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तपस्वी hindi kahani (story in hindi), short story | रोमांच । The Romanch |

तपस्वी

Tapaswi is a short story from Romanch. Irony on blind belief of people. Hindi Kahani, Hindi short Story, inspired by true story.

(कहानी)


                                           image source  https://www.pinterest.com.au/pin/194640015122122996/

एक बार की बात है एक सनकी आदमी कुतुब मीनार के पास से गुजरा। मीनार की ऊंचाई और आभा को देखकर उसके मन मे उसके ऊपर चढ़ने को किया। जब वह मीनार की सर्वोत्तम ऊंचाई तक जा रहा था, तभी उसे वहां के सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया। सनकी जिद करने लगा किंतु उसे ऊंचाई पर जाने की स्वतंत्रता ना दी गई। हारकर वह बाहर आ गया किंतु उसके मन मे सनक आ गई थी। वह इधर उधर लगा। 
एक दिन उसे एक सूने क्षेत्र मे एक वीरान पड़ा मंदिर मिला। वह मंदिर की छत पत्थर के पांच अत्यधिक ऊंचे स्तम्भों पर बनाई गयी थी किंतु समय के साथ वह जर्जर हो गई थी। इस मंदिर से कुछ दूरी पर कुछ गांव बसे हुए थे किंतु वहां से कोई भी यहां पूजा-पाठ करने नही आता था। 
सनकी उस मंदिर के स्तम्भों को देखने लगा तभी उसका ध्यान एक स्तम्भ पर गया जिसके ऊपर की छत टूट गई थी तथा बाकी के मंदिर से अलग हो गई थी। सनकी के मस्तिष्क मे मीनार की बात आ गई और उसने अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए इस स्तम्भ पर चढ़ने की सोची। पास के गांव से वह एक सीढ़ी ले आया और उसको स्तम्भ से सटा दिया किंतु सीढ़ी की लंंबाई पर्याप्त ना थी। वह एक और सीढ़ी ले आया और दोनों को बांधकर उसने स्तम्भ से सटाया। यह संयुक्त सीढ़ी भी स्तम्भ के शीर्ष से एक हाथ छोटी पड़ रही थी किंतु सनकी की सनक के आगे अब उसका कोई महत्व ना था।

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वह चढ़ने लगा। सीढ़ी के शीर्ष पर पहुंचकर उसने और ऊपर जाने के लिये स्तम्भ को पकड़ने की कोशिश की और सीढ़ी के बांस पर पैर रखकर वह चढ़ गया किंतु जब उसने ऊपर के लिये दम लगाया तो उसका पैर तिरछा होकर सीढ़ी को लगा और उस धक्के से सीढ़ी खिसककर नीचे गिर गई। अब सनकी ऊपर रह गया और सीढ़ी जमीन पर।
अब वह बहुत परेशान हुआ। एक तो वीरान इलाका जहां कोई ना आता ना जाता और दूसरा वो अब ऊपर ही फंसा हुआ। कुछ घंटे तक वह ऊपर ही इधर उधर देखता रहा कि कोई मदद करने आए किंतु कोई ना आया।
फिर उसने सामने की तरफ देखा तो एक आदमी चला आ रहा था। सनकी ने उसे पहचान लिया। यह वही आदमी है जिसकी उसने सीढ़ियां ली है। उसने नीचे आकर ऊपर की ओर देखा तो क्या देखता है कि वह आदमी ऊपर पालथी जमाए बैठा है।
यह आदमी जिसका नाम चित्तू है जोर से आवाज लगाकर पूछता है, "क्या आप ऊपर फंस गए हैं?"
सनकी ने सोचा कि यदि ये कहूं कि हां फस गया तो बड़ी बेज्जती होगी, कहा, "नहीं बल्कि मै तो यहां अपनी मर्जी से रुका हूं"
चित्तू ने एक क्षण कुछ सोचा और फिर अपनी सीढ़ी लेकर चला गया। सनकी अब और व्याकुल हो गया किंतु कुछ ना बोला। थोड़ी देर बाद नशेड़ियों के चार लोगों का एक समूह आया। सनकी उस समय दूसरी तरफ मुंह करके बैठा हुआ था। उस नशेड़ियों मे एक ने उसे देखा तो अपने साथियों से उंगली दिखा-दिखा के कहने लगा, "वो देखो वो कौन है?"
औरों ने भी देखा। वह हंसते हुए बोला, "लगता है हमारी तरह कोई मस्त है जो मजे कर रहा है"
दूसरे ने अपना मुंह खोला, "नहीं! मुझे तो लगता है कि ये बेचारा गम में डूबा आशिक है जो मरने के लिए इधर आया है।"
तीसरा हाथ हिलाता हुआ आगे आया और ध्यान से देखते हुए बोला, "देख नहीं रहे कि वो बीच-बीच मे आसमान की तरफ देख रहा है। लगता है कि यह स्वर्ग पर चढ़ना चाहता है और इसने इतना रास्ता तय भी कर लिया है।"
चौथा जो अब तक चुप था वह इन सबसे जोर आवाज मे बोला, "तुम सब निरी बुद्धि के हो। देखो वह कैसे पालथी जमाए बैठा है। वह एक तपस्वी है जो तप करने के लिए बैठा है।"
सभी उसकी बात को हां-हां करने लगे और चारों जाकर सनकी के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। ऊपर से उसने जब सभी को हाथ जोड़े देखा तो उसे समझ ना आया कि क्या कहे किंतु उन चारों मे से एक ने कहा, "तपस्वी जी हमे आशीर्वाद दीजिए" 
सनकी जो उनकी बात ना समझ पाया था, उसने झल्लाकर कहा, "चले जाओ यहां से।"
उन नशेड़ियों के लिए यह आम बात थी हर साधु-संत और अच्छा आदमी उनसे यही कहता है और इसलिए अब उन्हे पूरा विश्वास हो गया कि यह कोई पहुंचा हुआ महात्मा है जो कठिन तपस्या कर रहा है।
उन लोगों ने शीघ्र ही आसपास के गांवो मे यह चर्चा कर दी और देखते ही देखते शाम तक लोग उस तपस्वी को देखने आने लगे जो कठिन तपस्या के लिए एक स्तम्भ पर चढ़ा है। सनकी भी जान गया कि ये लोग उसे तपस्वी समझ रहे और हाथ जोड़े खड़े है, इसीलिए उसने पालथी जमाकर आंखे बंद कर लिया।

