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गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first

गीता का इतिहास (History of bhagwadgeeta) who preached Gita first


भगवद्गीता मानव जाति के लिए एक ऐसा वरदान है जिसके प्राप्त होने के पश्चात मनुष्य को किसी भी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं। इसका ज्ञान मानव को वास्तविक सुख प्राप्त करने का ऐसा सुगम मार्ग बताता है कि उसे अन्य किसी मार्ग पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं।

स्वयं आदिभगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकलने वाली इस अमृततुल्य पुस्तक की गणना वेदों के साथ की जाती है। इसका पूर्ण आस्तिक विज्ञान व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।मोह से प्रेम की ओर ले जाता है। अकर्मण्यता से कर्मयोग सिखाता है। ऐसा कोई ज्ञान, ऐसा कोई दर्शन नहीं जो भगवद्गीता मे नही है। 

आज हम जिस गीता को जानते हैं वह अनुमानतः पांच हज़ार वर्ष पहले द्वापर युग के अंत मे कुरुक्षेत्र के मैदान मे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को महाभारत के युद्ध मे दिव्य ज्ञान हेतु कही गई थी।महर्षि व्यास द्वारा लिखा गया महाग्रंथ महाभारत इसे अपने अंदर संंजो कर रखे हैं जहां यह अट्ठारह अध्यायों मे लगभग 720 श्लोकों मे लिखी हुई है।

इस युद्ध में भगवान अर्जुन से बताते हैं कि उन्होने यह गीता कई बार कही है जिसका उन्हे पूरा ध्यान है किंतु अर्जुन वह सब भूल चुका है-

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप॥
                                                  -(अध्याय 5, श्लोक 5)
तुम्हारे तथा मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं। मुझे तो उन सबका स्मरण है किंतु हे परंतप! तुम्हे उनका विस्मरण हो चुका है।

इससे यह सिद्ध हुआ कि अर्जुन और श्रीकृष्ण आदिकाल मे भी थे, और यथार्थ रूप मे तब भी भगवान ने उससे गीता कही होगी जिसका उसे इस जन्म मे स्मरण नही है। 

गीता के विषय मे इससे पहले भगवान कहते हैं-

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेSब्रवीत्॥
                                                  -(अध्याय 5, श्लोक 1)

भगवान ने कहा- मैंने इस अमर योगविद्या का उपदेश सूर्यदेव विवस्वान को दिया और विवस्वान ने मनुष्यों के पिता मनु को उपदेश दिया और मनु ने इसका उपदेश इक्ष्वाकु को दिया।

इस तरह भगवान ने स्वयं गीता के इतिहास को अर्जुन को बताया।


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