Skip to main content

भगवान परशुराम की कथा| रोमांच की दुनिया। पौराणिक कथा। हिंदू धर्म। (Story of Bhagwan Parashuram)। Romanch Ki Duniya | Mythology | Hindu Dharma

भगवान परशुराम की कथा

महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु नाम की एक गाय थी जो सभी वैभवों से युक्त सभी इच्छाएं पूर्ण करती थी। उस समय हैहयवंश मे कृतवीर्य का पुत्र कार्तवीर्य अर्जुन सिंहासन पर आरुढ़ था। उसने दत्तात्रेय जी से वरदान मे सहस्त्रहाथ प्राप्त किए थे। वह परमप्रतापी क्षत्रिय शक्ति के मद मे मतवाला हो गया था। अनेक नगरों को जीतकर उसने अपने साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक कर लिया था और अब सुखपूर्वक शासन कर रहा था। 

एक समय सहस्त्रार्जुन वन मे शिकार करता थक गया तो पास ही महर्षि जमदग्नि के आश्रम मे उसने शरण ली। महर्षि ने राजा, उसके मंत्रियों, अनुचरों, अंगरक्षकों तथा सेना का कामधेनु गाय के प्रताप से खूब स्वागत-सत्कार किया। अर्जुन ने इस गाय को देखकर इसे लेना चाहा और अपने सैनिकों को गाय छीन लेने का आदेश दिया। महर्षि तथा उनकी पत्नी के अत्यधिक आग्रह के बाद भी अर्जुन का अहंकार कम ना हुआ और वह गाय लेकर चल दिया।

भगवान परशुराम उस समय आश्रम पर नहीं थे। जब वे आए और उन्हें पता चला तो सहस्त्रार्जुन पर बहुत अधिक क्रोध आया और उन्होनें उसी समय सहस्त्रार्जुन की राजधानी माहिष्मती पर धावा बोल दिया। माहिष्मती के द्वार पर वे अर्जुन से मिल गए जो राज्य मे प्रवेश कर रहा था। उन्होनें अर्जुन को ललकारा।

जब कार्तवीर्य अर्जुन ने देखा कि हाथ मे फरसा लिए भृगुवंशीय जमदग्नि पुत्र परशुराम की क्रोधाग्नि ज्वालामुखी भड़का रही है तो बिना एक क्षण के विलम्ब के उसने अपनी सेना को परशुराम पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। सम्पूर्ण सेना उस एक अकेले योद्धा से लड़ने के लिए दौड़ पड़ी। धनुष-तीर, तलवार, गदा, भाला आदि अनेकों अस्त्र-शस्त्रों की परशुराम पर वर्षा होने लगी किंतु महापराक्रमी परशुराम ने सभी अस्त्रों को अपने फरसे से काट दिया और सम्पूर्ण सेना का विनाश करके उन्होनें कार्तवीर्य अर्जुन का सर काट दिया और कामधेनु को लेकर वापस अपने आश्रम आ गए।

महर्षि जमदग्नि ने जब जाना कि परशुराम ने अर्जुन का वध कर दिया तो वे दुखी हो गए। उन्होनें परशुराम से एक वर्ष के प्रायश्चित्त करने का आदेश दिया। परशुराम चले गए।

उधर कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों ने महर्षि की हत्या कर दी। महर्षि की पत्नी रेणुका चीखती रही किंतु वे दुष्ट नहीं माने। रेणुका ने चीख-चीख कर  'हा राम! हा परशुराम' का विलाप किया। परशुराम ने मां का विलाप सुना तो दौड़ते आश्रम तक आ गए। आश्रम में जब उन्होने देखा कि उनके पिता की हत्या हो गई है और मां ने बताया कि कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों ने उनकी हत्या की है तो वे दुख और क्रोध के सागर मे डूबकर विलाप करने लगे और कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों को मारने का निश्चय करके निकल पड़े किंतु फिर वे रुक गए। दुख की उस घड़ी मे भी उन्होनें विचार किया कि अधर्म कहां है और जब उन्हें आभास हुआ कि अधर्म इन क्षत्रियों की युद्ध की भूख, हिंसा मे है तो उन्होने क्षत्रियों का विनाश करने का निश्चय किया।

