Skip to main content

Posts

Showing posts with the label दर्शन

पश्चिमी एवं भारतीय संस्कृति में अंतर । Difference between Western and Indian civilization. by the romanch

पश्चिम तथा भारतीय संस्कृति में अंतर पश्चिमी संस्कृति और भारतीय दोनों ही संस्कृतियों ने अच्छाई , बुराई , धर्म , ईश्वर , मोक्ष , मुक्ति , पाप-पुण्य , स्वर्ग आदि के विषय में सदियों से चर्चा की है। हज़ारों दृष्टिकोणों के बाद भी किसी ऐसे सटीक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है कि परम सत्य कैसा है। क्या है। वस्तुतः हम इतने समय के पश्चात भी भूमि पर ही हैं। ऐसे मे ये जानना आवश्यक है कि हमने दोनों शैलियों के मध्य क्या अंतर पाया ? ईश्वर और भगवान मे अंतर पश्चिमी सभ्यता के अनुसार ईश्वर ने अपना संदेश किसी व्यक्ति के द्वारा भेजा , उसी व्यक्ति ने लोगों को उसके विषय मे बताया। उसने ईश्वर के यश की कहानियां सुनाई और तमाम और बातें बताई किंतु उसमें ईश्वर के विषय मे अधिक पता न चला। भारतीय संस्कृति मे भगवान और ईश्वर दो अलग-अलग अर्थ वाले शब्द हैं। भगवान ऐसे महान व्यक्तियों को कहते हैं जिन्होनें हमारे जैसे ही जन्म लिया , इस धरती पर घूमे , जिनका जीवन हमारे जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण रहा किंतु उन्होनें कभी हार नहीं मानी। वे आगे बढ़ते गए और उसके संकल्प , उसकी क्षमताओं को हमने सामान्य मनुष्य से बढ़कर मा...

महत्व । हर एक कार्य का। कौन सा कार्य महत्वपूर्ण है? which action/ profession should I do? Karma Philosophy | The Romanch

महत्व । हर एक कार्य का   वनपर्व (महाभारत) मे महर्षि मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को सुनाई गई एक कथा जिसमें वो कर्म के महत्व पर चर्चा करते हैं। एक बार एक मुनि थे ‘ कौशिक ’ । वे परमज्ञानी , महान मुनि थे जिन्हें अपने तप का अपार अहंकार था। एक बार जब वे एक वृक्ष के नीचे ध्यान मे मग्न थे , तभी एक चिड़िया ने उनके ऊपर बीट कर दी। महामुनि का ध्यान भंग हो गया। वे क्रोध से तमतमा उठे। उनकी लाल आंखो ने जैसे ही चिड़िया को देखा , वैसे ही चिड़िया नीचे जमीन पर गिर गई और तड़पने लगी। तड़प-तड़प कर चिड़िया कुछ ही देर मे मर गई। महर्षि के साथ किए अपराध का दंड उसे प्राण देकर चुकाना पड़ा। चिड़िया के मरने पर कौशिक का क्रोध शांत हुआ। उसके जले हुए शरीर को देखकर उनके हृदय मे दया का भाव आया। पीड़ा हुई। वे अपने कार्य पर बहुत पछताए किंतु अब पछताने से क्या हो सकता था। उनका ध्यान भंग हो चुका था। वे दोबारा नहीं बैठे और कुछ भिक्षा के लिए चल दिए। कई द्वारों पर भिक्षा मांगकर वे एक स्त्री के द्वार पर पहुंचे और आवाज लगाई। “भिक्षा दो माई!” अंदर से स्त्री ने जबाब दिया “हां अभी आई बाबा। प्रतीक्षा करो।” कौशिक काफी देर तक प्रत...

नवरात्रि । सकारात्मकता के नौ दिन। देवी के नौ रूपों मे प्रकृति की महत्ता । रोमांच । navaratri | nine days of positivity | imporance of nature in nine forms of Devi | Romanch | The Romanch

नवरात्रि  एक कथा सुनाई जाती है कि एक बार ऋषि-मुनियों की एक सभा आयोजित की गई जिसमें सभी ऋषि-मुनियों ने ज्ञान आदि के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती को निमंत्रित किया। शिव और शिवा दोनों वहां पधारे और उनको देखकर सभी ने उनका स्वागत किया। सभा प्रारम्भ होती इससे पहले ऋषियों के समूह ने देवाधिदेव और आदिशक्ति की अराधना व परिक्रमा करने की इच्छा की जिसे हमारे माता-पिता ने मुस्कुराकर स्वीकार किया। उसी सभा मे भृंगी ऋषि भी थे। भृंगी ऋषि के अंदर नारी शक्ति के प्रति तुच्छ भाव थे और उनके अनुसार नारी का महत्व पुरुष के समक्ष अधिक नहीं होता था जिसके कारण वे आदिशक्ति माता पार्वती को भी बस महादेव की पत्नी के आधार पर ही सम्मान देते थे किंतु आदिमाता के रूप मे उनके अंदर कोई विशेष भाव नहीं था। जिस समय सभी ऋषियों ने महादेव और माता पार्वती की परिक्रमा की , उसी समय भृंगी ऋषि ने केवल महादेव की परिक्रमा की और देवी को छोड़ दिया। ऐसे समय देवी ने अपनी लीला की। उन्होनें भृंगी ऋषि को सम्बोधित करके कहा कि आपको नारी शक्ति अर्थात प्रकृति की कोई आवश्यकता नहीं है इसीलिए आपके शरीर से मै प्रकृति के गुणों को ले लेती हूं तब...

