त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
त्र्यम्बकेश्वर शिवलिंग की कथा
बहुत समय पहले की बात है जब एक बार पृथ्वी पर भीषण अनावृष्टि हुई। वर्षों तक जल के बिना रहने से धरती सूख गई। तब महर्षि गौतम ने वरुण देव की तपस्या करके एक दिव्य कुंड प्राप्त किया जिसका जल कभी समाप्त नही होता था। कुंड की चर्चा फैली तो अन्य जगहों के ऋषि-मुनि अपने परिवार सहित आकर वहीं बस गए। पशु-पक्षी, जीव-जंतु आकर बसने लगे। लोगों ने आस-पास खेती भी शुरू हो गई।
महर्षि गौतम और उनकी पत्नी परमपवित्र देवी अहिल्या कभी किसी को भी जल के लिए मना नहीं करते थे किंतु तब भी कुछ अन्य ऋषियों की पत्नियां रुष्ट हो गईं और उन सभी अपने-अपने स्वामियों से गौतम ऋषि को दंड देने की बात कही।
सभी ऋषि अपनी-अपनी पत्नियों के कहने मे आकर भगवान गणेश की अराधना करने लगे और उन्हे प्रसन्न करने मे सफल हुए। उन सभी ने भगवान से गौतम ऋषि को दंड देने की बात कही जिस पर गणेश जी ने उन्हे बहुत समझाया कि ऐसा करना सही नही है किंतु ऋषिगण नही माने। इस पर गणेश जी ने कहा कि वे गौतम ऋषि के साथ छल अवश्य करेंगे किंतु वह अधिक समय तक नहीं रहेगा।
गणेश जी ने एक अत्यंत दुर्बल और बूढ़ी गाय का रूप धरकर महर्षि गौतम के धान के खेत मे प्रवेश किया और फसल खाने व नष्ट करने लगे। दयालु महर्षि ऐसा देख एक अत्यंत कोमल पौधे की पतली छड़ी से गाय को हटाने लगे किंतु जैसे ही छड़ी ने उस गाय को छुआ, मायारूपी गाय उसी छड़ गिर गयी और मर गई। गौतम ऋषि पर गौहत्या का पाप लगा और वे ऋषियों के बताए मार्ग के अनुसार प्रायश्चित, तप करने चल दिए।
अत्यंत कठिन तप करने के पश्चात महर्षि गौतम और सती अहिल्या को देवाधिदेव महादेव जी ने माता पार्वती और गणों के साथ दर्शन दिया। प्रसन्न देवेश्वर ने महर्षि से वर मांगने को कहा और महर्षि ने वरदान मे स्वयं को पवित्र करने हेतु गंगा प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की।
गंगा को प्रकट करके महादेव जी ने उसे वापस ना लौटकर वैवस्वत मनु के अट्ठाइसवें कलियुग तक रहने का आदेश दिया। गंगा ने तब देवाधिदेव से भी यहां विराजने का निवेदन किया और तब दोनों ने यहां रहना निश्चित किया।
उस समय कई देवता भी आ गए जिन्होने गंगा और गिरीश महादेव जी की अराधना की जिस पर गंगा ने उन सभी से भी आने को कहा। देवताओं ने गंगा को आश्वासन दिया कि हर बार जब देवगुरू बृहस्पति सिंह राशि मे स्थित होंंगे, सभी देव गण वहां आएंगे।
तभी से वह गंगा गौतमी(गोदावरी) के नाम से जानी गई और भगवान का वह रूप त्र्यम्बकेश्वर के नाम से जाना गया।
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