कभी-कभी ऐसी कहानी आ जाती है सामने की मन करता है कि बस इसे पढ़ते रहें..पढ़ते रहें..पढ़ते रहें।
थायस
नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच की दुनिया मे।
पिछले रविवार जब मै कुछ पढ़ने के लिए ढूंढ़ रहा था तब एक ऐसी किताब मेरे सामने आ गई जिसके नाम से मुझे उसको पढ़ने की जिज्ञासा हुई और फिर पढ़ने लगा। पढ़ते हुए जो मुझे महसूस हुआ उसके बारे मे क्या कहना। पढ़ते हुए मन यह जानने के लिए आतुर तो हो ही रहा था कि 'फिर क्या हुआ' पर भीतर से ये आवाज जोर जोर से चीख रही थी कि ये कहानी कभी खत्म ना हो। एक ऐसी कहानी जो अपने आप को इतना नियंत्रित किए है कि वो इधर उधर जा नही सकती और इतनी शक्तिशाली लेखन कला और पटकथा कि आप को कहीं और जाने नही देगी।
ये कहानी है फ्रांस के लेखक एनाटॅल फ्रांस(Anatole France) की जिसका नाम है थायस।
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कहानी का आधार
थायस, सन 1890 मे प्रकाशित एक प्रसिद्ध उपन्यास है जिसका दर्जन भर से ज्यादा भाषाओं मे अनुवाद किया गया है। यह उपन्यास चौथी शताब्दी की एक इसाई धर्मगुरू सेंट थायस पर आधारित है जिन्होने जीवन के एक अंधेरे से निकलकर इसाई पंथ को स्वीकारा और अपना शेष जीवन ईश्वर की भक्ति मे बिताया।
कहानी के गुण
अपने समय के प्रसिद्ध तथा नोबल पुरुस्कार विजेता एनाटॅल फ्रांस ने इस कहानी को जो सजीवता प्रदान की है वह अविस्मरणीय है। बिना किसी रहस्य को छिपाए कहानी सीधी चली जाती है।कहानी के प्रत्येक पग पर ईश्वर की सर्वशक्ति, अध्यात्म, त्याग का महत्व, ईशू की दया-महिमा, सांसारिक वस्तुओं के प्रति उपेक्षा, पाप भावना के भय, दर्शन, शास्त्र व विभिन्न मतों की प्रशंसा के मध्य इसाई मत की श्रेष्ठता का वर्णन है।
मुख्य रूप से कथा मनुष्य की वासना के लगाव की निंदा करती है तथा यह दिखाती है कि जो व्यक्ति ईश्वर से प्रेम करके इन चीजों का लगाव छोड़ देता है वह परमसुख को प्राप्त हो जाता है।
मुख्य कहानी
कहानी नील नदी से प्रारम्भ होती है जहां पर अनेकों संत रहकर तप-साधना आदि किया करते हैं। ये सभी अपने जीवन के किसी हिस्से मे पाप मे रत थे और जब इनको सांसारिक वस्तुओं की निरर्थकता का आभास हुआ तब ये ईश्वर की शरण मे आ गए और कठिन तप-साधना शुरू कर दी। इन्ही संतो मे एक संत पॉफ्नूसियस(Paphnutius) को अलेक्जेंडरिया मे रहने वाली एक वेश्या थायस की याद आई जो नगर के अनेकों सम्पन्न युवाओं का जीवन दूषित करती है। उस संत के हृदय मे उस वेश्या के लिए करुणा का जन्म हुआ और उसने उस वेश्या को ईश्वर की भक्ति मे लाने के लिए अलेक्जेंडरिया जाने का निर्णय किया। वहां पहुंचकर उसकी मुलाकात थायस के साथ अन्य कई सम्पन्न लोगों से हुई जो दर्शन-ज्ञान-शास्त्र आदि के ज्ञाता होते हैं किंतु जिनका मन शारीरिक विषयों मे लगा रहता है। वह किसी तरह थायस को समझा कर राजी कर लेता है और वह इसाई मत स्वीकार कर लेती है।
थायस ने अब तक जो पाप किए थे उनके प्रायश्चित के लिए पॉफ्नूसियस उसे एक आश्रम मे रखने का निर्णय लिया जिसके लिए वे दोनों रेगिस्तान से होकर निकलते हैं रास्ते मे संत को उन सभी पर जिन्होने थायस के साथ सम्बंध बनाए थे और खुद थायस के ऊपर अनियंत्रित क्रोध आता है किंतु जब थायस के पैरों से खून निकलता है तो उसका क्रोध समाप्त हो जाता है और वह रोने लगता है। उसका यूं साधारण मनुष्यों की तरह व्यवहार करना उसे स्वयं नही समझ आता है।
अलबीना नाम की एक बूढ़ी संत के आश्रम मे थायस को प्रायश्चित के लिए एक कोठरी मे बंद करके वह अपने आश्रम मे आ जाता है किंतु उसके मन से थायस की याद नही जाती।वह दिन रात इसी कोशिश मे रहता कि वह थायस को ना याद करे किंतु थायस की याद उससे नही जाती और फलस्वरूप कई सारे अपशगुन होते हैं।
कहानी का अंत बड़ा ही मार्मिक और दैवीय है। जहां एक ओर पॉफ्नूसियस की तीव्र वेदना का बड़ी ही निर्ममता से वर्णन है वहीं दूसरी ओर थायस की दैवीयता का भली प्रकार यशोगान है।
सम्पूर्ण कहानी पाठकों को बांध कर रखती है। शरीर की नश्वरता और ईश्वर की शाश्वत शक्ति के वर्णन मे लेखक सफल हुआ है। व्यक्ति की भीतरी बुराई किस तरह उस पर हावी होती है इसका प्रत्यक्ष दर्शन होता है। पूरी कहानी मे कई बार धर्म चर्चा होती है, सत्संग होता है जिसमे सभी मतों को के साथ अनुकूल व्यवहार किया गया जबकि इसाई मत की सर्वोच्चता रखी गई है।
अंग्रेजी भाषा मे पढ़ने के लिए यह कहानी अमेजॉन(किंडल एप्प) पर ई-बुक के रूप मे उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी जा रही है।
इसके अतिरिक्त इसका हिंदी अनुवाद मुंशी प्रेमचंद जी ने अहंकार(कुछ किताबों मे अलंकार भी लिखा हुआ है) नाम से किया है जिसकी लिंक भी नीचे दी जा रही है।
तो जाइए और पढ़िए और फिर बताइए कि कैसी लगी आपको ये किताब। तब तक मै भी कोई और किताब पढ़ लूं। मिलते हैं फिर एक और रोमांचकारी कहानी के साथ तब तक के लिए नमस्कार।
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