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काम, सभी शत्रुओं का एक मित्र। प्रेरणादायक बातें। गीता की शिक्षा। दर्शन। रोमांच। Desire, Lust, friend of all enemies| motivational talks| teachings of gita | philosophy | theromanch | Romanch

काम

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जब बात काम की आती है तो यह केवल शरीर की किसी अन्य शरीर की आवश्यकता तक निर्भर नहीं रहता है बल्कि उन सभी इच्छाओं की तरफ एक इशारा होता है जो हमारे आत्मिक विकास मे बाधक हैं। प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान मे यह उस समय बाधक बन जाता है और वह व्यक्ति इसके भंवर मे फंसा स्वयं को बंधता महसूस करता है किंतु बाहर नहीं आ पाता।


वह व्यक्ति जो वासना के जंजाल मे फस चुका है, जो स्वयं को बाहर नहीं निकाल पा रहा है, वह कैसे किसी अन्य दिशा मे प्रगति कर सकता है। यदि उसे आगे बढ़ना है, यदि उसे स्वयं को उस उंचाई तक ले जाना है जहां वह स्वयं को देखना चाहता है तो उसे इन सबसे आगे बढ़ना होगा। उसे अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा, उसे अपनी बुद्धि को सही दिशा मे लगाना होगा।


संसार का कोई बाहरी ज्ञान, कोई प्रेरणा आपकी तब तक मदद नहीं कर सकती, जब तक आप स्वयं की मदद नहीं करना चाहते। आपको स्वयं ही आगे बढ़ना होगा, आपको स्वयं को बेहतर बनाना होगा, आपको स्वयं ही यात्रा करनी है। अपने मन को नियंत्रित करो। अपनी बुद्धि को दिशा दो। अपने हाथों मे शक्ति भरो और लग जाओ पाने मे वह सब कुछ जो तुम्हारे लिए बना है। जाओ उज्जवल भविष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा है। 

इंद्रियाणि मनो बुद्दिरस्याधिष्ठनमुच्यते।

एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥

(अध्याय 3 श्लोक 40)

इंद्रियां, मन तथा बुद्धि इस काम के निवासस्थान हैं। इनके द्वारा यह काम जीवात्मा के वास्तविक ज्ञान को ढंककर उसे मोहित कर लेता है।

वास्तविक ज्ञान या ब्रह्म ज्ञान या परम ज्ञान। हम उसे चाहे जो संज्ञा दें वह स्वयं मे सम्पूर्ण रहेगा। अपरिवर्तित रहेगा एवं सदैव अंतिम लक्ष्य रहेगा। किंतु इस लक्ष्य के प्राप्त होने से पहले भी हमारे बहुत से लक्ष्य होते हैं और उन सभी पर काम का प्रभाव नकारात्मक ही होता है।

काम तथा विकारोंं पर आधारित हमारी यह पोस्ट पढ़ें- विलासिता से दूर कैसे रहें

मनुष्य के अंदर उत्पन्न षट विकारों को कैसे नियंत्रित करें- षट विकारों पर नियंत्रण

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