काम, सभी शत्रुओं का एक मित्र। प्रेरणादायक बातें। गीता की शिक्षा। दर्शन। रोमांच। Desire, Lust, friend of all enemies| motivational talks| teachings of gita | philosophy | theromanch | Romanch

काम   जब बात काम की आती है तो यह केवल शरीर की किसी अन्य शरीर की आवश्यकता तक निर्भर नहीं रहता है बल्कि उन सभी इच्छाओं की तरफ एक इशारा होता है जो हमारे आत्मिक विकास मे बाधक हैं। प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान मे यह उस समय बाधक बन जाता है और वह व्यक्ति इसके भंवर मे फंसा स्वयं को बंधता महसूस करता है किंतु बाहर नहीं आ पाता। वह व्यक्ति जो वासना के जंजाल मे फस चुका है , जो स्वयं को बाहर नहीं निकाल पा रहा है , वह कैसे किसी अन्य दिशा मे प्रगति कर सकता है। यदि उसे आगे बढ़ना है , यदि उसे स्वयं को उस उंचाई तक ले जाना है जहां वह स्वयं को देखना चाहता है तो उसे इन सबसे आगे बढ़ना होगा। उसे अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा , उसे अपनी बुद्धि को सही दिशा मे लगाना होगा। संसार का कोई बाहरी ज्ञान , कोई प्रेरणा आपकी तब तक मदद नहीं कर सकती , जब तक आप स्वयं की मदद नहीं करना चाहते। आपको स्वयं ही आगे बढ़ना होगा , आपको स्वयं को बेहतर बनाना होगा , आपको स्वयं ही यात्रा करनी है। अपने मन को नियंत्रित करो। अपनी बुद्धि को दिशा दो। अपने हाथों मे शक्ति भरो और लग जाओ पाने मे वह सब कुछ जो तुम्हारे लिए बना है।...

विलासिता से दूर: प्रेरणादायक श्लोक | रोमांच । away from lust | (Inspiring Shloks) Mythology | the romanch

किं विद्यया किं तपसा किं त्यागेन नयेन वा।  किं विविक्तेन मनसा स्त्रीभिर्यस्य मनो हृतम्॥ जिसका मन स्त्रियों ने हर लिया उसे अपनी विद्या, तपस्या, त्याग, नीति तथा विवेकशील चित्त से क्या लाभ हुआ।  what did he gain from his knowledge, austerity, sacrifice, policy and rational mind whose mind is lost by women. पद्म पुराण के पाताल खंड के वैसाख‌‌‌-महात्म्य प्रसंग मे राजा महीरथ की कथा मे यह श्लोक वर्णित है। कथा क्या है पहले यह जान लेते हैं। बहुत समय पहले की बात है महीरथ नाम के एक बड़े राजा थे। एक बड़े सपन्न राज्य के राजा होने पर भी राजा अपने कर्तव्यों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे। उनके राज्य का सारा कार्य उनके मंत्री के हाथों मे था। धर्म और अर्थ दोनों से दूर राजा कामिनियों की क्रीड़ा मे लगा रहता था। इसी तरह उसने एक लम्बा समय बिता दिया। राजा के एक विद्वान पुरोहित थे नाम था कश्यप। जब उन्होने देखा कि राजा कर्तव्यच्युत होकर राजपाट छोड़कर केवल विलास की जिंदगी जी रहा है, तब इस बात से दुखी होकर वे राजा के पास पहुंचे और बोले कि हे राजन आपके राज्य मे अब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र कोई भी...

गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first

गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first भगवद्गीता मानव जाति के लिए एक ऐसा वरदान है जिसके प्राप्त होने के पश्चात मनुष्य को किसी भी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं। इसका ज्ञान मानव को वास्तविक सुख प्राप्त करने का ऐसा सुगम मार्ग बताता है कि उसे अन्य किसी मार्ग पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं। स्वयं आदिभगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकलने वाली इस अमृततुल्य पुस्तक की गणना वेदों के साथ की जाती है। इसका पूर्ण आस्तिक विज्ञान व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।मोह से प्रेम की ओर ले जाता है। अकर्मण्यता से कर्मयोग सिखाता है। ऐसा कोई ज्ञान, ऐसा कोई दर्शन नहीं जो भगवद्गीता मे नही है।  आज हम जिस गीता को जानते हैं वह अनुमानतः पांच हज़ार वर्ष पहले द्वापर युग के अंत मे कुरुक्षेत्र के मैदान मे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को महाभारत के युद्ध मे दिव्य ज्ञान हेतु कही गई थी।महर्षि व्यास द्वारा लिखा गया महाग्रंथ महाभारत इसे अपने अंदर संंजो कर रखे हैं जहां यह अट्ठारह अध्यायों मे लगभग 720 श्लोकों मे लिखी हुई है। इस युद्ध में भगवान अर्जुन से बताते हैं कि उन्होने यह गीता कई बार कही ह...

क्या हैं भगवान? (भगवद्गीता) what is God? (bhagwadgeeta)

 क्या हैं भगवान? (भगवद्गीता) what  is God? (Bhagwadgeeta) भगवान क्या हैं? संसार मे व्याप्त हर धर्म, हर सम्प्रदाय किसी ना किसी पराभौतिक शक्ति को मानता है। कोई स्वयं की आत्मा को सर्वोच्च स्थान देता है तो कोई ऊपर आसमान मे बैठे किसी परमात्मा को। कोई जीव को ही सब कुछ कहता तो कोई प्रकृति को सब कुछ कहता है। सनातन संस्कृति की खास बात यह है कि यह संसार मे उपस्थित प्रत्येक वस्तु को ईश्वर की एक रचना मानकर संतुष्ट नही होती बल्कि यह प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का वास खोजती है और इसकी यही सोच इसे ईश्वर के लिए किसी स्थान पर जाने को प्रोत्साहित करना अनिवार्य नही समझती बल्कि प्रत्येक स्थान पर ईश्वर की उपस्थिति को सिखाकर व्यक्ति को ईश्वर के पास ले आती है। सनातन मे सब कुछ है। ऐसा कुछ नहीं जो इसमें नही है। इसने हर एक परिभाषा दी है स्वयं भगवान की भी। भगवद्गीता के सांंतवे अध्याय के चौथे श्लोक मे श्रीभगवान कहते हैं- भूमिरापोSनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टया॥                                 ...

कर्म करना श्रेष्ठ है अथवा कर्म ना करना (भगवद्गीता) | रोमांच । karmyog in bhagwadgeeta । The Romanch |

कर्म करना श्रेष्ठ है अथवा कर्म ना करना (भगवद्गीता)   जब भी संसार मे कोई हादसा होता है, हम चिंतित होते हैं, हम सोचते हैं कि क्या सही है और क्या नहीं, क्या करना चाहिए और क्या नहीं, अलग अलग चिंताएं, स्वयं की चिंता, परिवार की चिंता, समाज की चिंता और फिर पूरे संसार की चिंता होती है। जब मन बहुत अधिक व्यथित हो जाता है और कुछ समझ नही आता तो व्यक्ति शांति की खोज करना चाहता है।  जितने भी महापुरुष हुए चाहे वो गौतम बुद्ध हों, महावीर स्वामी हों, स्वामी विवेकानंद हों अथवा कोई अन्य महाप्राणी, जब भी उनका मन बहुत अधिक व्यथित हुआ तो वे घर से निकले, साधना मे रहे, तप किया, ध्यान किया और तब उन्हे वास्तविक सुख प्राप्त हुआ। एक बार शांति का मार्ग प्राप्त करने के पश्चात वे संसार मे रहते हुए भी संसार के दुखों मे नहीं फंंसे। उन्होने लोगों के दुख को देखा, समझा और समझाया भी किंतु स्वयं नही दुखी हुए। किंतु क्या हर व्यक्ति घर छोड़कर जा सकता है? क्या आप जा सकते हैं? उत्तर है कि सभी नहीं। तो क्या जो नही जा सकता वह सुखी नही हो सकता? उत्तर है कि क्यों नही हो सकता, उसे बस कुछ समय देने की जरूरत है। थोड़ा समझने की ज...

