नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
गुजरात के द्वारका से 17 किलोमीटर दूर बसा शिवजी यह मंदिर ज्योतिर्लिंगों मे से एक है।
सभी ज्योतिर्लिंगों की कथा शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता से ली गई है।
नागेश्वर शिवलिंग की कथा
एक समय दारुका नाम की एक राक्षसी थी जो देवी पार्वती की अनन्य भक्त थी। उसने वरदान प्राप्त किया था कि वह जहां-जहां जाएगी वहां सोलह योजन विस्तार का वन उसके साथ जाएगा। वह उसी वन मे अपने पति दारुक के साथ रहती थी।
दारुक पापी और दुराचारी था जो सदैव लोगों को तंग किया करता था। ऋषि-मुनियों के यज्ञ आदि मे विघ्न डाला करता था। उससे तंग होकर सभी महर्षि और्व की शरण में गए। महर्षि और्व ने दारुक तथा उसके लोगों को श्राप दिया कि ये राक्षस यदि पृथ्वी पर प्राणियों की हिंसा या यज्ञों का विध्वंस करेंगे तो उसी समय अपने प्राणों से हाथ धो बैठेंगे।
ऐसे श्राप से देवताओं को बड़ा लाभ हुआ और उन्होनें राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। राक्षस यदि लड़ाई करते तो श्राप के कारण जीवन समाप्त होता और यदि न करते तो देवताओं के हाथों मारे जाते। ऐसे समय मे दारुका ने एक मार्ग निकाला।
दारुका जहां जहां-जाती, वहां-वहां वन उसके साथ जाता। इसीलिए वह सभी राक्षसों को लेकर समुद्र की ओर गई और समुद्र मे उसने उस वन को स्थापित किया और रहने लगी। राक्षस अब समुद्री वन मे रहकर समुद्र से होकर जाने वाले लोगों को परेशान करते, जहाजों को लूटते।
एक दिन जब राक्षसों ने सुप्रिय नाम के एक शिवभक्त वैश्य को लूट कर उसे बंदी बना लिया। भय के इस वातावरण मे उसने सभी को दिलासा दी और पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय जपने के लिए कहा। सभी को मंत्र जपते देख राक्षस उन सभी को मारे दौड़े कि एक विवर से शिवजी तथा चार द्वारों वाला एक मंदिर प्रकट हो गया जिसमें अद्भुत ज्योतिर्लिंग चमचमा रहा था। उनके साथ उनका परिवार भी था।
सुप्रिय ने भगवान की पूजा शुरू कर दी और तब शिवशम्भू अपने हाथों मे पाशुपतास्त्र लेकर राक्षसों को समाप्त करने लगे। राक्षसों को, उनके सेवकों को तथा उनके उपकरणों को समाप्त करते हुए शिवजी ने घोषणा की कि आज से इस स्थान पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्रों के धर्म का ही पालन होगा। यहां सिर्फ सद्गुणी धर्मी ही रहेंगे, तमोगुणी राक्षस नहीं रहेंगे।
राक्षसों के आस्तित्व को खतरे मे देखकर दारुका देवी पार्वती के चरणों मे गिरकर स्तुति करने लगी। देवी ने प्रसन्न होकर उससे बोली, "बताओ तेरे लिए क्या करूं?"
दारुका ने उससे अपने वंश की रक्षा मांगी। देवी ने उसे आश्वस्त किया कि वे उसकी तथा उसके वंश की रक्षा करेंगी और तब माता पार्वती ने भगवान शिव से राक्षसों को ना मारने के लिए कहा। भगवान शिव ने तब राक्षसों को जीवित छोड़ दिया और वहीं बस गए।
वह स्थान जहां वे बसे उसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा गया। देवी पार्वती का भी एक रूप वहां विद्यमान हुआ जिसे नागेश्वरी कहते हैं।
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