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बुद्ध और अशोक की भेंट। अशोक के पूर्वजन्म की कहानी। रोमांच। meeting between Buddha and Ashoka | Theromanch

बुद्ध और अशोक की भेंट

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ये कथा है प्राचीन बौद्ध ग्रंथ अशोकवदन की जिसमें अशोक के जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का वर्णन किया गया है।

यह बात तब की है जब अशोक का जन्म नहीं हुआ था, जब भगवान बुद्ध इस संसार मे थे और अपने ज्ञान से संसार को सींच रहे थे।

एक दिन वे राजगृह के एक बाजार मे पहुंचे और अपने शिष्यों के साथ भिक्षा स्वीकार करने लगे। उनको आया देख लोग उनकी तरफ दौड़-दौड़ कर जाने लगे। कोई उनको भिक्षा देता तो कोई उनके सामने नतमस्तक हो आशीर्वाद मांगता। लोगों के अंदर भगवान बुद्ध के लिए अपार श्रद्धा थी। वे सभी उनकी कृपा पाना चाहते थे। बुद्ध सभी को प्रसन्नता से आशीर्वाद दे रहे थे।

उस भीड़ से कुछ दूरी पर दो बालक मिट्टी मे खेल रहे थे। उन बालकों के नाम थे जय और विजय। जब उन दोनों ने भीड़ को देखा तो उनमे से जो जय था उसने विजय से पूछा, “विजय! यह कौन है जिसके लिए इतनी भीड़ लगी हुई है?”

विजय ने अपनी समझदारी दिखाते हुए कहा, “अरे तुम्हें नहीं मालुम? ये महात्मा बुद्ध हैं जिनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए लोगों की भीड़ लगी है।”

जय की जिज्ञासा शांत हुई किंतु उसकी अब उसकी अभिलाषा जाग्रत हुई। “यदि ऐसा है तब तो हमें भी उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए” उसने कहा।

विजय ने निराशा से कहा “किंतु हमारे पास उनको देने के लिए कहां कुछ है?

जय का मन इस बात से सहमत नहीं था क्योंकि उसके पास कुछ था जिसे वह दे सकता था। वह अपने अधिकार वाली वस्तु लेकर विजय के साथ आगे गया और भीड़ के बीच से धक्के खाता वह भगवान बुद्ध के सामने जा पहुंचा। लोगों ने बुद्ध के सामने बालक को देखा जो कि एक सामान्य बात थी किंतु जब उस बालक ने दान के लिए लाई हुई वस्तु को बुद्ध के पात्र मे डाला तो सबकी आंखे आश्चर्य और भय से फट गईं। बालक जय ने भगवान बुद्ध के पात्र मे एक मुट्ठी मिट्टी डाल दी थी।

जिस भगवान को लोग अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे थे। जो इस संसार का सर्वेसर्वा है, तारनहार है, जो सबके दुख दूर कर रहा है, उसे एक छोटे बालक ने मिट्टी दी। लोग सन्न थे। बाजार मे सन्नाटा छा गया।

इस घटना से भले ही लोग सन्न हो गए, भले ही सबके चेहरे पर भय आ गया किंतु उस बालक के चेहरे पर पूर्णसंतुष्टि थी क्योंकि उसने अपने अधिकार वाली वस्तु का दान किया था। उसकी मासूम आंखे सामने उस तपस्वी को देख रहीं थीं जिसने उसके दान को स्वीकार किया था, जो उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। भगवान बुद्ध ने उस छोटे बालक के दान को सहर्ष स्वीकार किया था।

कुछ समय बाद जब बुद्ध आगे बढ़ गए तो उनके एक शिष्य ने उनसे पूछा, “भगवन! उस बालक ने आपके पात्र मे मिट्टी दी किंतु आप उससे प्रसन्न हुए। ये बात समझ मे न आई।”

बुद्ध ने अपनी करुण वाणी मे कहा, “वह बालक मुझे मिट्टी देने का साहस कर सका क्योंकि उसे उस पर अपना अधिकार ज्ञात था। समय के एक हिस्से मे जब इसके पास पूरा भारत होगा तब यह मुझे वह भी दान दे देगा। मिट्टी का दान करना साहस और त्याग दोनों का प्रमाण है और वह दोनों इस बालक मे हैं। किसी अन्य जन्म मे यह सम्पूर्ण भारत का शासक होगा और तब यह मुझे पूरा भारत दान दे देगा।”

यही बालक जय अपने अगले जन्म मे सम्राट अशोक हुआ जिन्होंने अखंड भारत का निर्माण किया। जिन्हें देवनांपिय अर्थात देवों के प्रिय कहा गया।

भारत के स्वर्णिम इतिहास के निर्माता अशोक के पूर्वजन्म की कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट मे जरूर बताएं। आप हमारे इस ब्लॉग को फॉलो करें तथा नॉटिकिकेशन को ऑन करें ताकि हम आपको अगली पोस्ट की सूचना दे सकें।

धन्यवाद।



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