नंदिकेश्वर की कथा
शिवपुराण की कोटिरुद्रसंंहिता मे वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार एक ब्राह्मणी जिसका नाम ऋषिका था उसपर बालवैधव्य का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए वह ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने लगी। वह शिवजी की भक्ति मे कठोरव्रत का पालन करने लगी।
एक दिन जब वह अपनी कठिन साधना मे लीन थी, उसी समय मूढ़ नामक एक दुष्ट, बलवान तथा मायावी दैत्य कामवासना मे पीड़ित होकर वहां आया और ब्राह्मणी के रूप पर आसक्त होकर वह उसे कामपूर्ति के लिए याचना करने लगा।
परमतेजस्विनी, तपोनिष्ठ, धर्मपरायण, शिवभक्तिलीन ब्राह्मणी उस मायावी नीच के लोभ पर रत्ती भर भी ध्यान दिए बिना अपनी साधना मे तल्लीन रही। जब मायावी दुष्ट को यह दिखा कि यह स्त्री उसकी बात पर ध्यान तक नहीं दे रही तो इसे अपना अपमान समझकर वह दुराचारी ब्राह्मणी के साथ हिंसा करने को आगे बढ़ा।
स्वयं को संकट मे पाकर ऋषिका ने शिव-शिव नाम की रट लगाई और अपनी पवित्र भक्त की रक्षा के लिए भगवान प्रकट हो गए और उनके प्रकट होते ही उनके तेज से मूढ़ भस्म हो गया।
दैत्य के मरने के बाद भगवान उस स्त्री के पास आए और उसे बताया कि वे उसकी तपस्या-व्रत से प्रसन्न हैं और उसको वरदान देने के इच्छुक हैं।ऋषिका ने शिवजी की बात पर कहा कि हे भगवन आप मुझे अपने चरणों मे स्थान दें, आप मुझे अनन्य भक्ति प्रदान करें तथा इस स्थान पर स्थापित हों। तब भगवान शिव ने वहां नर्मदा नदी के किनारे अपना लिंगस्वरूप धारण किया जिसे नर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना गया।
जिस समय भगवान अपने लिंग स्वरूप मे स्थापित हुए उसी समय वहां भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु और देवी गंगा भी आए और भगवान की स्तुति करने लगे।
देवी गंगा ऋषिका के भाग्य की सराहना करते हुए बोली कि वे भी वर्ष मे एक बार नर्मदा मे आएंगी जहां वे नर्मदेश्वर महादेव की अराधना करेंगी। वहां वे अपनी उन सभी अशुद्धियों का त्याग करेंगी जो एक वर्ष मे पापियों ने स्नान करके छोड़ी है।
और तभी से वैसाख की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को देवी गंगा नर्मदा मे जाती हैं।
Comments
Post a Comment