Skip to main content

विवेक व मानसिक स्थिरता | रोमांच । vivek v mansik sthirata | theromanch

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच मे।  

विवेक व मानसिक स्थिरता

theromanch


महापुरुष शक्तियों के उपयोग मे सदैव बुद्धि व विवेक का सहारा लिया करते हैं। कब क्या कहना है, कितना कहना है और किससे कहना है इसका भी निश्चय वे शीघ्र कर लिया करते हैं यही कारण है कि उनके अंदर संंयम व व्रत की अथाह पूंजी जमा हो जाती है और सामान्य जन मानस उस शक्ति से वंचित रह जाते हैं।
प्रायः हमारे जीवन मे ऐसा होता है कि हम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से परेशान होकर विचारों मे मग्न होते हैं कि कोई हमारा अपना आता है और उसकी एक छोटी सी बात भी मन को तीर सी लगती है और हम अपना धीरज खोकर अनावश्यक मतभेद बना देते हैं। हम अविवेकी होकर शब्दों का ऐसा अनियंत्रित उपयोग करते हैं कि सामने वाले के ह्रदय को एक तीर सा लगता है और फिर एक सन्नाटा हो जाता है।
हम अपने क्रोध के आवेग मे यह निर्णित नही कर पाते कि क्या सही है और क्या गलत और इसके कई कारण हो सकते हैं किंतु उन सभी का सार एक ही है और वो है विवेक।
व्यक्ति का शरीर कैसा भी हो; उसके पास शारीरिक शक्ति अधिक हो या कम किंतु उसमे मानसिक स्थिरता होनी चाहिए। मानसिक स्थिरता एक ऐसी दशा है जहां आपके अंदर बहुत सी भावनाओं को सहने की क्षमता विकसित होती है। इस मानसिक स्थिरता का परिमाण शारीरिक शक्ति से अनुक्रमानुपाती है। जितना अधिक व्यक्ति बलवान हो, उतना ही उसमे विवेक हो और वह स्थिर हो।
 
पवन तनय बल पवन समाना।
 
बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
 
हनुमान जी की शारीरिक शक्ति असीम थी किंतु उन्होने उसको नियंत्रित रखा और जब सही समय आया तब पर्वतों के समान गर्जना करके उन्होने उसको प्रदर्शित किया। 
यहां अपनी शक्तियों को भूलने के लिए नही कहा जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिभा, गुणों व योग्यताओं को संचित करना चाहिए; उनमें वृद्धि का प्रयास करना चाहिए किंतु उनका अनावश्यक उपयोग इससे बचना चाहिए। उस शक्ति के स्वामी बनकर स्वयं को प्राथमिकता देना बहादुरी है किंतु उस शक्ति का दास बन जाना; अपने जीवन के प्रत्येक कार्य को करते समय अपने उसी गुण को केंद्र बना लेना सदैव अच्छा नही होता है।
 

एक आदमी था जो दौड़ के घोड़ों को प्रशिक्षित किया करता था। उसे अपनी कला का इतना अभिमान था कि एक दिन उसने एक नए घोड़े पर सवारी प्रारम्भ कर दी। बलिष्ठ घोड़े को अभी सवारी का प्रशिक्षण ठीक से प्राप्त ना होने पाया था किंतु आदमी को अपनी कला पर इतना विश्वास था कि वह उसे लेकर पठारी भूमि पर बड़े-बड़े पत्थरों पर दौड़ाने लगा। सहसा घोड़ा एक ऊंचे पत्थर के सामने हिनहिनाया और अपने आगे के दोनों पैर उठा लिया। दुर्भाग्य से आदमी फिसलकर नीचे आ गिरा किंतु उसके हाथ से रस्सी ना छूटी। उसको अपनी कला पर यूं अभिमान हो चला था कि उसने अब भी रस्सी छोड़ना उचित ना समझा और उसके सहारे घोड़े को खींचना चाहा किंतु घोड़े ने फिर से दौड़ लगाई और आदमी आगे की कुछ झाड़ियों मे फंसा और फिर बगल का एक पत्थर लुढ़ककर उसके ऊपर आ गया। बेचारा वहीं पड़ा चीखता रहा। बाद मे सब उसके सहयोगी वहां पहुंचे और उसे वहांं से निकाला तो उसके जांघ की हड्डी मे काफी चोटें आ गई थी। फिर वह भविष्य मे दोबारा ठीक से खड़ा ना हो सका।

उसकी उत्तम योग्यता ने उसे अवश्य ही बहुत से पुरुस्कार जिताये किंतु जब उसकी शक्ति अभिमान बन गई तो उसने अपने लिए व्याधि खड़ी कर ली। वह जीवन से हार गया क्योंकि उसने अपनी शक्ति अपनी योग्यता का केंद्र अपने इस गुण को बना लिया था। अब इसी तरह का एक दूसरा उदाहरण लेते हैं। 
हंगरी का एक अद्भुत निशानेबाज जिसका नाम कैरोली टाक्कस था; ने अपना एक हाथ खो दिया। वह ओलम्पिक मे स्वर्ण पदक जीतने का प्रबल दावेदार था किंतु अपनी शक्ति के रूप मे अपने सबसे प्रमुख अंग को ही खो दिया इसके बाद क्या हुआ? क्या वह हार गया?
उसने स्वयं को बताया कि उसकी शक्ति का केंद्र हाथ नही बल्कि उसकी कला है जो उसके मस्तिष्क मे अभी भी स्थित है। उसके मानसिक बल ने स्थिरता पाई और उसने दोबारा अपने दूसरे हाथ से अभ्यास प्रारम्भ कर दिया और फिर उसे सफलता हासिल हुई। 

