यदि दूध की तपन देखकर उसको गर्म करना छोड़ दें तो वह बेकार हो जायेगा। यही जीवन के संघर्षों का रहस्य है। यदि आप कष्ट सहेंगे तो आप आगे बढ़ेंगे। दूध को समय-समय पर चमचे से चलाते रहने की आवश्यकता होती है और बार-बार यह देखते रहने की कंंही यह अधिक ना जल जाये और सूखकर कड़ा हो जाये। हमारे जीवन मे ये चलाने वाले हमारे माता-पिता व हमारे गुरू होते हैं जो हमको कितना आंच देना है और कब तक देना है इसका ध्यान रखते हैं। ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे हमें सही दिशा मे ले जायें और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हे स्वयं को सौंंप दें।
-हर्ष वर्धन सिंह
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