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स्वतंत्र बुलबुल Hindi Kahani(love story) short story in hindi । रोमांच । The Romanch |

स्वतंत्र बुलबुल

Swatantra Bulbul is a short love story from Romanch. Love of father, sad story, love story, short story, hindi kahani.

(कहानी)

                      image source: google
“सोना कहाँ है?” शुशीला ने पूछा।
“बुलबुल को भी स्वतंत्र रहने का अधिकार है।“ खाली पिंजरा लेकर मनोहर जी अंदर आये।
वो बुलबुल है बाहर गयी तो निकल लेगी कहीं। पक्षी और बिटिया घर मे ही रहे तो अच्छा है।
“अगर उसको हमसे प्यार हो गया होगा तो यहीं आसपास के किसी पेड़ पर रहेगी वो और अगर प्यार ना हुआ तो जहां मन होगा वहां रहेगी। सबकी अपनी अपनी मर्जी है।“
ये लोग आपस मे बात कर ही रहे थे कि उनकी बिटिया अंदर आ गयी।
“पापा मुझे आपसे कुछ कहना है?”
“हां बोलो बेटा।“
“पापा! आई एम फॉलेन इन लव। स्वीटी ने कहा तो मनोहर जी एकदम से उछल पड़े। उन्होने ये नहीं सोचा था कि उनकी बिटिया कुछ ऐसा कहने वाली है।
हालात को काबू रखते हुए उन्होनें पूछा “ कौन है वह?”
डरते हुई स्वीटी ने कहा,” आदिल नाम है उसका।"

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48 की उमर हो गयी थी मनोहर जी की और ऐसी बहुत सी अफवाहें सुन चुके थे जिसमें लड़की के साथ लव-जिहाद जैसी घटनायें हो चुकी थी। पर यहां बिटिया का प्रेम था और वो कभी नही चाहते थे कि उनकी बिटिया किसी भी तरह की मुसीबत में फसे। परिस्थिति की गम्भीरता को समझते हुए उन्होनें बिटिया के आग्रहपूर्ण चेहरे को देखा और मुस्कुराया “ठीक है बेटा। उसके घर वालों को बुला लो। हम भी समझ ले कि हमारी बिटिया किस परिवार की बहू बनना चाहती है।“
स्वीटी खुशी से पापा के लिपट गयी और आई लव यू पापा की रट लगा ली।
उसके जाने के बाद शांत खड़ी शुशीला जी आयी और बैठ कर बोली,”आप ये क्या करने जा रहें अगर कुछ गलत हुआ तो?”
“तो क्या करूं? अब अपनी बिटिया को खो दू क्या?”
“पर?”
“तुम चिंता मत करो शुशीला, मै अपनी बिटिया का हाथ किसी ऐसे वैसे के हाथ में नहीं दूंगा।“

इस बात को तीन दिन बीत गये थे और इस दौरान स्वीटी कई बार आदिल से परिवार को लाने की बात कर चुकी थी पर वो हर बार टालता जाता था। इधर मनोहर जी भी उससे दो-तीन बार पूछ चुके थे। स्वीटी को कोई जबाब देते नहीं बन रहा था अपने पिता को। मनोहर जी ने उससे कह दिया कि अगर परिवार नहीं आ रहा तो वही आ जाये कुछ बातें हो जाये फिर बाद मे परिवार से मिल लेंगे।
स्वीटी को ये सही लगा तो उसने आदिल से कहा कि वही आ जाये तो उसने दो‌-तीन बाद आने को कहा पर उसके बाद भी वो नही आया।
अब स्वीटी को भी उसके प्यार में बहानेबाजी दिखने लगी थी।

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मनोहर जी उसकी मनोदशा को समझ पा रहे थे। आखिर पिता थे वे। एक शाम को अकेले बैठे देखा बिटिया को तो चले आये पास में और बैठ गये बगल मे। स्वीटी ने पापा को बगल मे देखा तो थोड़ा सम्भल गयी। पिता जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और वह अपना सिर पापा के कंधे पर रख दी। बालों को सहलाते हुए मनोहर जी बोले “क्या वह बहाने बना रहा है?”
“हां शायद।”
“हो सकता है उसे कोई काम हो।”
“वो सही से बात भी नही कर रहा अब जैसे पहले करता था।”
मनोहर के दिमाग मे अपनी बेटी के मन की बात जानने की इच्छा और बढ़ गयी। वे धीरे से बोले, “तो क्या तुम लोगों ने कभी आगे की योजनायें नहीं बनायी?”
  “उसने बस एक बार कहा था कि अगर हमारे घर वाले तैयार नही हुए तो वो मेरे साथ किसी और जगह चलेगा जहाँ हम एक नयी दुनिया मे रहेंगें”

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एक ठंडी लहर मनोहर के शरीर मे दौड़ गयी। उसका डर सही था। उसकी परी किसी राक्षस के हाथ मे जाने वाली थी। अपनी आवाज के रुंधेपन को हटाते हुए वे धीरे से बोले “तो क्या मेरी लाडो मुझे छोड़ कर जाने वाली थी?”
स्वीटी की आंखो मे आंसू आ चुके थे वह पापा के सीने से लिपटकर बोली “नहीं पापा! मै आपको छोड़कर कहीं नही जाने वाली।“
“और वो लड़का?” अपने मन का आखिरी प्रश्न बड़ी सहजता से पूछा।
“पापा मै जान गयी हूं वह केवल मेरा लाभ पाना चाहता था। वह मेरे मन को नही बस मेरे शरीर को प्राप्त करना चाहता था और मुझको मेरे घर से अलग करना चाहता था बस्। पर अब मै उसको जान गयी हूं और अब मै उससे कभी बात नही करूंगी।“
आंखों में आंसू और होठो पर मुस्कुराहट लिये मनोहर जी ने ऊपर देखा तो उनकी सोना बुलबुल उड़कर सामने पेड़ पर बैठी थी।


समाप्त॥

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