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रामचंद्र सीरीज (अमीश त्रिपाठी)

रामचंद्र सीरीज (अमीश त्रिपाठी)

इसके पहले के एक आर्टिकल मे आपने अमीश की शिवरचना त्रय (Shiva Trilogy) के बारे मे पढ़ा। अब हम Shiva Trilogy के बाद रामचंद्र सीरीज (Ramchandra Series) के बारे मे जानेंगे।

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच की दुनिया मे।

Shiva Trilogy की अभूतपूर्व सफलता के बाद अमीश ने भगवान राम की कहानी पर अपनी काल्पनिक कहानी लिखने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होने कहानी की एक नयी विधा का चयन किया जिसका नाम Hyperlink या Multilinear narrative है। इस विधा मे कहानी को मुख्य किरदारों के दृष्टिकोण से दिखाया जाता है।
रामचंद्र सीरीज मे उन्होने 5 किताबें लिखने का निश्चय किया जिसकी 3 किताबें अब तक आ चुकी हैं और चौथी किताब वे लिख रहे हैं। आज इस आर्टिकल मे हम उन तीन किताबों के बारे मे जानेंगे।

1. राम इक्ष्वाकु के वंशज( Ram Scion of Ikshvaku)


भगवान राम के दृष्टिकोण से लिखी गई यह पुस्तक राम के जन्म से लेकर माता सीता के अपहरण तक की कथा बताती है। दशरथ का रावण से युद्ध और उसकी पराजय का दोष राम को देकर राम के संघर्ष की कहानी शुरू होती है। उनकी धर्म मे आस्था, सत्य व नियम का पालन पूरी कहानी मे दिखाया जाता है।
राम का अन्य भाइयों के साथ गुरुकुल जाना, लौट के आना, दशरथ के साथ उसके सम्बंध, गुरु वशिष्ठ का उसमें विश्वास, महर्षि विश्वामित्र के साथ उसकी यात्रा और फिर मिथिला जाकर सीता से विवाह होना लगभग कहानी को पूरी करता है। विवाह के बाद राम का वनवास जाना और वहां से सीता का हरण होना बताकर कहानी अगली पुस्तक के लिए कई सारे सुराग छोड़ जाती है।

दिल्ली मे हुए दुष्कर्म से प्रभावित होकर अमीश ने एक घटना किताब मे लिखी है जिसमें उन्होनें कठिन समय मे धर्म की रक्षा का उदाहरण प्रस्तुत किया है तथा दोषियों की सजा का भी उचित वर्णन किया है।
महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र के मध्य काफी गहरे रहस्यों को रखा गया है। इसके अतिरिक्त महर्षि विश्वामित्र की राम को लेकर धारणा भी अत्यंत रहस्यमयी है और रावण से जुड़े भी अनेक रहस्य हैं।
कहानी और रहस्यों का कुछ ऐसा जाल है कि पाठक के मन मे कहानी के अंत तक ऐसा उन्माद आ जाता है कि वह बस एक ही वाक्य कहता है, "अगली पुस्तक कहां है?"

2. सीता मिथिला की योद्धा (Sita Warrior of Mithila)


