Skip to main content

पश्चिमी एवं भारतीय संस्कृति में अंतर । Difference between Western and Indian civilization. by the romanch

पश्चिम तथा भारतीय संस्कृति में अंतर

पश्चिमी संस्कृति और भारतीय दोनों ही संस्कृतियों ने अच्छाई, बुराई, धर्म, ईश्वर, मोक्ष, मुक्ति, पाप-पुण्य, स्वर्ग आदि के विषय में सदियों से चर्चा की है। हज़ारों दृष्टिकोणों के बाद भी किसी ऐसे सटीक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है कि परम सत्य कैसा है। क्या है। वस्तुतः हम इतने समय के पश्चात भी भूमि पर ही हैं। ऐसे मे ये जानना आवश्यक है कि हमने दोनों शैलियों के मध्य क्या अंतर पाया?

Indian-civilization-by-the-romanch


ईश्वर और भगवान मे अंतर

पश्चिमी सभ्यता के अनुसार ईश्वर ने अपना संदेश किसी व्यक्ति के द्वारा भेजा, उसी व्यक्ति ने लोगों को उसके विषय मे बताया। उसने ईश्वर के यश की कहानियां सुनाई और तमाम और बातें बताई किंतु उसमें ईश्वर के विषय मे अधिक पता न चला।

भारतीय संस्कृति मे भगवान और ईश्वर दो अलग-अलग अर्थ वाले शब्द हैं। भगवान ऐसे महान व्यक्तियों को कहते हैं जिन्होनें हमारे जैसे ही जन्म लिया, इस धरती पर घूमे, जिनका जीवन हमारे जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण रहा किंतु उन्होनें कभी हार नहीं मानी। वे आगे बढ़ते गए और उसके संकल्प, उसकी क्षमताओं को हमने सामान्य मनुष्य से बढ़कर माना अतः उन्हें अपने मध्य भगवान कहा।

ईश्वर ऐसी पराशक्ति को कहते हैं जिसके विषय मे हम वास्तव मे कुछ नहीं जानते। हम इस सिद्धांत पर निश्चित हैं कि उस महाशक्ति ने इस समस्त विश्व की रचना की किंतु वह कैसा है, कौन है, इस पर कोई दावा नहीं।

आस्तित्व का दर्शन

पश्चिमी सभ्यता जिस ईश्वर को पूजती है वह अच्छाई का प्रतीक है। इस दर्शन को हम इस प्रकार समझते हैं। ईश्वर अच्छाई का प्रतीक है और शैतान बुराई का। तो जब तक जीवन है, तब तक इस संसार मे दोनों का आस्तित्व है। कोई भी व्यक्ति एक साथ संसार मे इन दोनों को समाप्त नहीं कर सकता। भले आप वर्तमान मे अच्छे हों किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि बुराई आपपर आक्रमण नहीं कर सकती। हो सकता है आपके भीतर यह भ्रम हो जाए कि आप पूरे अच्छे हैं और यही सोच आपकी बुराई बन जाए। तो इसी कारण उनकी कहानियों मे बार-बार शैतान चुपके से पहुंचता है और ईश्वर अर्थात अच्छाई के आते ही भाग जाता है।

पश्चिम की यह सुंदर सोच किसी भी व्यक्ति को जीवन भर बुराई से भागने के लिए प्रेरित करती है क्योंकि इस संसार मे व्यक्ति किसी भी क्षण सुख, लालच आदि मे फंसकर बुरा बन सकता है।

 

भारतीय संस्कृति जीवनशैली की चरणबद्ध तरीके से व्याख्या करती है। भारतीय दार्शनिकों, ज्ञानियों ने अनेकों सिद्धांत दिए जिनमें से हम एक मार्ग का निर्माण देख सकते हैं।

सामान्य जीवन मे कठिनाइयों को दूर करने के लिए वर्णाश्रम बनाए गए जिनके अनुसार व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत कर सकता है। पाप और पुण्य के हज़ारों नियम बना दिए गए जिनसे व्यक्ति प्रत्येक के कारण और तर्क पर समय न खर्च करके केवल विश्वास के बल से जीवन जी सकता है। अच्छाई और बुराई की कहानियां बनाई गईं किंतु उन ज्ञानियों को ज्ञात था कि जो व्यक्ति स्वयं को अच्छा मान लेंगे वे कुछ भी कर सकते हैं जैसा कि संसार मे हुआ है। मै सही हूं और मै यह कार्य ईश्वर के लिए कर रहा हूं ऐसा सोचकर सबसे अधिक रक्त बहाया जा चुका है। यहां व्यक्ति के लिए अच्छाई को लक्ष्य नहीं रखा गया बल्कि मुक्ति को परमलक्ष्य बताया गया। भारतीय संस्कृति मोक्ष को जीवन का परमबिंदु मानती है। मोक्ष अर्थात प्रत्येक कारण से, प्रत्येक अवस्था से मुक्ति, जहां कोई पाप-पुण्य नहीं, जहां ऊंच-नीच नहीं, जहां सुख-दुख नहीं, जहां आस्तित्व ही नहीं हो। भारतीय दर्शन की यह परमशिक्षा ज्ञान-विराग आदि से शून्य की ओर संकेत करती है, एक ऐसी दिशा जिसके विषय मे किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं, जो कैसा है कोई नहीं जानता। इसी कारण यहां कोई भी ईश्वर का संदेश नहीं ला सकता। भारतीय व्यक्ति अपने मध्य से किसी को भगवान कह सकते हैं किंतु वे किसी को ईश्वर का संदेशवाहक नहीं मान सकते। वे प्रत्येक कारण की, प्रत्येक वस्तु की खोज करते हैं, जांच-पड़ताल करते हैं, यूं ही विश्वास नहीं करते।     

