गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first
भगवद्गीता मानव जाति के लिए एक ऐसा वरदान है जिसके प्राप्त होने के पश्चात मनुष्य को किसी भी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं। इसका ज्ञान मानव को वास्तविक सुख प्राप्त करने का ऐसा सुगम मार्ग बताता है कि उसे अन्य किसी मार्ग पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं।
स्वयं आदिभगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकलने वाली इस अमृततुल्य पुस्तक की गणना वेदों के साथ की जाती है। इसका पूर्ण आस्तिक विज्ञान व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।मोह से प्रेम की ओर ले जाता है। अकर्मण्यता से कर्मयोग सिखाता है। ऐसा कोई ज्ञान, ऐसा कोई दर्शन नहीं जो भगवद्गीता मे नही है।
आज हम जिस गीता को जानते हैं वह अनुमानतः पांच हज़ार वर्ष पहले द्वापर युग के अंत मे कुरुक्षेत्र के मैदान मे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को महाभारत के युद्ध मे दिव्य ज्ञान हेतु कही गई थी।महर्षि व्यास द्वारा लिखा गया महाग्रंथ महाभारत इसे अपने अंदर संंजो कर रखे हैं जहां यह अट्ठारह अध्यायों मे लगभग 720 श्लोकों मे लिखी हुई है।
इस युद्ध में भगवान अर्जुन से बताते हैं कि उन्होने यह गीता कई बार कही है जिसका उन्हे पूरा ध्यान है किंतु अर्जुन वह सब भूल चुका है-
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