रहस्य और रोमांच से भरी रामचंद्र सीरीज की दूसरी पुस्तक Sita Warrior of Mithila माता सीता के जीवन घटनाक्रम पर आधारित उनके दृष्टिकोण से लिखी गई कहानी है। 
सीता जिसे मिथिला के राजा जनक और रानी सुनैना ने भूमि पर पाया था, वह अपने चाचा कुशध्वज के साथ किए गए बुरे बर्ताव के कारण मिथिला के निवासियों की अप्रिय दृष्टि मे आ जाती है। मिथिला का संचालन कर रही सुनैना उसे गुरुकुल भेज देती हैं जहां उसपे महर्षि विश्वामित्र की दृष्टि पड़ती है। उसकी कुशाग्र बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा पर मुग्ध होकर मलयपुत्र जाति प्रमुख उसे अगला विष्णु बनाने का निर्णय करते हैं।
मिथिला की जीर्ण स्थिति को समझकर सीता उसकी प्रधानमंत्री बनती हैं और राज्य का प्रशासन देखती हैं। कहानी मे उसकी प्रमुख साथियों मे समिची और राधिका हैं और उनके बाद हनुमान और जटायु जिनकी सहायता से मिथिला का प्रशासन व भारतवर्ष की अन्य सूचनाएं उसके पास जाती हैं। 
इसी घटनाक्रम मे उनको अयोध्या के युवराज राम के विषय मे पता चलता है और संंयोग से वे राम से मिथिला मे मिलती हैं और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखती हैं। 
स्वयंवर मे राम सीता से विवाह करते हैं और फिर वहीं से कहानी मे ऐसा मोड़ आता है कि अयोध्या आकर राम वनवास चले जाते हैं और उसके बाद सीता के अपहरण से कहानी समाप्त हो जाती है।
पूरी कहानी मे सीता की क्षमताओं, उसके कौशल व कलाओं का वर्णन होता है, उसके संघर्षों के बाद उसकी विजय का तथा अगले विष्णु की अनेकों अपेक्षाओं का पता चलता है। 
जहां पहली पुस्तक के रहस्य विष्णु से यह पता चलता है कि अगला विष्णु कौन है तथा उसकी स्पर्धा मे किसका साथ कौन दे रहा तथा स्पर्धी स्वयं क्या सोच रहे हैं, वहीं कहानी अनेकों नए रहस्य जोड़ देती है। यहां तक कि कहानी के अंतिम कुछ शब्द तो ऐसे रहस्य और रोमांच भर देते हैं कि अगली पुस्तक के लिए पाठक बेचैन हो जाता है।

रावन आर्यावर्त का शत्रु (Raavan Enemy of Aryavarta)

राम और सीता के जीवन को जानने के बाद रावण को ना जानना पक्षपात सा होगा किंतु इस पक्षपात से रोकने के लिए रामचंद्र सीरीज की तीसरी किताब रावन आर्यावर्त का शत्रु पढ़ना काफी रोमांचक है।

कहानी की शुरुआत रावण के बचपन से होती है जहां वह अपने पिता महर्षि विश्रवा के आश्रम मे है। यहां से वह अपनी माता व भाई के साथ घूमते-घूमते तथा व्यापार करते हुए वह लंका पहुंच जाता है और स्वयं को एक महान व्यापारी बना देता है। 

 अपनी अपार धन-सम्पदा के मद से चूर रावण जब पवित्र कन्याकुमारी से मिलता है तो कहानी का स्वरूप आध्यात्मिक हो जाता है किंतु उसके बाद की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना होती है और तब क्रोध से चिंघाड़ते रावण का विकराल रूप कहानी को दिखाई देता है। क्रोध-प्रतिशोध-विनाश की ऐसी ज्वाला धधकती है कि रावण का दैत्यरूप समस्त आर्यावर्त को उसका दंड देने के लिए कमर कस लेता है।अपार हिंसा से भरे हुए युद्ध समस्त आर्यावर्त का दयनीय हाल बना देते हैं। रावण के क्रोध मे आर्यावर्त का वर्तमान और भविष्य दोनों बर्बाद हो जाते हैं।
कहानी जहां रावण की अनियंत्रित ज्वाला भड़क कर विनाश करती है वहीं कुम्भकर्ण का उसके प्रति समर्पण और प्रेम उसको नियंत्रित करता है। 

कन्याकुमारी का चरित्र, महर्षि विश्वामित्र के रहस्य और रावण के उनसे सम्बंध जैसे कई रहस्य खुल कर सामने आते हैं और रावण का आर्यावर्त से जुड़ाव व शत्रुता कहानी को रोमांच से भर देती है। 
मिथिला के स्वयंवर के बाद से रावण की राम से बदला लेने की कोशिशों के बाद सीता के हरण से कहानी समाप्त होती है और छोड़ देती है युद्ध की एक ऐसी तैयारी मे कि पाठक की मनतरंगे रोमांच से भरकर भावी सम्भावनाओं की अटकलें लगाने लगती हैं।
फिलहाल तो अटकलें ही लगा सकते हैं क्योंकि अगली किताब अभी भी लिखी जा रही है तो तब तक आप अमीश की इन रोमांचक यात्राओं का हिस्सा बनिए और आनंद लीजिए और करते रहिए इंतजार अगली किताब का।

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