विवेकचूड़ामणि शिक्षाप्रद श्लोक (vivekachudamani shlok) Adi Shankara

विवेकचूड़ामणि शिक्षाप्रद श्लोक (vivekachudamani shlok) Adi Shankara पुरुषवाद और मायावाद के मध्य अंतर स्पष्ट करने वाले, अद्वैतवाद के प्रवर्तक आदिगुरु शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत मे घूम-घूमकर जीव तथा ब्रह्म के मध्य के सम्बंध को जन-जन तक पहुंचाया। उनके कार्यों को कई पुस्तकों मे संजोया गया है। उनकी शिक्षाएं उपनिषदों मे भरी पड़ी हैं। ब्रह्म क्या है, वह जीव से कैसे जुड़ा है, शरीर क्या है, इसका क्या महत्व है आदि अनेकों प्रश्नों के उत्तर हेतु वे जगह जगह पर सभाएं करते थे, शास्त्रार्थ होते थे और उन्हीं से उनके विचार फैलते थे।  उनके विचारों को जिन पुस्तकों मे संजोया गया है उन्ही मे से एक है विवेकचूड़ामणि।  विवेकचूड़ामणि लगभग 580 श्लोकों की एक पुस्तक है जिसमे ब्रह्म-शरीर-आत्मा के मध्य सम्बंध व अंतर स्पष्ट है। प्रत्येक श्लोक के जरिए आदिगुरु संसार को बताना चाहते हैं कि ब्रह्म सर्वोच्च है, वही सर्वस्व है, सार्वभौमिक है और बाकी सबकुछ मिथ्या है।  आज हम इस पुस्तक के कुछ श्लोकों को तथा उनके अनुवाद को जानेंगे। इसके आगे हम कुछ और श्लोकों को आगे के आर्टिकल्स मे जानेंगे तो आइये पढ़ते हैं आदिगुरु के ग...

पश्चाताप की आवश्यकता(उद्धव-अश्वस्थामा संवाद)

पश्चाताप की आवश्यकता   बात उस समय की है जब अश्वस्थामा को श्रीकृष्ण अमरत्व का श्राप दे चुके थे और वह दर दर ठोकरें खा रहा था। अपने घृणित कर्मों की स्मृति से उसकी आत्मा विदीर्ण हो रही थी, पग पग की ठोकरें खाकर वह भय व दुःख से विलाप करता भटक रहा था किंतु उसे कहीं भी शांति प्राप्त नहीं हो रही थी। दुर्बल हृदय ईश्वर से प्रश्न करता है, उसकी शरण खोजता है। अश्वस्थामा को भी ऐसे समय ईश्वर का स्मरण हुआ और अपने पापों की क्षमा याचना के लिए वह द्वारिका जा पहुंचा। महाभारत के युद्ध हुए छत्तीस वर्ष से अधिक समय बीत चुका था। धर्म की पुनर्स्थापना का महायज्ञ पूर्ण हो चुका था, वह मूल्य चुका दिया गया था जिसे युगों तक याद किया जाएगा। एक सम्पूर्ण पीढ़ी का विनाश हो चुका था।   भगवान मधुसूदन की श्रम नगरी द्वारिका के लोगों का विनाश हो चुका था और कुछ यदुवंशी ही बचे थे। राज्य की देख-रेख उस समय उद्धव जी के ही हाथ मे थी और अश्वस्थामा उनसे ही जा मिला। अत्यंत करुण भाव से बिलखते हुए अश्वस्थामा ने उद्धव के आगे हाथ जोड़कर कहा कि हे महाज्ञानी! हे तेजस्वी महात्मा! हे कृष्णप्रिय! मुझे योगेश्वर से मिलना है। कृपा करके मुझे ...

श्री कृष्ण का जीवन-श्रीकृष्ण लीला (आर्यावर्त मे धर्म स्थापना-महाभारत) | रोमांच । Shree Krishna life | The Romanch |

जन्माष्टमी 2020 पर श्रीकृष्ण के जीवन पर एक लेख  आने वाले मंगलवार-बुधवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है। जन्माष्टमी यानी भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस। श्रीकृष्ण जो संसार के सबसे अधिक पूर्ण पुरुष हैं जिनके चरित्र की महत्ता व अलौकिकता का वर्णन अनेकों महापुरुषों की वाणी से हो चुका है, उन पर मै हर्ष वर्धन सिंह आज अपने ब्लॉग रोमांच की दुनिया मे एक दृष्टि डालता हूंं। श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला, श्रीकृष्ण की कहानी, श्रीकृष्ण जीवन के लक्ष्य व उद्देश्य, महाभारत मे उनका योगदान व सामान्य बालक से भगवान की कहानी आज हम पढ़ते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन द्वापर की समाप्ति का वह समय चल रहा था जब सम्राट भरत द्वारा विजित भारतवर्ष हस्तिनापुर की एक पताका के नीचे चल रहा था किंतु भरत के बाद के राजाओं की उदार नीति व निर्बल सामर्थ्य के कारण यह महान भूभाग अनेकों छोटे-छोटे राज्यों मे विभक्त हो गया था। यद्यपि आर्यावर्त के लगभग सभी राज्य अब भी हस्तिनापुर के नियंत्रण मे थे किंतु उसके राजाओं मे स्वतंत्र शासन की इच्छा जन्म ले रही थी। आर्यावर्त के ये छोटे-छोटे राज्य अपनी राज्यविस्तार की मंशा से एक दूसरे पर आक्रमण किया करते थे...