भीमशंकर ज्योतिर्लिंग
भीमशंकर शिवलिंग की कथा
भगवान शिव का छठा ज्योतिर्लिंग भीमशंकर है।
बात तब की है जब त्रेता मे भगवान राम का जन्म हुआ था। उस समय कर्कट और पुष्कसी नाम के एक राक्षस दम्पति ने महर्षि अगस्त्य के शिष्य महान रामभक्त सुतीक्ष्ण को आहार बनाने के उद्देश्य से यात्रा की। जैसे ही वे दोनों महान ऋषिभक्त के सामने गए, सुतीक्ष्ण ने उन दोनों ने अपने तपबल से भस्म कर दिया।
इस दम्पति की कर्कटी नाम की एक कन्या थी जिसका विवाह विराध नाम के एक राक्षस के साथ हुआ था। विराध को भगवान राम ने मार दिया जिसके बाद कर्कटी सह्य पर्वत पर अकेली रहने लगी। एक दिन वहां रावण का छोटा भाई कुम्भकर्ण आया और अकेली स्त्री देखकर उसने कर्कटी का बलात्कार किया और वापस लंका लौट गया। कुम्भकर्ण का वीर्य कर्कटी के गर्भ मे पहुंच गया जिससे उसे एक संतान प्राप्त हुई जिसका नाम भीम पड़ा।
दानव भीम अपने पिता के समान ही अत्यंत भयंकर, दुष्ट, दुराचारी और पापी था। एक समय जब उसकी माता ने उसे यह सारी घटना बताई तब उसने क्रोध मे आकर श्रीहरि विष्णु को हराने की सपथ ली और ब्रह्मदेव की तपस्या करने लगा। लम्बे समय तक तपस्या करने के बाद ब्रह्मदेव प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा जिसपर उसने नारायण को हराने वाली अपार शक्ति मांग ली।
शक्ति प्राप्त करके दानव ने स्वर्ग पर चढ़ाई की और इंद्र को जीत लिया। अपनी सहायता के लिए इंद्र ने श्रीहरि को बुलाया और ब्रह्मदेव के वरदान का सम्मान करते हुए पराजय स्वीकार की। गर्व से भरे हुए राक्षस ने पृथ्वी के अलग-अलग राज्यों पर चढ़ाई की और उसे जीत लिया। उस समय कामरूप देश के राजा शिवभक्त सुदक्षिण थे जिसको उसने हराकर बंदी बना लिया।
बंदी बने राजा और उनकी रानी राजवल्लभा दक्षिणा एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी अराधना करने लगे। इधर देवताओं ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें तब शिवजी ने उनको आश्वासन दिया और राजा सुदक्षिण की तपस्या दिखाकर कहा कि शीघ्र ही उन्हे ही इस समस्या से मुक्ति मिलेगी।
जब राजा सुदक्षिण शिवपूजा मे लगे हुए थे तभी किसी ने जाकर राक्षस भीम से कह दिया कि राजा कोई तप कर रहा है। राक्षस इतना सुनते ही क्रोध मे भरकर नंगी तलवार लिए आया और राजा को कुछ अनुष्ठान करते देख क्रोध मे शिवलिंग पर वार करने चल दिया। किंतु राक्षस शिवलिंग तक पहुंच पाता इससे पहले ही भगवान शिव विकराल रूप मे प्रकट हुए और उन्होनें हुंकार से भीम का नाश कर दिया।
राक्षस के वध के पश्चात सभी जन सुखी हुए और तब देवताओं और ऋषियों ने प्रार्थना की कि हे भगवन आप इस निंदित भूमि मे वास करके इसे परमपवित्र करें और तभी से शिवजी ने वहांं निवास किया और उस शिवलिंग का नाम भीमशंकर हुआ।
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