वस्तुतः सभी स्थानों पर हमें ईश्वर के विषय मे कुछ भी ज्ञात नहीं किंतु उसके विषय मे अनुमान करके हम एक ऐसे मार्ग का चयन कर सकते हैं जो हमारे इस समाज के लिए उपयुक्त हो। अच्छाई और बुराई के मध्य अंतर जानकर, मुक्ति के विषय को समझकर हम उचित जीवन के लिए उठाए गए कदमों का निर्धारण कर सकते हैं। गहराई से देखने पर हम यही पाते हैं कि दोनों मार्ग ही व्यक्ति के स्वयं के लाभ के विषय को ही ध्यान मे रखते हैं जो धर्म के प्रचार व विस्तार से कोसों दूर है। दोनों मार्ग स्वयं का उद्धार करने का मार्ग देते हैं जो मनुष्य के अंतर्मन मे ही हो सकता है। इसके लिए शुद्ध मन की, मानसिक दशा की आवश्यकता दिखाई देती है।

Comments

  1. 🙏🙏🙏
    Ati sundar bhale sari bate samajh na aayi pr likhane ka samjhane ka tareeka bemisal hai

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

केदारनाथ शिवलिंग की कथा(Story of Kedarnath Shivlingam) Mythology

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले मे हिमालय की गोद मे स्थित केदारनाथ धाम पांचवा ज्योतिर्लिंग तथा छोटा चार धाम मे से एक धाम भी है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। केदारनाथ शिवलिंग की कथा भगवान शिव के पांचवे ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ है जिसकी पौराणिक कथा दी जा रही है। भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण बदरिकाधाम(बद्रीनाथ) मे रहकर तपस्या किया करते थे। एक बार उन्होने एक पार्थिवशिवलिंग बनाया और उसकी अराधना करने लगे। उन्होने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे शिवलिंग मे विराजकर उनकी प्रार्थना स्वीकार करें।  उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव उस केदारतीर्थ मे प्रकट हुए और वहीं स्थित हो गए। भगवान के इस स्वरूप का नाम केदारनाथ हुआ।

राखी: भाई बहन का प्रेम । रोमांच । rakhi | love between brother and sister | The Romanch |

राखी पिछले चार दिन से सीमा उदास थी। हो भी क्यों न , राखी जो आ रही थी। हर बार उसके भैया उसके घर आते थे। दस साल के बच्चे की मां अपने भैया के सामने बच्ची हो जाती थी। प्रेम से राखी बांधती थी। जबरदस्ती मिठाई खिलाती थी और रुपए के लिए जिद करती थी। शादी के इतने सालों के बाद जब दूसरों की अपेक्षाओं मे वो कुशल गृहिणी , गम्भीर स्त्री , परिपक्व मां थी , वहीं अपने भैया के लिए वह अब भी लाडो थी , गुड़िया थी जिनके सामने वह एक साथ हंस भी सकती थी , रो भी सकती थी और गुस्सा भी हो सकती थी। इतने सालों से जिस भाई से इतना प्यार , इतना दुलार करती थी वह इस साल नहीं आ सकता था यह सोचकर वह छुप-छुप कर रोए जा रही थी। कैसे आता उसका भाई , वह तो आठ महीने पहले इस संसार को छोड़ कर ही चला गया है। महीनों तक वह रोई , बीमार भी हो गई और फिर ठीक होकर घर आ गई। रोना तो बंद हो गया था पर भैया की सूरत आंखो से न गई थी , उनका दुलार न भूल पायी थी। रह-रह कर वो याद आ ही जाते थें लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य हो गई। रोना बंद हुआ पर चार दिन पहले जब बाजार मे राखियों की दूकान देखी तो फिर से वही चालू हो गया। गोलू ने तो पूछा ...