सुख
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आदि के उस हिस्से से जहां से मनुष्य ने अपनी बुद्धि व विवेक का उपयोग करना सीखा है, उसने प्रकृति से संघर्ष किया है। प्रकृति जो सब कुछ देने वाली है, उसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया है। यदि आप किसी अन्य जीव को देखे जो मानव की तरह ही किसी अन्य योनि मे जन्म लेता है तो आप उसमे और मनुष्य मे एक भेद पायेंगे। मनुष्य से भिन्न प्रत्येक जीव के जीवन मे एक समान क्रिया-कलाप होता है। वह जन्म लेता है, अपने भोजन के लिए सारा जीवन लगा रहता है, प्रजनन क्रिया मे भाग लेता है और फिर एक दिन मर जाता है। हम मनुष्य इससे इतर हैं।
हम मनुष्य जन्म लेते हैं और सामान्य सुखी जीवन का आनंद केवल उस समय तक लेते हैं जब तक हम समझने नहीं लगते। एक बार समझने की अवस्था आयी कि लग गए संसार के अन्य क्रियाकलापों मे।
एक बालक के सिर पर शिक्षा का बोझ होता है, एक किशोर के सिर पर सफलता के लिए संघर्ष का, एक वयस्क के लिए व्यवसाय का, एक प्रौढ़ के लिए पारिवारिक उत्तरदायित्वों का और एक व्रद्ध के लिए अतीत की यादों और खो चुकी अवस्था का।
वास्तव मे लोग खुश क्यों नही है?
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अन्य पशुओं की भांति हम मानवों ने प्रकृति के दंडों को, आपदाओं को यूं स्वीकार नही किया बल्कि हमने उसके निवारण के रास्ते निकाले। अनगिनत सुधार किए और जीवन को सुविधाओं से भर दिया। आज वर्तमान की सभ्यता पिछली बहुत सी सभ्यताओं से सम्पन्न है किंतु मनुष्य उलझा हुआ है, वह परेशान है, दुखी है।
किंतु इसका प्रमुख कारण क्या है?
भगवान बुद्ध ने दुख के कारण प्रस्तुत किए। संसार के समक्ष उसकी व्याख्या की। उन्होने बताया कि दुख का प्रमुख कारण है व्यक्ति को 'इच्छा'।
जीवन को बदलते हैं गीता के ये श्लोक
इच्छा एक ऐसी चीज है जो कभी समाप्त नही होती। किंतु वर्तमान मनुष्य केवल वस्तुओं की इच्छाओं से ग्रसित नही है। जिस प्रकार मानव ने प्रकृति के अनेक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन किया, उस पर स्वामित्व जताया, जिस प्रकार उसने पशुओं को नियंत्रित किया, उनका शोषण किया, उसी प्रकार की एक लालसा उसके अंदर मनुष्यों के लिए भी आती है।
संसार का हर व्यक्ति दूसरों को अपने अनुसार बनाना चाहता है। वह पशुओंं की तरह बांध नही सकता किंतु उसकी अभिलाषा प्रत्येक मनुष्य को अपने आदेशों के जाल मे बांधे रहने की होती है और यही परेशानी का कारण है।
हर आदमी एक फिल्म मे जीना चाहता है जिसका वह खुद हीरो हो और हीरो के रूप मे वह हर एक चीज की अपेक्षा करता है। वह चाहता है कि उसके अच्छे कामों के लिए सभी उसका उत्साहवर्धन करें और जब वह कुछ गलत कर जाए तो उसके प्रति सभी की सहानुभूति हो। वास्तव मे ऐसा मिलता तो है किंतु कुछ ही लोगों द्वारा और कुछ ही समय के लिए।
सुख भविष्य की चिंता करने से नही बल्कि वर्तमान को जीने से प्राप्त होगा।
सुख संसार को अपने जैसा बनाने से नही बल्कि स्वयं को मानव बनाने से प्राप्त होगा।
जब एक बार मानव मानव बन जायेगा तो बाकी का संसार उसके लिए अनुकूल हो जाएगा और इसी मे संसार की भलाई है।
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