अन्नीश्वर लिंग की कथा
एक समय जब पतिव्रता देवी अनुसुइया ने तपस्या करके देवी गंगा का आवाहन किया और गंगा प्रकट हुई तब देवी अनुसुइया ने उनसे वहां सदैव रहने की प्रार्थना की।
देवी गंगा ने इस प्रार्थना पर कहा कि यदि अनुसुइया एक साल तक की गई शिवपूजा और प्रतिव्रतधर्म का पुण्य-फल देवी गंगा को दे दे तो वे यहां ठहर जाएंगी और देवताओं और मनुष्यों का सदैव कल्याण करेंगी।
पतिव्रता सती अनुसुइया ने बिना एक क्षण सोचे तुरंत अपना एक साल का तप देवी गंगा को अर्पण कर दिया। अनुसुइया के इस महादान से प्रसन्न होकर शिवजी उसी क्षण अपने पार्थिवलिंग से प्रकट होकर उनके समक्ष आ गए और उन्होने देवी अनुसुइया को वरदान मांगने को कहा।
सती अनुसुइया और उनके पति ने भगवान शिव के उस पंचमुखी रूप को देखकर उसकी बारम्बार वंदना की और वरदान मांगा कि हे देवदेवेश्वर यदि आप और देवी गंगा दोनों प्रसन्न हैं तो आप दोनों इसी तपोवन मे स्थित हों और मनुष्य का कल्याण करें।
इस पर भगवान शिव और देवी गंगा उस स्थान पर रहे जहां वे ऋषिशिरोमणि रहते थें और उस लिंग का नाम अन्नीश्वर हुआ।
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