Skip to main content

काम, सभी शत्रुओं का एक मित्र। प्रेरणादायक बातें। गीता की शिक्षा। दर्शन। रोमांच। Desire, Lust, friend of all enemies| motivational talks| teachings of gita | philosophy | theromanch | Romanch

काम

#philosophy #gita #theromanch #harshvardhansingh


 

जब बात काम की आती है तो यह केवल शरीर की किसी अन्य शरीर की आवश्यकता तक निर्भर नहीं रहता है बल्कि उन सभी इच्छाओं की तरफ एक इशारा होता है जो हमारे आत्मिक विकास मे बाधक हैं। प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान मे यह उस समय बाधक बन जाता है और वह व्यक्ति इसके भंवर मे फंसा स्वयं को बंधता महसूस करता है किंतु बाहर नहीं आ पाता।


वह व्यक्ति जो वासना के जंजाल मे फस चुका है, जो स्वयं को बाहर नहीं निकाल पा रहा है, वह कैसे किसी अन्य दिशा मे प्रगति कर सकता है। यदि उसे आगे बढ़ना है, यदि उसे स्वयं को उस उंचाई तक ले जाना है जहां वह स्वयं को देखना चाहता है तो उसे इन सबसे आगे बढ़ना होगा। उसे अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा, उसे अपनी बुद्धि को सही दिशा मे लगाना होगा।


संसार का कोई बाहरी ज्ञान, कोई प्रेरणा आपकी तब तक मदद नहीं कर सकती, जब तक आप स्वयं की मदद नहीं करना चाहते। आपको स्वयं ही आगे बढ़ना होगा, आपको स्वयं को बेहतर बनाना होगा, आपको स्वयं ही यात्रा करनी है। अपने मन को नियंत्रित करो। अपनी बुद्धि को दिशा दो। अपने हाथों मे शक्ति भरो और लग जाओ पाने मे वह सब कुछ जो तुम्हारे लिए बना है। जाओ उज्जवल भविष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा है। 

इंद्रियाणि मनो बुद्दिरस्याधिष्ठनमुच्यते।

एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥

(अध्याय 3 श्लोक 40)

इंद्रियां, मन तथा बुद्धि इस काम के निवासस्थान हैं। इनके द्वारा यह काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढंककर उसे मोहित कर लेता है।

वास्तविक ज्ञान या ब्रह्म ज्ञान या परम ज्ञान। हम उसे चाहे जो संज्ञा दें वह स्वयं मे सम्पूर्ण रहेगा। अपरिवर्तित रहेगा एवं सदैव अंतिम लक्ष्य रहेगा। किंतु इस लक्ष्य के प्राप्त होने से पहले भी हमारे बहुत से लक्ष्य होते हैं और उन सभी पर काम का प्रभाव नकारात्मक ही होता है।

काम तथा विकारोंं पर आधारित हमारी यह पोस्ट पढ़ें- विलासिता से दूर कैसे रहें

मनुष्य के अंदर उत्पन्न षट विकारों को कैसे नियंत्रित करें- षट विकारों पर नियंत्रण

आपको यह पढ़कर कैसा लगा हमें कमेंट मे जरूर बताएं। आपकी प्रतिक्रिया से हमारा उत्साह बढ़ता है। इसके साथ ही आप हमें फॉलो कर सकते हैं और नोटिफिकेसन को भी चालू कर सकते हैं। मिलते हैं आपसे अगली पोस्ट मे। तब तक के लिए नमस्कार।

Comments

Popular posts from this blog

केदारनाथ शिवलिंग की कथा(Story of Kedarnath Shivlingam) Mythology

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले मे हिमालय की गोद मे स्थित केदारनाथ धाम पांचवा ज्योतिर्लिंग तथा छोटा चार धाम मे से एक धाम भी है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। केदारनाथ शिवलिंग की कथा भगवान शिव के पांचवे ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ है जिसकी पौराणिक कथा दी जा रही है। भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण बदरिकाधाम(बद्रीनाथ) मे रहकर तपस्या किया करते थे। एक बार उन्होने एक पार्थिवशिवलिंग बनाया और उसकी अराधना करने लगे। उन्होने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे शिवलिंग मे विराजकर उनकी प्रार्थना स्वीकार करें।  उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव उस केदारतीर्थ मे प्रकट हुए और वहीं स्थित हो गए। भगवान के इस स्वरूप का नाम केदारनाथ हुआ।

राखी: भाई बहन का प्रेम । रोमांच । rakhi | love between brother and sister | The Romanch |

राखी पिछले चार दिन से सीमा उदास थी। हो भी क्यों न , राखी जो आ रही थी। हर बार उसके भैया उसके घर आते थे। दस साल के बच्चे की मां अपने भैया के सामने बच्ची हो जाती थी। प्रेम से राखी बांधती थी। जबरदस्ती मिठाई खिलाती थी और रुपए के लिए जिद करती थी। शादी के इतने सालों के बाद जब दूसरों की अपेक्षाओं मे वो कुशल गृहिणी , गम्भीर स्त्री , परिपक्व मां थी , वहीं अपने भैया के लिए वह अब भी लाडो थी , गुड़िया थी जिनके सामने वह एक साथ हंस भी सकती थी , रो भी सकती थी और गुस्सा भी हो सकती थी। इतने सालों से जिस भाई से इतना प्यार , इतना दुलार करती थी वह इस साल नहीं आ सकता था यह सोचकर वह छुप-छुप कर रोए जा रही थी। कैसे आता उसका भाई , वह तो आठ महीने पहले इस संसार को छोड़ कर ही चला गया है। महीनों तक वह रोई , बीमार भी हो गई और फिर ठीक होकर घर आ गई। रोना तो बंद हो गया था पर भैया की सूरत आंखो से न गई थी , उनका दुलार न भूल पायी थी। रह-रह कर वो याद आ ही जाते थें लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य हो गई। रोना बंद हुआ पर चार दिन पहले जब बाजार मे राखियों की दूकान देखी तो फिर से वही चालू हो गया। गोलू ने तो पूछा ...

असत्य का दिया। कविता। अभिषेक सिंह। हर्ष वर्धन सिंह। रोमांच। Asatya ka diya | poem | Abhishek Singh | Harsh vardhan Singh | Theromanch

" असत्य का दिया" नमस्कार दोस्तों! मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आएं हैं रोमांच पर। दोस्तों  आज मै आपके सामने एक कविता प्रस्तुत कर रहा जिसे भेजा है अभिषेक सिंह ने। आइए पढ़ते हैं उनकी कविता को। सिमट रहा जो शून्य में वो सत्य खण्ड खण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है , तिलमिला रहा है सत्य घुट घुट प्रमाण में , लग गए लोग सारे छल कपट निर्माण में , मृषा मस्तक पे अलंकृत सत्यता को दण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   पसर रही है पशुता मनुष्य आचरण में भी , सिमट रही मनुष्यता मनुष्य के शरण में ही , व्यथित स्थिति को निरूपित दूषित सा चित्त है , षड्यंत में लगे हैं सब दोगला चरित्र है। कलुष कामित अतः करण फिर भी घमण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   इक अदृश्य सी सभी के हस्त में कटार है , पलक झपकते ही ये हृदय के आर पार है , विष धरे हृदय में पर मुख में भरे फूल हैं , पुष्प सदृश दिख रहे मगर असल में शूल हैं , विकट उदंडता यहाँ निर्लज्यता अखण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   ...