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बैद्यनाथ शिवलिंग की कथा (Story of Baidyanath Shivlingam) Mythology

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग


झारखंड के देवगढ़ मे यह मंदिर स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगों मे यह नौवें स्थान पर आता है।

सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है।

बैद्यनाथ शिवलिंग की कथा

बहुत समय पहले लंका का राजा रावण एक भीषण तपस्या कर रहा था। महान शिवभक्त राक्षस अपने एक-एक सिर चढ़ा रहा था। जब उसने अपने नौ सिर काट दिए और दसवां सिर काटने वाला ही था कि भगवान शिव वहां प्रकट हुए और प्रसन्न होकर वरदान मांगने को बोले। 

एक क्षण मे रावण के सभी सिर पहले जैसे स्वस्थ हो गए। उसने भगवान से लंका पधारने का अनुरोध किया। अंतर्यामी देवेश्वर मुस्कुराए और स्वयं एक लिंग के रूप मे आ गए किंतु एक शर्त रख गए कि जिस प्रथम स्थान पर उन्हे रख दिया जाएगा वहीं वे स्थापित हो जाएंगे।

रावण उस लिंग को लेकर जा रहा था कि शिवजी के खेल से उसे लघुशंका की तीव्र तलब लगी। परम पराक्रमी रावण लघुशंका की तलब को रोक न सका और एक ग्वाले को लिंग थमाकर मूत्र-त्याग हेतु गया।

एक क्षण मे ग्वाला थक गया और उसने शिवलिंग को नीचे जमीन पर रख दिया। नीचे रखते ही शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया जिसे रावण टस से मस ना कर सका और शिव जी से अन्य वरदान लेकर लौट गया। भगवान भोलेनाथ का यह लिंग ही बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है।

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