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अवतार क्या होता है? What is incarnation?

अवतार क्या होता है? What is incarnation?  सोलहवीं शताब्दी मे कृष्णभक्ति से सम्पूर्ण भारत को कृष्णप्रेम मे डुबाने वाले चैतन्य महाप्रभु के जीवन और शिक्षाओं पर लिखी गई कृष्णदास कविराज की पुस्तक चैतन्य चरितामृत  मे उन्होनें अवतार के अर्थ को स्पष्ट किया है। उन्होने लिखा है- सृष्टिहेतु एइ मूर्ति प्रपञ्चे अवतरे। सेइ ईश्र्वरमूर्ति अवतार नाम धरे॥ मायातीत परव्योमे सबार अवस्थान। विश्र्वे अवतरी धरे अवतार नाम॥ "संसार के लिए उस परमधाम से भौतिक अवस्था मे ईश्वर आते हैं। ईश्वर का यह रूप अवतार कहलाता है। ऐसे अवतार अपने ब्रह्मरूप मे स्थित रहते हैं तथा जब ये संसार मे शरीर धारण करते हैं, उतरते हैं, तो उन्हें अवतार कहा जाता है।" He(God) comes to the physical state from that supreme abode for the world. This form of God is called an Avatar. Such avatar reside in their Brahman form and when they come in bodies in the world, when they descend, they are called avatars.  

हमारी तृष्णा

आज का विचार- अनंत भोगों का उपभोग करके भी अज्ञानी मन की तृष्णा वैसे ही असंतुष्ट होती है जैसे मरुस्थल की मरुभूमि जल की बूंदो से। इसीलिए तो राजा ययाति ने कहा था- भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः । कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥ हमने भोग नहीं भुगते , बल्कि भोगों ने हमें भुगता है ; हमने तप नहीं किया , बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गये हैं ; काल समाप्त नहीं हुआ , बल्कि  हम स्वयं समाप्त हुए हैं ; तृष्णा जीर्ण नहीं हुई , पर हम ही जीर्ण हुए हैं।

पौधे के उगने की शिक्षा

पौधा तो मिट्टी मे ही उगता है चट्टानों मे नही॥ पौधे का आधार है जड़ और जड़ सदैव मिट्टी मे ही रहती है। चाहकर भी उसे चट्टान या पत्थर पर नही उगा सकते। हां किसी गमले मे मिट्टी लेकर उसमें पौधे को लगाकर किसी भी महल-हवेली के फर्श पर रख सकते हैं किंतु उसका आकार एक लघुसीमा मे परिबद्ध होगा। ठीक जीवन भी इसी प्रकार है। मिट्टी संघर्ष है, चट्टान सुख-सुविधाएं हैं और पौधा,         पौधा है स्वयं का गौरव  जिसकी जड़ है सफलता। जो लोग स्वयं संघर्ष करते हैं, सुख-सुविधाओं की चिंता ना करके अपने कर्म के लिये उन्मुख रहते हैं, उनकी सफलता और विशाल होती जाती है और उनका गौरव विशालकाय होता जाता है।  जो माता-पिता अपने बच्चों की सुख-सुविधाओं का अधिक ध्यान रखते हुए उनसे कोई काम नहीं कराना चाहते उनके बच्चे स्वयं के आस्तित्व को कहां ढूंढ पायेंगे। यदि वे थोड़ी सी मिट्टी गमले मे रखकर अर्थात थोड़ी सी मेहनत करवाकर और बाकी स्वयं के नाम और ख्याति से उसे किसी महल मे रख भी देते हैं तब भी उसका उठना हद मे होगा।

दूध का गर्म होना

दूध को गर्म करने पर ही उससे मिठाई बनती है।  यदि दूध की तपन देखकर उसको गर्म करना छोड़ दें तो वह बेकार हो जायेगा।   यही जीवन के संघर्षों का रहस्य है। यदि आप कष्ट सहेंगे तो आप आगे बढ़ेंगे। दूध को समय-समय पर चमचे से चलाते रहने की आवश्यकता होती है और बार-बार यह देखते रहने की कंंही यह अधिक ना जल जाये और सूखकर कड़ा हो जाये। हमारे जीवन मे ये चलाने वाले हमारे माता-पिता व हमारे गुरू होते हैं जो हमको कितना आंच देना है और कब तक देना है इसका ध्यान रखते हैं। ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे हमें सही दिशा मे ले जायें और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हे स्वयं को सौंंप दें।                                                                                               -हर्ष वर्धन सिंह