया किं तपसा किं त्यागेन नयेन वा।  किं विविक्तेन मनसा स्त्रीभिर्यस्य मनो हृतम्॥ जिसका मन स्त्रियों ने हर लिया उसे अपनी विद्या, तपस्या, त्याग, नीति तथा विवेकशील चित्त से क्या लाभ हुआ।  what did he gain from his knowledge, austerity, sacrifice, policy and rational mind whose mind is lost by women. पद्म पुराण के पाताल खंड के वैसाख‌‌‌-महात्म्य प्रसंग मे राजा महीरथ की कथा मे यह श्लोक वर्णित है। कथा क्या है पहले यह जान लेते हैं। बहुत समय पहले की बात है महीरथ नाम के एक बड़े राजा थे। एक बड़े सपन्न राज्य के राजा होने पर भी राजा अपने कर्तव्यों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे। उनके राज्य का सारा कार्य उनके मंत्री के हाथों मे था। धर्म और अर्थ दोनों से दूर राजा कामिनियों की क्रीड़ा मे लगा रहता था। इसी तरह उसने एक लम्बा समय बिता दिया। राजा के एक विद्वान पुरोहित थे नाम था कश्यप। जब उन्होने देखा कि राजा कर्तव्यच्युत होकर राजपाट छोड़कर केवल विलास की जिंदगी जी रहा है, तब इस बात से दुखी होकर वे राजा के पास पहुंचे और बोले कि हे राजन आपके राज्य मे अब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र कोई भी सुरक्षित

सभी ज्योतिर्लिंगो की कथा (बारह ज्योतिर्लिंग) Twelve Jyotirlingam

ज्योतिर्लिंग अधर्म व बुराई के संंहारक, भक्तों के प्रिय, त्रिपुरारी, शम्भू, देवेश्वर, महादेव भगवान श्री शिवशंकर भोलेनाथ इस सृष्टि के सम्पूर्ण सनातन स्वामी हैं। जिनके नाम से कायर व्यक्ति भी बलवान हो जाता है, भक्त प्रेम मे डूब जाता है, दुष्ट कांपने लगते हैं, जो किसी से द्वेष नहीं करते, सभी पंथों के चराचर स्वामी, सर्वप्रिय भगवान महादेव के असंख्य मंदिर इस जगत मे स्थापित हैं। हर गांव, शहर कस्बे आदि मे जिनकी सर्वत्र पूजा होती है आज हम उनके प्रमुख बारह मंदिरों की चर्चा करेंगे। बचपन से ही हम 'ज्योतिर्लिंग' शब्द से परिचित होते रहते हैं। भगवान शिव के असंख्य मंदिरों, अनंत शिवलिंगों मे ज्योतिर्लिंगों का बहुत अधिक महत्व है। ज्योतिर्लिंग संख्या मे बारह हैं जो भारत के अलग-अलग हिस्सों मे स्थित हैं। ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति एक समय जब भगवान नारायण और भगवान ब्रह्मा बड़ा कौन है इस बात पर विवाद कर बैठे तब भगवान शिव ने एक अनादि-अनंत शिवलिंग उनके सामने रख दिया और भगवान नारायण और भगवान ब्रह्मा से क्रमशः शिवलिंग का अंत एवं आदि खोजने के लिए कहा। जो भी पहले लौट के आएगा वही बड़ा होगा। दोनों लोग अपनी दिशा मे

