षट विकार प्रगति मे बाधा मनुष्य का जन्म प्रगति के लिए हुआ है। यह प्रगति आध्यात्मिक, आत्मिक, मानवीय, व्यवहारिक किसी भी प्रकार की हो सकती है। प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है प्रगति करना। इस प्रगति के लिए संघर्ष करने पड़ते हैं, उनसे उबरना पड़ता है और आगे बढ़ना होता है किंतु कभी-कभी हमारी जिजीविषा या हमारी असफलता हमे एक ऐसे बंधन मे जकड़ लेती है कि हम उससे निकल नहीं पाते और हमारी प्रगति बाधित हो जाती है। महापुरुषों ने ऐसे छः दोष बताए हैं जो निरंंतर हमें रोकते हैं। षट विकार कर्म करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है। चलते रहना उसकी स्वभाविक वृत्ति है किंतु किसी एक हीनता के कारण उसका रुकना उचित नहीं है। इन बाधकों को उखाड़ फेकने के लिए पहले इनको जान लेना आवश्यक है। ये कुछ इस प्रकार हैं- 1. काम- मनुष्य जीवन मे इच्छाओं का होना आवश्यक है किंतु उनका नियंत्रित होना भी आवश्यक है। प्रत्येक धर्म-संस्कृति मे कामी पुरुष को नीच बताया गया है क्योंकि कामी पुरुष ना केवल शारीरिक रूप से दुर्बल होता है बल्कि उसकी नैतिकता का भी पतन हो जाता है। उसे अपनी इच्छाओं के अतिरिक्त किसी उचित-अनुचित का बोध नहीं रहता है। गोस्वामी...
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