श्रीकृष्ण का संदेश है-आत्मा की स्वतन्त्रता का,
साम्य
का, कर्मयोग का और बुद्धिवाद का।
Shri Krishna's message to all
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अपने जीवन के प्रत्येक चरण में, प्रत्येक कार्य में उन्होनें जीवन जीने की कला सिखाई। स्वर्ग के लालच को मिथ्या बताकर जीवन की मुक्ति की राह से संसार को परिचित कराया। निःस्वार्थ भाव से कर्म की महत्ता बतायी और उदाहरणों से भी उसे सिद्ध किया।
वे जन्म से राजा
नहीं थे, ना ही राजकुमार थे किंतु अपनी क्षमताओं के बल पर सम्पूर्ण भारत के सम्राट हो सकते थे किंतु हुए नही।
सौन्दर्य, बल, विद्या, वैभव, महत्ता,
त्याग
कोई भी ऐसे पदार्थ नहीं थे, जो अप्राप्य रहे हों। वे पूर्ण काम
होने पर भी समाज के एक तटस्थ उपकारी रहे। जंगल के कोने में बैठकर उन्होंने धर्म का
उपदेश काषाय ओढ़कर नहीं दिया; वे जीवन-युद्ध के सारथी थे। उसकी
उपासना-प्रणाली थी-किसी भी प्रकार चिंता का अभाव होकर अन्तःकरण का निर्मल हो जाना,
विकल्प
और संकल्प में शुद्ध-बुद्धि की शरण जानकर कर्तव्य निश्चय करना। कर्म-कुशलता उसका
योग है। निष्काम कर्म करना शान्ति है। जीवन-मरण में निर्भय रहना, लोक-सेवा
करते कहना, उनका संदेश है। वे आर्य संस्कृति के शुद्ध
भारतीय संस्करण है। गोपालों के संग वे पले, दीनता की गोद
में दुलारे गये।
अत्याचारी राजाओं के सिंहासन उलटे। अनगिनत बलोन्मत्त नृशंसों के
मरण-यज्ञ में वे हँसने वाले अध्वर्यु थे। इस आर्यावर्त्त को महाभारत बनाने वाले
थे। वे धर्मराज के संस्थापक थे। सबकी आत्मा स्वतंत्र हो, इसलिए समाज की
व्यावहारिक बातों को वे शरीर-कर्म कहकर व्याख्या करते थे।
क्या यह पथ सरल नहीं,
क्या
हमारे वर्तमान दुःखों में यह निवारक न होगा?
सब प्राणियों से प्रेम व करुणा रखने वाला यह शान्तिपूर्ण शक्ति-संवलित मानवता का ऋतु पथ हमारे लिए ही तो है और हमें इस पर चलना है।
आज संसार में सभी पंथों के ठेकेदार जिस ढांचे की मृतशैया पर रो रहें है उसी से मुक्ति पाने के लिए उन्होने गीता का ज्ञान दिया।
वास्तव मे मुक्ति का मार्ग हमारे सामने ही खुला हुआ है किंतु हम उसकी ओर देखना ही नही चाह रहे। श्रीकृष्ण की कृपा रही तो बहुत जल्द हम उसको देखेंगे।
jakkas
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