घुश्मेश्वर शिवलिंग की कथा (Story of Ghrishneshwar Shivlingam) Mythology

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग  महाराष्ट्र के दौलताबाद से कुछ दूरी पर स्थित वेरुलगांव मे भगवान भोलेनाथ का अंतिम ज्योतिर्लिंग स्थित है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। घुश्मेश्वर शिवलिंग की कथा दक्षिण मे देवगिरि पर्वत के निकट भरद्वाज वंश मे सुधर्मा नामक ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण रहते थे। वे अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहते थे। बाकी सभी सुख थे किंतु सुदेहा के कोई पुत्र नहीं था। जब बहुत समय तक सुदेहा को पुत्र प्राप्त नही हुआ तो उसने सुधर्मा से अपनी बहन घुश्मा से विवाह करने का आग्रह किया। प्रारम्भ मे तो सुधर्मा ने यह कहकर इंकार कर दिया कि दो बहनों का प्रेम बाद मे जलन मे बदल जाएगा किंतु सुदेहा के बार बार कहने पर वे विवाह के लिए तैयार हो गए। घुश्मा भगवान शिव की अनन्य सेविका थी। विवाह के पश्चात उसने सुधर्मा और बड़ी बहन सुदेहा की खूब सेवा की, दासी की तरह रही। प्रतिदिन वह एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाती और उनकी पूजा करती। समय बीतता गया। घुश्मा को पुत्र हुआ और उसके बाद घुश्मा का मान बढ़ा। इसके साथ ही सुदेहा के मन मे डाह उत्पन्न हुआ।  बचपन बीतने पर पुत्र का विवाह हुआ और पुत्रवधू

रामेश्वरम शिवलिंग की कथा (Story of Rameshwaram Shivlingam) Mythology

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के दक्षिणी छोर पर समुद्र किनारे बसा श्रीरामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग सभी ज्योतिर्लिंगों मे एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।  सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। रामेश्वरम शिवलिंग की कथा लंका पर आक्रमण करने हेतु जब भगवान श्रीराम समुद्र पर पुल बांधने का कार्य करने जा रहे थे तब उन्होने भगवान शिव के पार्थिव लिंग की स्थापना करके अराधना की। श्रीराम ने कहा कि हे महेश्वर रावण आपका महान भक्त है इसलिए मुझे उसको परास्त करने के लिए आपकी सहायता की आवश्यकता है। इस कठिन कार्य को करने मे मेरी सहायता करें। ऐसा कहकर भगवान राम ने शिव जी की पूजा अर्चना की जिससे प्रसन्न होकर भगवान नीलकंठ वहां प्रकट हुए और उन्होनें कहा कि हे राम! महराज! तुम्हारी जय हो। तब भगवान महादेव उस लिंग मे सदैव के लिए प्रवेश कर गए। जिसे श्री रामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।

नागेश्वर शिवलिंग की कथा (Story of Nageshwar Shivlingam) Mythology

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका से 17 किलोमीटर दूर बसा शिवजी यह मंदिर ज्योतिर्लिंगों मे से एक है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। नागेश्वर शिवलिंग की कथा एक समय दारुका नाम की एक राक्षसी थी जो देवी पार्वती की अनन्य भक्त थी। उसने वरदान प्राप्त किया था कि वह जहां-जहां जाएगी वहां सोलह योजन विस्तार का वन उसके साथ जाएगा। वह उसी वन मे अपने पति दारुक के साथ रहती थी। दारुक पापी और दुराचारी था जो सदैव लोगों को तंग किया करता था। ऋषि-मुनियों के यज्ञ आदि मे विघ्न डाला करता था। उससे तंग होकर सभी महर्षि और्व की शरण में गए। महर्षि और्व ने दारुक तथा उसके लोगों को श्राप दिया कि ये राक्षस यदि पृथ्वी पर प्राणियों की हिंसा या यज्ञों का विध्वंस करेंगे तो उसी समय अपने प्राणों से हाथ धो बैठेंगे। ऐसे श्राप से देवताओं को बड़ा लाभ हुआ और उन्होनें राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। राक्षस यदि लड़ाई करते तो श्राप के कारण जीवन समाप्त होता और यदि न करते तो देवताओं के हाथों मारे जाते। ऐसे समय मे दारुका ने एक मार्ग निकाला। दारुका जहां जहां-जाती, वहां-वहां वन उसके साथ जाता। इसीलिए वह स