कार्तवीर्य के उन पुत्रों के साथ ही उन्होनें अन्य सभी क्षत्रिय राजाओं का वध कर दिया जो अधर्म मे लिप्त होकर प्रजा का शोषण कर रहे थे। इसके बाद उन्होने बीस और बार अर्थात कुल इक्कीस बार पापी क्षत्रियों का विनाश किया और तब उन्हें शांति प्राप्त हुई और वे महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए।

 

Comments

Popular posts from this blog

केदारनाथ शिवलिंग की कथा(Story of Kedarnath Shivlingam) Mythology

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले मे हिमालय की गोद मे स्थित केदारनाथ धाम पांचवा ज्योतिर्लिंग तथा छोटा चार धाम मे से एक धाम भी है। सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है। केदारनाथ शिवलिंग की कथा भगवान शिव के पांचवे ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ है जिसकी पौराणिक कथा दी जा रही है। भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण बदरिकाधाम(बद्रीनाथ) मे रहकर तपस्या किया करते थे। एक बार उन्होने एक पार्थिवशिवलिंग बनाया और उसकी अराधना करने लगे। उन्होने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे शिवलिंग मे विराजकर उनकी प्रार्थना स्वीकार करें।  उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव उस केदारतीर्थ मे प्रकट हुए और वहीं स्थित हो गए। भगवान के इस स्वरूप का नाम केदारनाथ हुआ।

राखी: भाई बहन का प्रेम । रोमांच । rakhi | love between brother and sister | The Romanch |

राखी पिछले चार दिन से सीमा उदास थी। हो भी क्यों न , राखी जो आ रही थी। हर बार उसके भैया उसके घर आते थे। दस साल के बच्चे की मां अपने भैया के सामने बच्ची हो जाती थी। प्रेम से राखी बांधती थी। जबरदस्ती मिठाई खिलाती थी और रुपए के लिए जिद करती थी। शादी के इतने सालों के बाद जब दूसरों की अपेक्षाओं मे वो कुशल गृहिणी , गम्भीर स्त्री , परिपक्व मां थी , वहीं अपने भैया के लिए वह अब भी लाडो थी , गुड़िया थी जिनके सामने वह एक साथ हंस भी सकती थी , रो भी सकती थी और गुस्सा भी हो सकती थी। इतने सालों से जिस भाई से इतना प्यार , इतना दुलार करती थी वह इस साल नहीं आ सकता था यह सोचकर वह छुप-छुप कर रोए जा रही थी। कैसे आता उसका भाई , वह तो आठ महीने पहले इस संसार को छोड़ कर ही चला गया है। महीनों तक वह रोई , बीमार भी हो गई और फिर ठीक होकर घर आ गई। रोना तो बंद हो गया था पर भैया की सूरत आंखो से न गई थी , उनका दुलार न भूल पायी थी। रह-रह कर वो याद आ ही जाते थें लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य हो गई। रोना बंद हुआ पर चार दिन पहले जब बाजार मे राखियों की दूकान देखी तो फिर से वही चालू हो गया। गोलू ने तो पूछा ...

असत्य का दिया। कविता। अभिषेक सिंह। हर्ष वर्धन सिंह। रोमांच। Asatya ka diya | poem | Abhishek Singh | Harsh vardhan Singh | Theromanch

" असत्य का दिया" नमस्कार दोस्तों! मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आएं हैं रोमांच पर। दोस्तों  आज मै आपके सामने एक कविता प्रस्तुत कर रहा जिसे भेजा है अभिषेक सिंह ने। आइए पढ़ते हैं उनकी कविता को। सिमट रहा जो शून्य में वो सत्य खण्ड खण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है , तिलमिला रहा है सत्य घुट घुट प्रमाण में , लग गए लोग सारे छल कपट निर्माण में , मृषा मस्तक पे अलंकृत सत्यता को दण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   पसर रही है पशुता मनुष्य आचरण में भी , सिमट रही मनुष्यता मनुष्य के शरण में ही , व्यथित स्थिति को निरूपित दूषित सा चित्त है , षड्यंत में लगे हैं सब दोगला चरित्र है। कलुष कामित अतः करण फिर भी घमण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   इक अदृश्य सी सभी के हस्त में कटार है , पलक झपकते ही ये हृदय के आर पार है , विष धरे हृदय में पर मुख में भरे फूल हैं , पुष्प सदृश दिख रहे मगर असल में शूल हैं , विकट उदंडता यहाँ निर्लज्यता अखण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   ...