कहने का तात्पर्य यह है कि शक्ति का प्रमुख केंद्र मस्तिष्क मे होना चाहिए जिस पर विवेक का अधिपत्य हो ताकि जीवन के किसी क्षण यदि आपकी किसी अन्य शक्ति का ह्रास हो तो वह आपकी पुनः खड़े होने मे मदद करे।

  

Comments

Popular posts from this blog

पश्चिमी एवं भारतीय संस्कृति में अंतर । Difference between Western and Indian civilization. by the romanch

पश्चिम तथा भारतीय संस्कृति में अंतर पश्चिमी संस्कृति और भारतीय दोनों ही संस्कृतियों ने अच्छाई , बुराई , धर्म , ईश्वर , मोक्ष , मुक्ति , पाप-पुण्य , स्वर्ग आदि के विषय में सदियों से चर्चा की है। हज़ारों दृष्टिकोणों के बाद भी किसी ऐसे सटीक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका है कि परम सत्य कैसा है। क्या है। वस्तुतः हम इतने समय के पश्चात भी भूमि पर ही हैं। ऐसे मे ये जानना आवश्यक है कि हमने दोनों शैलियों के मध्य क्या अंतर पाया ? ईश्वर और भगवान मे अंतर पश्चिमी सभ्यता के अनुसार ईश्वर ने अपना संदेश किसी व्यक्ति के द्वारा भेजा , उसी व्यक्ति ने लोगों को उसके विषय मे बताया। उसने ईश्वर के यश की कहानियां सुनाई और तमाम और बातें बताई किंतु उसमें ईश्वर के विषय मे अधिक पता न चला। भारतीय संस्कृति मे भगवान और ईश्वर दो अलग-अलग अर्थ वाले शब्द हैं। भगवान ऐसे महान व्यक्तियों को कहते हैं जिन्होनें हमारे जैसे ही जन्म लिया , इस धरती पर घूमे , जिनका जीवन हमारे जीवन से अधिक संघर्षपूर्ण रहा किंतु उन्होनें कभी हार नहीं मानी। वे आगे बढ़ते गए और उसके संकल्प , उसकी क्षमताओं को हमने सामान्य मनुष्य से बढ़कर मा

क्या हैं भगवान? (भगवद्गीता) what is God? (bhagwadgeeta)

 क्या हैं भगवान? (भगवद्गीता) what  is God? (Bhagwadgeeta) भगवान क्या हैं? संसार मे व्याप्त हर धर्म, हर सम्प्रदाय किसी ना किसी पराभौतिक शक्ति को मानता है। कोई स्वयं की आत्मा को सर्वोच्च स्थान देता है तो कोई ऊपर आसमान मे बैठे किसी परमात्मा को। कोई जीव को ही सब कुछ कहता तो कोई प्रकृति को सब कुछ कहता है। सनातन संस्कृति की खास बात यह है कि यह संसार मे उपस्थित प्रत्येक वस्तु को ईश्वर की एक रचना मानकर संतुष्ट नही होती बल्कि यह प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का वास खोजती है और इसकी यही सोच इसे ईश्वर के लिए किसी स्थान पर जाने को प्रोत्साहित करना अनिवार्य नही समझती बल्कि प्रत्येक स्थान पर ईश्वर की उपस्थिति को सिखाकर व्यक्ति को ईश्वर के पास ले आती है। सनातन मे सब कुछ है। ऐसा कुछ नहीं जो इसमें नही है। इसने हर एक परिभाषा दी है स्वयं भगवान की भी। भगवद्गीता के सांंतवे अध्याय के चौथे श्लोक मे श्रीभगवान कहते हैं- भूमिरापोSनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टया॥                                   - (अध्याय 7, श्लोक 4) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार- ये आठ प्रका

नीलिमा: एक वैश्या से प्रेम । सच्चे प्यार की लव स्टोरी A Short Love Story in hindi । kahani (love story), short story, love story in hindi । रोमांच । The Romanch

नीलिमा  (प्रेम कहानी) Neelima is a short love story from Romanch. Sad Story, Love Story, love story hindi, romantic love story, love, pain and romance.  नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच मे आज फिर नीलिमा अरविंद के घर आयी थी। लगभग एक घंटे मे उसने काम खतम किया और पैसे लिये। लौटते वक़्त एक पल भर को रुकी और घूमी और फिर कुछ शिकायती अंदाज मे कहा ,” क्या साहब क्यों अपना पैसा हम लौंडियों पर बर्बाद करते हो ? कहा था आपसे पर आप हो कि मानते ही नही , बार-बार बुला लेते हो।“ अरविंद के सपाट चेहरे पर चिरपरिचित सी मुस्कान आ गयी। “आप बस मुस्कुराइये।“ उसका भाव और अधिक शिकायती था। “तुम अपने एक ग्राहक को क्यों कम करना चाहती हो।“ “अरे हम लोग उन लोगों की रातें रंगीन करते हैं जिनकी भूख उनके घर मे पूरी नही होती पर आप तो जवान हैं शादी काहे नही कर लेते ?” “अरे महारानी अब यहीं बातें करोगी या जाओगी अपने किसी और ग्राहक के पास।“ नीलिमा अपनी तेज चाल मे उसके कमरे से निकल गयी। आज उसने हरी चमकीली साड़ी पहनी थी , उसके होठों पर गहरी लाल लिपस्टिक और गालों पर गुलाबी