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सुबह होते-होते लोगों का जत्था का जत्था आने लगा। सनकी ऊपर बैठा यही सब देख रहा था। लोग अपने घरों से दूध, फल, फूल, धूपबत्ती और पूजा के अन्य सामान ला रहे थे और उस स्तम्भ पर चढ़ाकर तपस्वी से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। गांव के एक माली ने आकर वहां फूल-माला बेचना शुरू कर दिया कुछ पानी मिला दूध जिसे चढ़ाया जाए और कुछ ने अन्य दूकानें खोल दी। दर्शन करने वालों के लिए गांव के मिट्ठू सेठ ने पूड़ी और सब्जी की दूकान लगाई। आस-पास की सभी बाजारें बंद हो गई और सभी दूकानें उठकर इसी मंदिर के चारों तरफ लग गई। 
इन सब मे उन चार नशेड़ियों की चांदी हो गई। उन्होने स्तम्भ के चारों ओर बांस गाड़कर एक घेरा बना दिया और चारों ओर रस्सियां बांध दी।
वे एक-एक करके भक्तों को आने देते और भक्त पूजा करते। स्तम्भ के पास एक दान पेटी रख दी गई जिसमें सभी कुछ ना कुछ डाल देते।
खबर यह फैल गई कि तपस्वी बड़ा ही सरल हृदय है। वह सबसे प्रेम करता है। नशेड़ी उसके लिए कितने प्रिय हैं इसका सीधा उदाहरण तो स्तम्भ के पास मिल जाता है। वह सीढ़ी वाला भी लोगों को तरह-तरह की कथाएं बता रहा था कि वह अलौकिक शक्ति को पहचान गया था तभी उसने उसे अपनी सीढ़ी दी। उसकी पत्नी बहुत सी अन्य कथाएं कह रही थी कि किस तरह उस तपस्वी ने उसके घर अपना एक रुमाल छोड़ दिया जो उसके आशीर्वाद का प्रतीक है। वास्तव मे वह उस रुमाल को भूल आया था जिसे उस औरत ने एक चौड़ी मेज पर रखकर उसकी पूजा शुरू कर दी। लोग भी उसे पूजते और वहां पर कुछ रुपए-पैसे छोड़ देते।
इन सबके बीच वह तपस्वी बेचारा ऊपर बैठा। दो दिन उसने ना कुछ खाया ना पिया ना कुछ और किया। अब उसके पेट मे खलबल हो रही थी। उसे मैदान जाना था जिसके लिए उतरना अनिवार्य था किंतु कैसे?
जब उसे कोई और रास्ता ना दिखा तो उसने उन चारों की ओर इशारा किया और बताया कि उसे नीचे उतरना है। आसपास खलबली मच गई। लोग उस महान तपस्वी के पैर छूने के लिए छटपटाने लगे। एक बड़ी सीढ़ी मंगाई गई जिसे फूलों-मालाओं से सजाया गया और उसे लगाया गया। तपस्वी नीचे आया। उसके चार प्रमुख शिष्य उसके चारों ओर घेरा बना लिए फिर भी लोग पैर छूने के लिए आ रहे थे। भीड़ का कोई अंत ना था। इधर तपस्वी के पेट मे खलबली मची हुई थी। उसे समझ नही आ रहा था कि किस तरह इन सबसे पीछा छुड़ाएं। उसके भक्त पैर छूते जा रहे थे जिन्हे वह हटाने के लिए हाथ से सिर को सहला देता था और भक्त उत्साहित और खुश होकर पीछे चले जाते थे। उन सभी का जीवन धन्य हो गया था जो इस सिद्ध महात्मा के करुण हाथ उनके ऊपर रख दिए गये थे। 
जब कोई तरीका ना मिला तो तपस्वी ने कहा, "पास एक जंगल है जहां मुझे कुछ सिद्धि करनी है। मुझे वहां ले चलो।
आसपास कोई जंगल तो था नहीं तो भक्त चकित रह गए। फिर कहीं जंगल के लिए तपस्वी रुष्ट ना हो जाएं, एक भक्त बोला, " बाबा यहां पास मे एक पुरानी हवेली है जो अब खंडहर हो गई है। उसका बाग-मैदान सब झाड़ से भर गया है और पास का तालाब भी सूख ही रहा है। अगर आपकी सिद्धि वहां हो तो हम वहां ले चले।

