राम की दंड नीति (समुद्र को दंड) Ram's punishment to The Ocean
जब जब बात भगवान श्रीराम की आती है, हमारे सामने सम्पूर्ण रामायण मे राम बनने वाले अरुण गोविल की तस्वीर आ जाती है और वो भी सदैव मुस्कुराने वाले राम। हम राम की बातें करते हैं जो उनका वह अपार प्रेम, उनकी करुणा, दया, सत्य, उनका सामान्य जीवन हमारे सामने आता है। तपस्वी राम, शांत राम का चित्र हमारे मन मे इतना दृढ़ हो चुका है कि उनके क्रोध मे भी हमे शांति ही दिखाई देती है।
वैसे तो वे सदैव प्रसन्न रहे किंतु जीवन के कुछ हिस्सों मे उन्होने कुछ क्षणों के लिए क्रोध का धारण किया यद्यपि वे सदैव विवेकशील रहे। उनके क्रोध के क्षणों मे एक क्षण तब का है जब वे समुद्र से रास्ता मांग रहे थे।
रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड मे गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि जब विभीषण प्रभू राम के पास आए और अपनी व्यथा बताकर उन्होने स्वयं को भगवान के समक्ष समर्पित कर दिया तब भगवान ने उसी क्षण समुद्र का जल लेकर उनको लंका का राजा घोषित कर दिया।
इसके बाद चर्चा समुद्र पार करने की होती है जिस पर विभीषण कहते हैं-
प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि।
बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि॥
(दोहा 50)
समुद्र राम से आयु मे बड़े थे इसलिए प्रथम उनसे विनती ही करनी चाहिए थी अतः विभीषण के ऐसा कहने पर भगवान राम समुद्र के पास गए और हाथ जोड़कर विनती करने लगे। लगभग 3 दिन बीत जाने पर भी समुद्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो भगवान को क्रोध आ गया और तब उन्होने दंड के विषय मे कहा जिसे हम आज जानेंगे।
भगवान राम ने समुद्र को दंड देने के लिए एक पंक्ति कही "भय बिनु होइ न प्रीति" अर्थात बिना भय के काम नही होता।
इसके पश्चात एक-एक करके भगवान ने उपमाएं दी-
सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती।सहज कृपन सन सुंदर नीती॥
मूर्ख व्यक्ति से प्रार्थना नहीं की जाती और न ही किसी कुटिल चालाक आदमी से प्रेम किया जाता है। इसी तरह कृपण अर्थात कंजूस व्यक्ति से नीति का वर्णन करना व्यर्थ है।
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
जो ममतारत है यानी मोह मे फसा व्यक्ति है उससे ज्ञान की बात करना और जो अधिक लोभी है उससे वैराग्य की बात करना अर्थहीन है।
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बए फल जथा॥
क्रोधी व्यक्ति से शांति की बात करना तथा कामी व्यक्ति से भगवान की कथा सुनाना उसी तरह बेकार है जैसे ऊसर यानी बंजर जमीन मे फल को बोना।
काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥
जिस प्रकार केले से अधिक प्यार करने पर भी उसे काटना ही पड़ता है, कितना भी सींच लो उससे फल नही आता है वैसे ही नीच व्यक्ति को डाटने से ही काम होता है, बिनती से वह नहीं मानता।
किसी भी गलती की, अपराध की एक सीमा होती है जिसके बाद दंड देना अनिवार्य हो जाता है। भगवान राम जो परमपूर्ण परमेश्वर हैं उन्होने अपने जीवन की अनेकों घटनाओं मे उचित कार्य करके समाज को जीने की सर्वोत्तम राह बताई।
यदि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं। नीचे दी गई लिंक से आप हमें फॉलो कर सकते हैं।
तो दोस्तों हम मिलते हैं अगले आर्टिकल मे तब तक के लिए जय सिया राम॥
Comments
Post a Comment