अमीश त्रिपाठी की शिवरचना त्रय-
आज के समय कोई आध्यात्म का प्रेमी पाठक हो और अमीश को ना जानता हो ऐसा होना मै असम्भव मानूंगा। किंतु फिर भी हो सकता है कि कुछ लोग उनके बारे में ना जानते हों। आज मै आप को अमीश त्रिपाठी व उनकी पहली सिरीज शिवरचना त्रय के बारे मे बताउंगा।नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच की दुनिया मे।
अमीश त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश के बनारस शहर से ताल्लुक रखने वाले अमीश 1974 मे मुम्बई में पैदा हुए थे। मुम्बई, उड़ीसा, तमिलनाडु आदि जगहों पर शिक्षा प्राप्त करते हुए I.I.M. करने कोलकाता गए और उसके बाद एक बैंकर के रूप मे नौकरी प्रारम्भ कर दी। अपनी नौकरी मे रहते हुए ही अमीश ने अपनी प्रारम्भिक दो पुस्तकें पूर्ण की। वर्तमान तक उन्होने 8 किताबें पूरी की हैं और रामचंद्र सीरीज की चौथी पुस्तक पर कार्य कर रहे हैं।
आइए हम उनकी कुछ पुस्तकों के बारे मे जानते हैं।
1. मेलुहा के मृत्युंजय (The Immortals of Meluha)
अमीश की प्रथम पुस्तक मेलुहा के मृत्युंजय भगवान शिव पर आधारित शिवरचना त्रय (Shiva Trilogy) का प्रथम भाग है। शिव को एक तिब्बत के एक पर्वतीय कबीले का मुखिया बनाकर कहानी प्रारम्भ होती है जिसमें वह अपनी युवावस्था मे है। अन्य कबीले से होते सतत संघर्ष से बचने के लिए वह पर्वतों को पार करके देवताओं की नगरी 'मेलुहा' मे आता है जहां जीवनकाल बढ़ाने वाले सोमरस को पीने के बाद वह नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध होता है।
मेलुहा जिसकी मुख्य सम्मानित नदी सरस्वती जो धीरे-धीरे सूख रही है तथा मंदिरों व ब्राह्मणों पर लगातार हो रहे हमलों से ग्रसित है और बुराई से लड़ने के लिए महादेव की प्रतीक्षा कर रहा है वह शिव का सहज भाव देखकर यह विश्वास करने लगता है कि उनकी पौराणिक गाथाओं मे वर्णित महादेव आ गए हैं और अब वे बुराई से युद्ध करके उनकी रक्षा करेंगे।
घटनाओं व उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह निश्चित होता है कि स्वद्वीप के चंद्रवंशी राजाओं ने अपवित्र तथा त्याज्य नागाओं से मित्रता कर ली है और साथ मिलकर मेलुहा को समाप्त करना चाहते हैं। शिव मेलुहा की सेना के साथ स्वद्वीप पर आक्रमण करता है और उसे जीत लेता है।
2.नागाओं का रहस्य (The Secret of the Nagas)
शिवरचना त्रय की दूसरी कड़ी की यह पुस्तक उसी रोमांच से भरी है। पिछली पुस्तक मे ही शिव चंद्रवंशियों की पौराणिक मान्यता जान जाता है जिसमें वे नीलकंठ को अपना देवता मानते हैं।
अब इस कथा के प्रसंग मे पहले हो चुके बृहस्पति और सती पर हमले के बाद शिव को एक नागा मुखौटा प्राप्त होता है जिसे लेकर वह उस नागा को खोजता है और फिर उसे ब्रंगा का एक सिक्का मिलता है जिसके बारे मे जानने के लिए वह ब्रंगा जाता है। उसकी पत्नी सती के गर्भ से कार्तिक का जन्म होता है तथा दक्ष व शिव के मध्य एक विवादित स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
रहस्यों के उजागर होने के इस घटनाक्रम में सती के पहले पुत्र गणेश व उसकी बहन काली का आगमन होता है जो शिव के समक्ष नीलकंठ से जुड़ी अपनी पौराणिक मान्यता को बताते हैं। वासुदेव पंडितों से वार्ता तथा गणेश व काली से उसकी चर्चाओं के बाद शिव नागाओं की नगरी पंचवटी मे जाता है जहां उसे उसका मित्र बृहस्पति मिलता है।
3. वायुपुत्रों की शपथ (The Oath of the Vayuputras)
इस कड़ी की इस अंतिम पुस्तक मे शिव को बुराई का पता चलता है। सोमरस के भयानक प्रभावों के रहस्य को जानकर शिव उसके उत्पादन व उपयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहता है किंतु उसे मेलुहा व स्वद्वीप दोनों के सम्राटों के विरोध का पता चलता है। उसे दक्ष व दिलीप के ऊपर भृगु के नियंत्रण का पता चलता है जिससे निबटने के लिए वह पश्चिमी देश परिहा की यात्रा करता है और वहां से उसे दैवी अस्त्र प्राप्त होता है।
इधर सती कूटनीतिक वार्तालाप के लिए जाती है जहां उसकी हत्या हो जाती है। शिव के वापस लौटने पर उसे यह सूचना मिलती है तो वह टूट जाता है। भयानक शोक की अवस्था मे जाकर वह समस्त मेलुहा को इसका दंड देता है। दैवी अस्त्र का उपयोग किया जाता है और मेलुहा की राजधानी राजगिरि समाप्त हो जाती है। सोमरस का उत्पादन बंद हो जाता है। महादेव के आदेश से समस्त भारतवर्ष मे नागाओंं को अधिकार प्राप्त होते हैं और महादेव कैलाश की यात्रा करते हैं।
तीनों रचनाओं को पढ़ने वाला पाठक शिव के एक असीम सुंदर चित्र को अपने मन में खींचकर परमसंतुष्टि के भाव से अपनी मानसिक तरंगों में शिवत्व का अनुभव करता रहता है और आनंदित होता रहता है।
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