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Showing posts from October, 2020

बुद्ध और अशोक की भेंट। अशोक के पूर्वजन्म की कहानी। रोमांच। meeting between Buddha and Ashoka | Theromanch

बुद्ध और अशोक की भेंट   ये कथा है प्राचीन बौद्ध ग्रंथ अशोकवदन की जिसमें अशोक के जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का वर्णन किया गया है। यह बात तब की है जब अशोक का जन्म नहीं हुआ था , जब भगवान बुद्ध इस संसार मे थे और अपने ज्ञान से संसार को सींच रहे थे। एक दिन वे राजगृह के एक बाजार मे पहुंचे और अपने शिष्यों के साथ भिक्षा स्वीकार करने लगे। उनको आया देख लोग उनकी तरफ दौड़-दौड़ कर जाने लगे। कोई उनको भिक्षा देता तो कोई उनके सामने नतमस्तक हो आशीर्वाद मांगता। लोगों के अंदर भगवान बुद्ध के लिए अपार श्रद्धा थी। वे सभी उनकी कृपा पाना चाहते थे। बुद्ध सभी को प्रसन्नता से आशीर्वाद दे रहे थे। उस भीड़ से कुछ दूरी पर दो बालक मिट्टी मे खेल रहे थे। उन बालकों के नाम थे जय और विजय। जब उन दोनों ने भीड़ को देखा तो उनमे से जो जय था उसने विजय से पूछा , “विजय! यह कौन है जिसके लिए इतनी भीड़ लगी हुई है?” विजय ने अपनी समझदारी दिखाते हुए कहा , “अरे तुम्हें नहीं मालुम ? ये महात्मा बुद्ध हैं जिनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए लोगों की भीड़ लगी है।” जय की जिज्ञासा शांत हुई किंतु उसकी अब उसकी अभिलाषा जाग्रत हुई। “यदि ऐसा

असत्य का दिया। कविता। अभिषेक सिंह। हर्ष वर्धन सिंह। रोमांच। Asatya ka diya | poem | Abhishek Singh | Harsh vardhan Singh | Theromanch

" असत्य का दिया" नमस्कार दोस्तों! मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आएं हैं रोमांच पर। दोस्तों  आज मै आपके सामने एक कविता प्रस्तुत कर रहा जिसे भेजा है अभिषेक सिंह ने। आइए पढ़ते हैं उनकी कविता को। सिमट रहा जो शून्य में वो सत्य खण्ड खण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है , तिलमिला रहा है सत्य घुट घुट प्रमाण में , लग गए लोग सारे छल कपट निर्माण में , मृषा मस्तक पे अलंकृत सत्यता को दण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   पसर रही है पशुता मनुष्य आचरण में भी , सिमट रही मनुष्यता मनुष्य के शरण में ही , व्यथित स्थिति को निरूपित दूषित सा चित्त है , षड्यंत में लगे हैं सब दोगला चरित्र है। कलुष कामित अतः करण फिर भी घमण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   इक अदृश्य सी सभी के हस्त में कटार है , पलक झपकते ही ये हृदय के आर पार है , विष धरे हृदय में पर मुख में भरे फूल हैं , पुष्प सदृश दिख रहे मगर असल में शूल हैं , विकट उदंडता यहाँ निर्लज्यता अखण्ड है , असत्य का दिया यहाँ तो प्रज्वलित प्रचण्ड है।   जो लूटते

महत्व । हर एक कार्य का। कौन सा कार्य महत्वपूर्ण है? which action/ profession should I do? Karma Philosophy | The Romanch