बैद्यनाथ शिवलिंग की कथा (Story of Baidyanath Shivlingam) Mythology

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवगढ़ मे यह मंदिर स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों मे यह नौवें स्थान पर आता है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। बैद्यनाथ शिवलिंग की कथा बहुत समय पहले लंका का राजा रावण एक भीषण तपस्या कर रहा था। महान शिवभक्त राक्षस अपने एक-एक सिर चढ़ा रहा था। जब उसने अपने नौ सिर काट दिए और दसवां सिर काटने वाला ही था कि भगवान शिव वहां प्रकट हुए और प्रसन्न होकर वरदान मांगने को बोले।  एक क्षण मे रावण के सभी सिर पहले जैसे स्वस्थ हो गए। उसने भगवान से लंका पधारने का अनुरोध किया। अंतर्यामी देवेश्वर मुस्कुराए और स्वयं एक लिंग के रूप मे आ गए किंतु एक शर्त रख गए कि जिस प्रथम स्थान पर उन्हे रख दिया जाएगा वहीं वे स्थापित हो जाएंगे। रावण उस लिंग को लेकर जा रहा था कि शिवजी के खेल से उसे लघुशंका की तीव्र तलब लगी। परम पराक्रमी रावण लघुशंका की तलब को रोक न सका और एक ग्वाले को लिंग थमाकर मूत्र-त्याग हेतु गया। एक क्षण मे ग्वाला थक गया और उसने शिवलिंग को नीचे जमीन पर रख दिया। नीचे रखते ही शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया जिसे रावण टस से मस ना कर सका और शिव जी से अन्

त्र्यम्बकेश्वर शिवलिंग की कथा (Story of Trimbakeshwar Shivlingam) Mythology

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग दक्षिण गंगा गोदावरी के उद्गम स्थल पर नासिक मे स्थापित भगवान शिव का आंंठवा ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर  है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। त्र्यम्बकेश्वर शिवलिंग की कथा बहुत समय पहले की बात है जब एक बार पृथ्वी पर भीषण अनावृष्टि हुई। वर्षों तक जल के बिना रहने से धरती सूख गई। तब महर्षि गौतम ने वरुण देव की तपस्या करके एक दिव्य कुंड प्राप्त किया जिसका जल कभी समाप्त नही होता था। कुंड की चर्चा फैली तो अन्य जगहों के ऋषि-मुनि अपने परिवार सहित आकर वहीं बस गए। पशु-पक्षी, जीव-जंतु आकर बसने लगे। लोगों ने आस-पास खेती भी शुरू हो गई। महर्षि गौतम और उनकी पत्नी परमपवित्र देवी अहिल्या कभी किसी को भी जल के लिए मना नहीं करते थे किंतु तब भी कुछ अन्य ऋषियों की पत्नियां रुष्ट हो गईं और उन सभी अपने-अपने स्वामियों से गौतम ऋषि को दंड देने की बात कही।  सभी ऋषि अपनी-अपनी पत्नियों के कहने मे आकर भगवान गणेश की अराधना करने लगे और उन्हे प्रसन्न करने मे सफल हुए। उन सभी ने भगवान से गौतम ऋषि को दंड देने की बात कही जिस पर गणेश जी ने उन्हे बहुत समझाया कि ऐसा क

केदारनाथ शिवलिंग की कथा(Story of Kedarnath Shivlingam) Mythology

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले मे हिमालय की गोद मे स्थित केदारनाथ धाम पांचवा ज्योतिर्लिंग तथा छोटा चार धाम मे से एक धाम भी है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। केदारनाथ शिवलिंग की कथा भगवान शिव के पांचवे ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ है जिसकी पौराणिक कथा दी जा रही है। भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण बदरिकाधाम(बद्रीनाथ) मे रहकर तपस्या किया करते थे। एक बार उन्होने एक पार्थिवशिवलिंग बनाया और उसकी अराधना करने लगे। उन्होने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे शिवलिंग मे विराजकर उनकी प्रार्थना स्वीकार करें।  उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव उस केदारतीर्थ मे प्रकट हुए और वहीं स्थित हो गए। भगवान के इस स्वरूप का नाम केदारनाथ हुआ।