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तपस्वी को तो यही जगह चाहिए थी उसने मुस्कुराकर उस भक्त के सिर पर हाथ रखा और उसे आशीर्वाद दिया और चलने का इशारा किया। वह भक्त आगे आगे चलने लगा और बाबा पीछे-पीछे और उनके पीछे सारी भीड़। 
वह भक्त जो तपस्वी को ले जा रहा था उसके परिवारजन पीछे चल रहे थे और गर्व से बता रहे थे कि यह हमारे घर का है, कोई कहता कि मेरा बेटा है तो कोई उसे भाई बता रहा और कोई उसे अपना पति।
इस तरह वो तपस्वी उस खंडहर मे पहुंच गया। फिर सारी भीड़ को इशारा करके उसने कहा कि उसकी सिद्धि अकेले मे ही हो सकती है अतः सभी यहींं रुक जाएं।
सारे लोग रुक गए। तपस्वी अंदर गया और यह देखकर कोई नही है यहां उसने दो दिनों से अधूरी रही अपनी क्रिया को पूरी किया और फिर तालाब के बचे हुए पानी से हाथ पैर धोकर वापस तो भीड़ तो वंंही खड़े पाया। 
फिर तो यह नित्य का कर्म हो गया। सुबह तपस्वी अपनी सिद्धि के लिए इस खंडहर मे आता और कुछ समय पश्चात लौट जाता। रात के समय जब सब सो रहे होते तब वह नीचे उतरता और खाने पीने की सामग्री जो भक्त चढ़ा देते उसे लेकर ऊपर चला जाता और वहीं खाता। 
दिन ब दिन भक्तों की संख्या बढ़ती गई। वह जो कभी वीरान पड़ा मैदान था, अब एक बड़े मेले मे बदल गया था। तरह-तरह के लोग जिनमें रोगी, दुखिया सभी थे वे आते और उस  स्तम्भ की परिक्रमा करते, तपस्वी को नमन करते और जाते। जो इलाज़ दवाई आदि के द्वारा ठीक हो जाते वे इसके लिए तपस्वी को धन्यवाद करते, उसका यशोगान करते। यदि कोई ना ठीक होता तो लोग यही कहते कि कोई बहुत बड़ा पाप किया था जो तपस्वी जी की कृपा ना हुई।
इस तरह तपस्वी की कृपा चलती रही उस रात तक जब ठंड की एक बारिश मे भीगने के कारण वह बीमार पड़ गया और बचने का कोई रास्ता ना सूझने के कारण वहां से नीचे उतर आया। सभी को सोता छोड़ उसने दानपेटी से सारा धन निकालकर एक झोले मे रखा और हाथों मे एक दर्जन केले को लेकर एक-एक खाता वह भीगा हुआ तपस्वी उस मेले से निकलकर ना जाने कहां चला गया।

समाप्त।

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