महत्व । हर एक कार्य का   वनपर्व (महाभारत) मे महर्षि मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को सुनाई गई एक कथा जिसमें वो कर्म के महत्व पर चर्चा करते हैं। एक बार एक मुनि थे ‘ कौशिक ’ । वे परमज्ञानी , महान मुनि थे जिन्हें अपने तप का अपार अहंकार था। एक बार जब वे एक वृक्ष के नीचे ध्यान मे मग्न थे , तभी एक चिड़िया ने उनके ऊपर बीट कर दी। महामुनि का ध्यान भंग हो गया। वे क्रोध से तमतमा उठे। उनकी लाल आंखो ने जैसे ही चिड़िया को देखा , वैसे ही चिड़िया नीचे जमीन पर गिर गई और तड़पने लगी। तड़प-तड़प कर चिड़िया कुछ ही देर मे मर गई। महर्षि के साथ किए अपराध का दंड उसे प्राण देकर चुकाना पड़ा। चिड़िया के मरने पर कौशिक का क्रोध शांत हुआ। उसके जले हुए शरीर को देखकर उनके हृदय मे दया का भाव आया। पीड़ा हुई। वे अपने कार्य पर बहुत पछताए किंतु अब पछताने से क्या हो सकता था। उनका ध्यान भंग हो चुका था। वे दोबारा नहीं बैठे और कुछ भिक्षा के लिए चल दिए। कई द्वारों पर भिक्षा मांगकर वे एक स्त्री के द्वार पर पहुंचे और आवाज लगाई। “भिक्षा दो माई!” अंदर से स्त्री ने जबाब दिया “हां अभी आई बाबा। प्रतीक्षा करो।” कौशिक काफी देर तक प्रतीक्ष

नवरात्रि । सकारात्मकता के नौ दिन। देवी के नौ रूपों मे प्रकृति की महत्ता । रोमांच । navaratri | nine days of positivity | imporance of nature in nine forms of Devi | Romanch | The Romanch

नवरात्रि  एक कथा सुनाई जाती है कि एक बार ऋषि-मुनियों की एक सभा आयोजित की गई जिसमें सभी ऋषि-मुनियों ने ज्ञान आदि के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती को निमंत्रित किया। शिव और शिवा दोनों वहां पधारे और उनको देखकर सभी ने उनका स्वागत किया। सभा प्रारम्भ होती इससे पहले ऋषियों के समूह ने देवाधिदेव और आदिशक्ति की अराधना व परिक्रमा करने की इच्छा की जिसे हमारे माता-पिता ने मुस्कुराकर स्वीकार किया। उसी सभा मे भृंगी ऋषि भी थे। भृंगी ऋषि के अंदर नारी शक्ति के प्रति तुच्छ भाव थे और उनके अनुसार नारी का महत्व पुरुष के समक्ष अधिक नहीं होता था जिसके कारण वे आदिशक्ति माता पार्वती को भी बस महादेव की पत्नी के आधार पर ही सम्मान देते थे किंतु आदिमाता के रूप मे उनके अंदर कोई विशेष भाव नहीं था। जिस समय सभी ऋषियों ने महादेव और माता पार्वती की परिक्रमा की , उसी समय भृंगी ऋषि ने केवल महादेव की परिक्रमा की और देवी को छोड़ दिया। ऐसे समय देवी ने अपनी लीला की। उन्होनें भृंगी ऋषि को सम्बोधित करके कहा कि आपको नारी शक्ति अर्थात प्रकृति की कोई आवश्यकता नहीं है इसीलिए आपके शरीर से मै प्रकृति के गुणों को ले लेती हूं तब आपप

काम, सभी शत्रुओं का एक मित्र। प्रेरणादायक बातें। गीता की शिक्षा। दर्शन। रोमांच। Desire, Lust, friend of all enemies| motivational talks| teachings of gita | philosophy | theromanch | Romanch

काम   जब बात काम की आती है तो यह केवल शरीर की किसी अन्य शरीर की आवश्यकता तक निर्भर नहीं रहता है बल्कि उन सभी इच्छाओं की तरफ एक इशारा होता है जो हमारे आत्मिक विकास मे बाधक हैं। प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान मे यह उस समय बाधक बन जाता है और वह व्यक्ति इसके भंवर मे फंसा स्वयं को बंधता महसूस करता है किंतु बाहर नहीं आ पाता। वह व्यक्ति जो वासना के जंजाल मे फस चुका है , जो स्वयं को बाहर नहीं निकाल पा रहा है , वह कैसे किसी अन्य दिशा मे प्रगति कर सकता है। यदि उसे आगे बढ़ना है , यदि उसे स्वयं को उस उंचाई तक ले जाना है जहां वह स्वयं को देखना चाहता है तो उसे इन सबसे आगे बढ़ना होगा। उसे अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा , उसे अपनी बुद्धि को सही दिशा मे लगाना होगा। संसार का कोई बाहरी ज्ञान , कोई प्रेरणा आपकी तब तक मदद नहीं कर सकती , जब तक आप स्वयं की मदद नहीं करना चाहते। आपको स्वयं ही आगे बढ़ना होगा , आपको स्वयं को बेहतर बनाना होगा , आपको स्वयं ही यात्रा करनी है। अपने मन को नियंत्रित करो। अपनी बुद्धि को दिशा दो। अपने हाथों मे शक्ति भरो और लग जाओ पाने मे वह सब कुछ जो तुम्हारे लिए बना है। जाओ