भीमशंकर शिवलिंग की कथा (Story of Bheemshankar Shivlingam) Mythology

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग सह्याद्रि पहाड़ियों के पास पुणे से 110 किलोमीटर दूर छठे ज्योतिर्लिंग भीमशंंकर का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि पास से बहती भीमा नदी का उद्गम इसी मंदिर से होता है।   सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। भीमशंकर शिवलिंग की कथा भगवान शिव का छठा ज्योतिर्लिंग भीमशंकर है। बात तब की है जब त्रेता मे भगवान राम का जन्म हुआ था। उस समय कर्कट और पुष्कसी नाम के एक राक्षस दम्पति ने महर्षि अगस्त्य के शिष्य महान रामभक्त सुतीक्ष्ण को आहार बनाने के उद्देश्य से यात्रा की। जैसे ही वे दोनों महान ऋषिभक्त के सामने गए, सुतीक्ष्ण ने उन दोनों ने अपने तपबल से भस्म कर दिया।  इस दम्पति की कर्कटी नाम की एक कन्या थी जिसका विवाह विराध नाम के एक राक्षस के साथ हुआ था। विराध को भगवान राम ने मार दिया जिसके बाद कर्कटी सह्य पर्वत पर अकेली रहने लगी। एक दिन वहां रावण का छोटा भाई कुम्भकर्ण आया और अकेली स्त्री देखकर उसने कर्कटी का बलात्कार किया और वापस लंका लौट गया। कुम्भकर्ण का वीर्य कर्कटी के गर्भ मे पहुंच गया जिससे उसे एक संतान प्राप्त हुई जिसका नाम भीम पड़ा। दानव भीम अपने पित

ओंकारेश्वर महादेव की कथा (Story of Omkareshwar Shivlingam) Mythology

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के खंडवा जिले मे नर्मदा के समीप स्थापित परमपवित्र ओंकारेश्वर-ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का चौथा ज्योतिर्लिंग है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। ओंकारेश्वर महादेव की कथा भगवान शिव के चौथे ज्योतिर्लिंग का नाम ओंकारेश्वर है। इसके विषय मे एक पौराणिक कथा है। एक समय देवर्षि नारद घूमते-घूमते विंध्य जा पहुंचे जहां विंध्य ने उनका बड़ा सत्कार किया। तरह-तरह के साधनों से सत्कार करने के बाद विंध्य ने गर्व से देवर्षि से कहा कि उनके यहां किसी चीज की कमी नही है। उनके पास सब कुछ है। विंध्य की अभिमान भरी बातें सुनकर देवर्षि लम्बी सांस खींची जैसे किसी बात की कमी देख ली। विंध्य ने उनको देखकर उनसे प्रश्न किया कि ऐसा क्या है जिसे ना पाकर देवर्षि असंतुष्ट हुए। नारद ने उत्तर दिया कि भैया तुम्हारे यहां सब कुछ है किंतु मेरु पर्वत तुमसे ऊंचा है जिसके शिखरों का विभाग देवलोक तक है।  इतना कहकर देवर्षि उसी क्षण वहां से चले गए किंतु विंध्य चिंता मे पड़े रह गए। जब उन्हे और कोई राह ना दिखी तो उन्होने भगवान शिव की तपस्या करने का सोचा और ओंकार नामक

महाकालेश्वर महादेव की कथा(Story of Mahakaleshwar Shivlingam) Mythology

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों मे तीसरे स्थान पर आने वाला उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर अनेकों पौराणिक कथाओं मे वर्णित हो चुका है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। महाकालेश्वर महादेव की कथा उज्जैन नगरी उस समय अवंति नाम से प्रसिद्ध थी। यहां वेदप्रिय नाम के एक सत्पुरुष ब्राह्मण रहते थे। वे बड़े धर्मपरायण एवं सत्यनिष्ठ थे, सदा शिवभक्ति मे लगे रहते थे। समय आने पर वे शिवलोक को प्राप्त हुए। वेदप्रिय के चार पुत्र थे जो सत्कर्मों मे उन्हीं के समान थे। देवप्रिय, प्रियमेधा, सुकृत एवं सुव्रत नाम के वे चार ब्राह्मण कुमार शिवभक्ति मे सदैव संंलग्न रहते थे। उनकी भक्ति व सत्यता की चर्चा उस समय चारों दिशाओं मे होने लगी। अवंति का नाम भक्ति के बारे मे विख्यात हो गया। उस समय रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम के एक दुष्ट राक्षस ने ब्रह्मदेव की अराधना करके वरदान प्राप्त किया और धर्म, वेद और धर्मात्माओं पर चढ़ाई करने लगा। एक बड़ी सेना लेकर उसने अवंति पर भी चढ़ाई की। एक तरफ धर्मनगरी अवंति मे शिवजी के चार महान भक्त और दूसरी तरफ दूषण की विकराल सेना। लोग डरने लगे, राज्य के अन्य

