Skip to main content

मत्स्य अवतार की कथा (Story of Matsya Avatar) Mythology

मत्स्य अवतार की कथा

अग्निपुराण के द्वितीय अध्याय मे वर्णित कथा के अनुसार एक समय वैवस्वत मनु कृतमाला नदी मे जल से पितरों को तर्पण कर रहे थे कि उसी समय उनके हाथ मे एक छोटी सी मछली(मत्स्य) आ गई। राजा ने उसे वापस नदी मे फेंक देने का विचार किया कि मछली बोल पड़ी कि हे महराज! मुझे जल मे न फेंकिए क्योंकि मुझे यहां के ग्राह आदि जलीय जंतुओं से भय है।

राजा ने उसके ऊपर दया करके उसे कलश मे डाल लिया किंतु कलश मे पड़ते ही उसका आकार कलश से भी बड़ा होने लगा। उसने राजा से किसी बड़े पात्र मे डालने की विनती की तो राजा ने उसे एक नांंद में डाल दिया।

कुछ समय पश्चात मत्स्य का आकार नांद से भी बड़ा होने लगा तो उसने पुनः विनती की तो राजा ने उसे सरोवर मे डाल दिया किंतु वहां भी उसका आकार बढ़ गया तो राजा ने उसे समुद्र मे डाल दिया। इतने समय मे मनु यह जान चुके थे कि यह कोई साधारण मत्स्य नहीं है वरन कोई अलौकिक चीज है।

जब मत्स्य को समुद्र मे डाला गया तो वह एक लाख योजन बड़ा हो गया तब राजा ने उसके हाथ जोड़े और बोले कि निश्चय ही आप भगवान नारायण हैं और अपनी लीला कर रहें हैं।

मत्स्यरूपी भगवान ने उत्तर दिया कि हे राजन मैंने दुष्टों के विनाश के लिए अवतार लिया है। आज से सांतवें दिन सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रलय आएगा। समुद्र अपनी मर्यादा खो देगा और सम्पूर्ण धरा जलमग्न हो जाएगी। उस समय तुम एक बड़ी नाव पर प्रत्येक योनि का एक-एक जोड़ा तथा प्रत्येक वनस्पति का बीज रखो।

मनु भगवान के कहे अनुसार सांतवें दिन सप्तर्षि, प्रत्येक जीव का एक जोड़ा तथा प्रत्येक वनस्पति के बीज लेकर एक बड़ी नाव पर आ गए। समुद्र ने अपनी मर्यादा खोई। आगे बढ़कर उसने सम्पूर्ण धरती को जल से भर दिया। उस समय भगवान मत्स्य आए जिनकी सींगों मे मनु ने रस्सी बांध दी और उन्होनें नाव की रक्षा की। 

ब्रह्मा की रात्रि पूर्ण होने तक वे सब उसी नाव पर रहें जहां मनु ने मत्स्य पुराण का श्रवण किया।  

Comments

Popular posts from this blog

केदारनाथ शिवलिंग की कथा(Story of Kedarnath Shivlingam) Mythology

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले मे हिमालय की गोद मे स्थित केदारनाथ धाम पांचवा ज्योतिर्लिंग तथा छोटा चार धाम मे से एक धाम भी है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। केदारनाथ शिवलिंग की कथा भगवान शिव के पांचवे ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ है जिसकी पौराणिक कथा दी जा रही है। भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण बदरिकाधाम(बद्रीनाथ) मे रहकर तपस्या किया करते थे। एक बार उन्होने एक पार्थिवशिवलिंग बनाया और उसकी अराधना करने लगे। उन्होने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे शिवलिंग मे विराजकर उनकी प्रार्थना स्वीकार करें।  उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव उस केदारतीर्थ मे प्रकट हुए और वहीं स्थित हो गए। भगवान के इस स्वरूप का नाम केदारनाथ हुआ।

राखी: भाई बहन का प्रेम । रोमांच । rakhi | love between brother and sister | The Romanch |

राखी पिछले चार दिन से सीमा उदास थी। हो भी क्यों न , राखी जो आ रही थी। हर बार उसके भैया उसके घर आते थे। दस साल के बच्चे की मां अपने भैया के सामने बच्ची हो जाती थी। प्रेम से राखी बांधती थी। जबरदस्ती मिठाई खिलाती थी और रुपए के लिए जिद करती थी। शादी के इतने सालों के बाद जब दूसरों की अपेक्षाओं मे वो कुशल गृहिणी , गम्भीर स्त्री , परिपक्व मां थी , वहीं अपने भैया के लिए वह अब भी लाडो थी , गुड़िया थी जिनके सामने वह एक साथ हंस भी सकती थी , रो भी सकती थी और गुस्सा भी हो सकती थी। इतने सालों से जिस भाई से इतना प्यार , इतना दुलार करती थी वह इस साल नहीं आ सकता था यह सोचकर वह छुप-छुप कर रोए जा रही थी। कैसे आता उसका भाई , वह तो आठ महीने पहले इस संसार को छोड़ कर ही चला गया है। महीनों तक वह रोई , बीमार भी हो गई और फिर ठीक होकर घर आ गई। रोना तो बंद हो गया था पर भैया की सूरत आंखो से न गई थी , उनका दुलार न भूल पायी थी। रह-रह कर वो याद आ ही जाते थें लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य हो गई। रोना बंद हुआ पर चार दिन पहले जब बाजार मे राखियों की दूकान देखी तो फिर से वही चालू हो गया। गोलू ने तो पूछा ...

असत्य का दिया। कविता। अभिषेक सिंह। हर्ष वर्धन सिंह। रोमांच। Asatya ka diya | poem | Abhishek Singh | Harsh vardhan Singh | Theromanch

" असत्य का दिया" नमस्कार दोस्तों! मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आएं हैं रोमांच पर। दोस्तों  आज मै आपके सामने एक कविता प्रस्तुत कर रहा जिसे भेजा है अभिषेक सिंह ने। आइए पढ़ते हैं उनकी कविता को। सिमट रहा जो शून्य में वो सत्य खण्ड खण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है , तिलमिला रहा है सत्य घुट घुट प्रमाण में , लग गए लोग सारे छल कपट निर्माण में , मृषा मस्तक पे अलंकृत सत्यता को दण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   पसर रही है पशुता मनुष्य आचरण में भी , सिमट रही मनुष्यता मनुष्य के शरण में ही , व्यथित स्थिति को निरूपित दूषित सा चित्त है , षड्यंत में लगे हैं सब दोगला चरित्र है। कलुष कामित अतः करण फिर भी घमण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   इक अदृश्य सी सभी के हस्त में कटार है , पलक झपकते ही ये हृदय के आर पार है , विष धरे हृदय में पर मुख में भरे फूल हैं , पुष्प सदृश दिख रहे मगर असल में शूल हैं , विकट उदंडता यहाँ निर्लज्यता अखण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   ...