राखी: भाई बहन का प्रेम । रोमांच । rakhi | love between brother and sister | The Romanch |

राखी पिछले चार दिन से सीमा उदास थी। हो भी क्यों न , राखी जो आ रही थी। हर बार उसके भैया उसके घर आते थे। दस साल के बच्चे की मां अपने भैया के सामने बच्ची हो जाती थी। प्रेम से राखी बांधती थी। जबरदस्ती मिठाई खिलाती थी और रुपए के लिए जिद करती थी। शादी के इतने सालों के बाद जब दूसरों की अपेक्षाओं मे वो कुशल गृहिणी , गम्भीर स्त्री , परिपक्व मां थी , वहीं अपने भैया के लिए वह अब भी लाडो थी , गुड़िया थी जिनके सामने वह एक साथ हंस भी सकती थी , रो भी सकती थी और गुस्सा भी हो सकती थी। इतने सालों से जिस भाई से इतना प्यार , इतना दुलार करती थी वह इस साल नहीं आ सकता था यह सोचकर वह छुप-छुप कर रोए जा रही थी। कैसे आता उसका भाई , वह तो आठ महीने पहले इस संसार को छोड़ कर ही चला गया है। महीनों तक वह रोई , बीमार भी हो गई और फिर ठीक होकर घर आ गई। रोना तो बंद हो गया था पर भैया की सूरत आंखो से न गई थी , उनका दुलार न भूल पायी थी। रह-रह कर वो याद आ ही जाते थें लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य हो गई। रोना बंद हुआ पर चार दिन पहले जब बाजार मे राखियों की दूकान देखी तो फिर से वही चालू हो गया। गोलू ने तो पूछा

अनोखी मछली (भाग 11) | रोमांच। Anokhi Machhali (part 11) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch

अनोखी मछली रोमांच। Anokhi Machhali (part 11) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch यह कहानी हमारी कहानी अनोखी मछली का ग्यारहवां व अंतिम भाग है। यदि आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहां से पढ़ें। अनोखी मछली (भाग 1) पिछला भाग- अनोखी मछली (भाग 10) भाग 11 “कोई जिंदा ना बचे!” सोनल ने अपने लोगों से कहा। “हूं!” लुटेरे ने अपने लोगों को आदेश दिया। वह इतने कम लोगों को खत्म करना दुनिया का सबसे आसान काम समझता था। दोनों दलों के लोग एक दूसरे की ओर दौड़े। ना कोई योजना , ना कोई व्यूह , केवल एक नियम था , आक्रमण! सबसे आगे दौड़ती हुई सोनल ने उछलकर दो लुटेरों के बीच की जगह से तीसरे को मुक्का मारा। धड़ाम की आवाज के साथ वह गिरा। उसकी नाक फूट गई थी। उसने झट से उसकी तलवार ली और पीछे घूम चुके उन सैनिकों के ऊपर वार किया जो अपनी तलवार को सोनल पर छोड़ चुके थे। दोनों की तलवारें साथ ही सोनल की तलवार से टकराईं। उसने उनकी तलवारों को साधकर बाएं वाले की जांघो पर लात मारी। वह गिर गया तो उसने दाहिनी तरफ वाले को धक्का देकर पीछे किया और बाएं वाले का सिर उड़ा दिया। पल भर मे उसने दो लुटेरों को गिरा दिया था।