मल्लिकार्जुन शिवलिंग की कथा (story of Mallikarjun Shivlingam) Mythology

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश मे कृष्णा नदी के तट पर शैल पर्वत(श्रीशैलम) पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों मे दूसरे स्थान पर आता है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। मल्लिकार्जुन शिवलिंग की कथा भगवान शिव के द्वितीय ज्योतिर्लिंग का नाम मल्लिकार्जुन है। मल्लिका देवी पार्वती का एक नाम है तथा अर्जुन भगवान शिव का एक पर्याय है। इस महान धार्मिक क्षेत्र की एक पौराणिक कथा है। एक समय की बात है जब तारकासुरविनाशक कुमार कार्तिकेय कई लोकों का भ्रमण करके कैलाश पहुंचे तब उन्होने भगवान गणेश के विवाह की बात सुनी और वहींं से वे रुष्ट होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए।  भगवान कार्तिकेय के यूं कैलाश से चले जाने पर भगवान शिव और देवी पार्वती उन्हे मनाने के लिए गए किंतु उनके मनाने पर भी कुमार नहीं माने और बारह कोस और पीछे चले गए। उनको ना लौटता देख भगवान शिव और देवी पार्वती वहीं लिंग रूप मे स्थापित हो गए। प्रत्येक अमावस्या को भगवान शिव वहां अपने पुत्र को देखने जाते हैं और प्रत्येक पूर्णमासी को देवी पार्वती वहां जाती हैं। इस लिंग मे महादेव और

सोमनाथ लिंग की कथा (story of Somnath Temple) Mythology

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह, प्रभास क्षेत्र मे स्थित सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों मे प्रथम स्थान पर आता है। ऐतिहासिक रूप से अत्यधिक उतार-चढ़ाव झेलने वाला यह मंदिर अपने वैभव के लिए सदैव ही विश्वविख्यात रहा है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। सोमनाथ लिंग की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंंहिता की एक कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताइस कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से किया थ। चंद्रदेव को उन सत्ताइस मे से रोहिणी ही सर्वाधिक पसंद थी जिससे वे सबसे अधिक प्रेम प्रदर्शित करते थे। दक्ष की अन्य छब्बीस कन्याएं इस बात से दुखी होकर अपने पिता के पास गई और अपनी समस्या बताई। दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया कि उन्हे सभी पत्नियों को बराबर प्रेम व सम्मान देना चाहिए। यद्यपि प्रजापति ने चंद्रदेव को समझाया किंतु फिर भी वे रोहिणी के प्रति ही आसक्त रहे और इस बात से रुष्ट होकर प्रजापति ने उन्हे श्राप दिया कि जाओ क्षय रोग से पीड़ित हो जाओ। चंद्र के क्षय होने से समस्त लोकों मे हाहाकर मच गया। सभी देवता, देवराज इंद्र तथा कुछ ऋषिगण भगवान ब्रह्मा

नंदिकेश्वर की कथा (Nandikeshwar Shivlingam) गंगा की नर्मदा तक यात्रा

नंदिकेश्वर की कथा  वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को देवी गंगा दक्षिण मे जाकर नर्मदा मे आती हैं जहां वे अपनी उन सभी अशुद्धियों को धो देती हैं जो वर्ष भर मे वे पापियों के पाप धोकर इकट्ठा करती हैं।  शिवपुराण की कोटिरुद्रसंंहिता मे वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार एक ब्राह्मणी जिसका नाम ऋषिका था उसपर बालवैधव्य का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए वह ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने लगी। वह शिवजी की भक्ति मे कठोरव्रत का पालन करने लगी। एक दिन जब वह अपनी कठिन साधना मे लीन थी, उसी समय मूढ़ नामक एक दुष्ट, बलवान तथा मायावी दैत्य कामवासना मे पीड़ित होकर वहां आया और ब्राह्मणी के रूप पर आसक्त होकर वह उसे कामपूर्ति के लिए याचना करने लगा। परमतेजस्विनी, तपोनिष्ठ, धर्मपरायण, शिवभक्तिलीन ब्राह्मणी उस मायावी नीच के लोभ पर रत्ती भर भी ध्यान दिए बिना अपनी साधना मे तल्लीन रही। जब मायावी दुष्ट को यह दिखा कि यह स्त्री उसकी बात पर ध्यान तक नहीं दे रही तो इसे अपना अपमान समझकर वह दुराचारी ब्राह्मणी के साथ हिंसा करने को आगे बढ़ा। स्वयं को संकट मे पाकर ऋषिका ने शिव-शिव नाम की रट लगाई और अपनी पवित्र भक्त की रक्षा के लिए भ

अन्नीश्वर लिंग की कथा (annishwarlingam shivlingam)

अन्नीश्वर लिंग की कथा एक समय जब पतिव्रता देवी अनुसुइया ने तपस्या करके देवी गंगा का आवाहन किया और गंगा प्रकट हुई तब देवी अनुसुइया ने उनसे वहां सदैव रहने की प्रार्थना की।  देवी गंगा ने इस प्रार्थना पर कहा कि यदि अनुसुइया एक साल तक की गई शिवपूजा और प्रतिव्रतधर्म का पुण्य-फल देवी गंगा को दे दे तो वे यहां ठहर जाएंगी और देवताओं और मनुष्यों का सदैव कल्याण करेंगी। पतिव्रता सती अनुसुइया ने बिना एक क्षण सोचे तुरंत अपना एक साल का तप देवी गंगा को अर्पण कर दिया। अनुसुइया के इस महादान से प्रसन्न होकर शिवजी उसी क्षण अपने पार्थिवलिंग से प्रकट होकर उनके समक्ष आ गए और उन्होने देवी अनुसुइया को वरदान मांगने को कहा। सती अनुसुइया और उनके पति ने भगवान शिव के उस पंचमुखी रूप को देखकर उसकी बारम्बार वंदना की और वरदान मांगा कि हे देवदेवेश्वर यदि आप और देवी गंगा दोनों प्रसन्न हैं तो आप दोनों इसी तपोवन मे स्थित हों और मनुष्य का कल्याण करें। इस पर भगवान शिव और देवी गंगा उस स्थान पर रहे जहां वे ऋषिशिरोमणि रहते थें और उस लिंग का नाम अन्नीश्वर हुआ।

शिवजी का लिंगरूप होना (shiv ji ka lingroop) Shivlingam

शिवजी का लिंगरूप होना पौराणिक कथाओं मे कई बार विभिन्नता देखने को मिलती है जहां हमे एक ही घटना के कई कारण मिल जाते हैं किंतु विशेषता यह होती है कि सभी एक दूसरे को कहीं न कहीं पूर्ण कर रहे होते हैं, एक दूसरे के मार्ग मे अवरोध नहीं होते।  स्कंदपुराण के ब्रह्मखंड मे चतुर्मास-महात्म्य के वर्णन मे एक कथा सामने आती है जब भगवान शिव ने देवी पार्वती को राम नाम की महिमा बताई और उन्हे राम नाम की साधना के लिए भेज दिया तब वे कैलाश से उतरकर मैदानी भाग मे आए और विचरने  लगे। घूमते-घूमते वे यमुना की निर्मल धारा के समीप पहुंचे और उसके जल को देखकर उनके अंदर स्नान की इच्छा हुई। ज्यों ही वे जल मे प्रवेश किए, उनके शरीर की अग्नि से यमुना का जल काला हो गया। आप जानते होंगे कि यमुना का एक नाम श्यामा भी है। यमुना स्नान के बाद यमुना पर कृपा करके शिवजी हाथ मे वाद्य लिए तथा माथे पे त्रिपुण्ड्र धारण करके जटा बढ़ाए इधर-उधर घूमने लगे। वे ऋषि-मुनियों के घरोंं मे विचरने लगे। कहीं भी जाते, नाचते-कूदते-गाते, एकदम मस्त, आनंद मे मग्न भोलेनाथ ऋषियों के बीच मे भी पहुंच जाते और उनके क्रिया कलापों से कई बार ध्यान मे मग्न ऋषि परेश

द्वादशाक्षर मंत्र का महत्व (स्कंदपुराण)

 द्वादशाक्षर मंत्र का महत्व ॐ नमोभगवते वासुदेवाय नमः॥ स्कंदपुराण के ब्रह्मखंड मे वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी साधना के विषय मे प्रश्न किया जिसपर महादेव जी ने उन्हें द्वादशाक्षर मंत्र के विषय मे बताया।  महादेव जी ने माता पार्वती से बताया कि देवि भगवान विष्णु का ध्यान करने हेतु, उनकी भक्ति के लिए द्वादशाक्षर मंत्र का जप करना चाहिए। वैसे तो यह मंत्र किसी भी क्षण अथवा मास मे किसी भी स्थान पर जपा जा सकता है किंतु चतुर्मास मे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।  इस मंत्र को कोई भी मनुष्य स्वतंत्र रूप से जप सकता है किंतु इसके लिए एक छोटा सा नियम भी है जिसे वहीं पर बताया गया है। नियम यह बताया गया है कि स्त्रियों तथा शूद्रों को इस मंत्र का जाप करते समय बिना प्रणव मंत्र के ही जप करना चाहिए अर्थात उनका जप मंत्र बनेगा। नमोभगवते वासुदेवाय नमः॥   इसके अतिरिक्त सभी ॐ के साथ इस मंत्र का जप करें।

किस महीने मे होते हैं कौन से सूर्य (surya ke name monthwise) name of sun

किस महीने मे होते हैं कौन से सूर्य ब्रह्मपुराण मे वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार ऋषियों ने भगवान ब्रह्मा से पूछा कि हे देव जो सूर्यदेव समस्त लोकों को जीवन प्रदान करते हैं, जो प्रकाश देते हैं, ऊष्मा देते हैं उनके बारे मे हमें बताइए। ब्रह्मा जी ने इस प्रश्न पर ऋषियों को भगवान सूर्य के विषय मे अनेकों बातें बताई और इसी समय उन्होने भगवान सूर्य के अनेकों रूपों के बारे मे बताया जिन्हे हम आज जानेंगे। यहां सूर्य के महीनों के अनुसार नाम उनकी विशिष्टता के साथ दिए जा रहे हैं- 1. चैत्र मास- चैत्र मास के सूर्य का नाम विष्णु है जो मानवता के शत्रुओं का विनाश करने के लिए अवतार लेते हैं। 2. वैसाख मास- वैसाख के सूर्य का नाम अर्यमा है जो वायु मे रहकर देवताओं को आनंद देता है। 3. ज्येष्ठ मास- ज्येष्ठ मे विवस्वान आते हैं जो अग्नि मे वास करके भोजन पचाते हैं। 4. आषाढ़ मास- आषाढ़ के सूर्य अंशुमान हैं जो वायु रूप मे प्रजा को जीवित रखते हैं। 5. श्रावण मास- इस माह का सूर्य पर्जन्य है जो बादलों मे रहकर अपनी किरणों से वर्षा कराता है। 6. भाद्रपद मास- इस माह मे सूर्य वरुण के रूप मे जल मे रहकर प्रजा का पोषण करते है

राम की दंड नीति (समुद्र को दंड) Ram's punishment to The Ocean

 राम की दंड नीति (समुद्र को दंड) Ram's  punishment to The Ocean जब जब बात भगवान श्रीराम की आती है, हमारे सामने सम्पूर्ण रामायण मे राम बनने वाले अरुण गोविल की तस्वीर आ जाती है और वो भी सदैव मुस्कुराने वाले राम। हम राम की बातें करते हैं जो उनका वह अपार प्रेम, उनकी करुणा, दया, सत्य, उनका सामान्य जीवन हमारे सामने आता है। तपस्वी राम, शांत राम का चित्र हमारे मन मे इतना दृढ़ हो चुका है कि उनके क्रोध मे भी हमे शांति ही दिखाई देती है।  वैसे तो वे सदैव प्रसन्न रहे किंतु जीवन के कुछ हिस्सों मे उन्होने कुछ क्षणों के लिए क्रोध का धारण किया यद्यपि वे सदैव विवेकशील रहे। उनके क्रोध के क्षणों मे एक क्षण तब का है जब वे समुद्र से रास्ता मांग रहे थे। रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड मे गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि जब विभीषण प्रभू राम के पास आए और अपनी व्यथा बताकर उन्होने स्वयं को भगवान के समक्ष समर्पित कर दिया तब भगवान ने उसी क्षण समुद्र का जल लेकर उनको लंका का राजा घोषित कर दिया। इसके बाद चर्चा समुद्र पार करने की होती है जिस पर विभीषण कहते हैं- प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि। बिनु प्रयास सा

गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first

गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first भगवद्गीता मानव जाति के लिए एक ऐसा वरदान है जिसके प्राप्त होने के पश्चात मनुष्य को किसी भी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं। इसका ज्ञान मानव को वास्तविक सुख प्राप्त करने का ऐसा सुगम मार्ग बताता है कि उसे अन्य किसी मार्ग पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं। स्वयं आदिभगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकलने वाली इस अमृततुल्य पुस्तक की गणना वेदों के साथ की जाती है। इसका पूर्ण आस्तिक विज्ञान व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।मोह से प्रेम की ओर ले जाता है। अकर्मण्यता से कर्मयोग सिखाता है। ऐसा कोई ज्ञान, ऐसा कोई दर्शन नहीं जो भगवद्गीता मे नही है।  आज हम जिस गीता को जानते हैं वह अनुमानतः पांच हज़ार वर्ष पहले द्वापर युग के अंत मे कुरुक्षेत्र के मैदान मे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को महाभारत के युद्ध मे दिव्य ज्ञान हेतु कही गई थी।महर्षि व्यास द्वारा लिखा गया महाग्रंथ महाभारत इसे अपने अंदर संंजो कर रखे हैं जहां यह अट्ठारह अध्यायों मे लगभग 720 श्लोकों मे लिखी हुई है। इस युद्ध में भगवान अर्जुन से बताते हैं कि उन्होने यह गीता कई बार कही है जि

क्या हैं भगवान? (भगवद्गीता) what is God? (bhagwadgeeta)

 क्या हैं भगवान? (भगवद्गीता) what  is God? (Bhagwadgeeta) भगवान क्या हैं? संसार मे व्याप्त हर धर्म, हर सम्प्रदाय किसी ना किसी पराभौतिक शक्ति को मानता है। कोई स्वयं की आत्मा को सर्वोच्च स्थान देता है तो कोई ऊपर आसमान मे बैठे किसी परमात्मा को। कोई जीव को ही सब कुछ कहता तो कोई प्रकृति को सब कुछ कहता है। सनातन संस्कृति की खास बात यह है कि यह संसार मे उपस्थित प्रत्येक वस्तु को ईश्वर की एक रचना मानकर संतुष्ट नही होती बल्कि यह प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का वास खोजती है और इसकी यही सोच इसे ईश्वर के लिए किसी स्थान पर जाने को प्रोत्साहित करना अनिवार्य नही समझती बल्कि प्रत्येक स्थान पर ईश्वर की उपस्थिति को सिखाकर व्यक्ति को ईश्वर के पास ले आती है। सनातन मे सब कुछ है। ऐसा कुछ नहीं जो इसमें नही है। इसने हर एक परिभाषा दी है स्वयं भगवान की भी। भगवद्गीता के सांंतवे अध्याय के चौथे श्लोक मे श्रीभगवान कहते हैं- भूमिरापोSनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टया॥                                   - (अध्याय 7, श्लोक 4) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार- ये आठ प्रका