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बेस्ट च्वॉइस। Best Choice । theromanch story

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बारिश बंद हो गई थी लेकिन केशव न आया। अब तो सुनिधि को चिंता सी होने लगी थी। तीन घंटे बीत गए थे उसका फोन आए हुए। कहीं किसी ने देख तो नहीं लिया या मम्मी-पापा ने रोक लिया हो। हो सकता है कि वो डर रहा हो। डरपोक है ही। वैसे भी कोई भी इस सिचुएशन में डर जाए। किसी लड़की के घर रात भर के लिए आना और रुकना इस इलाके के लिए इतनी सिम्पल बात तो नहीं। बेचारी सुनिधि कितनी बेसब्री से इस पल का इंतजार कर रही थी। कितने महीनों से कर रही थी। हाय। 

सुनिधि पीजी सेकंड ईयर स्टूडेंट थी मालवीय कॉलेज में। केशव उसका क्लासमेट था। छोटे-छोटे रंधावा स्टाइल वाले खड़े बाल, गोरा लम्बा चेहरा और लम्बी-चौड़ी हॉट पर्सनॉलिटी वाला केशव अभी भी शर्मीला था। सुनिधि को वो पहली नजर में ही पसंद आया था लेकिन भला वह कैसे कह देती। वह तो बस उसे एक बार आंख भर देख लेती और उसी से खुश हो जाती। सहेलियां उसकी इन चोर आंखो को पहचानकर आगे बढ़ने को धक्का देती लेकिन वो न बढ़ी। इस दौरान तमाम लड़को ने उस तक पहुंच बनानी चाही लेकिन कोई भी सफल न हुआ। सुनिधि ने किसी को आने न दिया क्योंकि उसका मासूम दिल केशव के लिए धीमे-धीमे धड़क रहा था। फिर किसी तरह वो दिन भी आया जब केशव किसी कारणवश कक्षा में अकेला रह गया और सुनिधि भी चार-पांच बेंच पीछे बैठी हुई थी। दोनों शर्मीले पंछी उस दिन वार्तालाप के एक-दो बोल निकालने में सफल रहे जिसने उनके बीच बहती खामोश गहरी नदी के लिए पुल का काम किया। धीरे-धीरे चीजें बढ़ी और आज आठ महीनों बाद उन्होनें मिलने का प्लॉन बनाया था। सुनिधि के माता-पिता शहर से बाहर थे और संयोग के इस अवसर का लाभ उठाने हेतु उसने केशव को बुला लिया था। वो तो कब का आ गया होता लेकिन ये कम्बख्त बारिश। बेवजह पहले शुरू हो गई थी। काश वो आ जाता और तब ये बरसे। दोनों साथ बैठ के मजे लेते। क्या मुझे उसे फोन करना चाहिए? नहीं-नहीं पिछली बार मम्मी ने उठाया था तो झट से कट करना पड़ा था। उसने पॉसवर्ड भी तो घर में सबको बता रखा है। मैसेज भी नहीं कर सकती। क्या करूं? सुनिधि ने कमरे के किनारे लगे आइने में खुद को देखा। कितनी मेहनत से उसने इस लाइट मेकअप से खुद को संवार रखा था। केशव को ज्यादा मेकअप पसंद नहीं और भला वह कोई ऐसा काम कर सकती है जो केशव को ना पसंद हो। वो केशव की है तो उसी के हिसाब से रहेगी। पूरी जिंदगी।

उसकी सोच का दरिया बहता जा रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी। केशव आ गया। बेकाबू हँसी-खुशी को समेटती वह दरवाजे की तरफ भागी। कौन आया है इसे देखने की जरूरत भी क्या थी। केशव ही होगा। उसने झट से दरवाजा खोल दिया। एक सेकंड में सारा जोश, सारी खुशी ठंडी पड़ गई। हँसी गायब हो गई और उत्साह जम गया। भयभीत चेहरे पर गम्भीर भाव का हिजाब चढ़ाकर उसने जमी जुबान को पिघलाकर फुसफुसाता स्वर निकाला। गौरव। गौरव मिस्टर मोतीलाल का बड़ा बेटा था जिसके साथ सुनिधि की शादी की बात चल रही थी।

येस मैं। क्यों किसी और का इंतजार था तुमको?’ गौरव ने आत्मविश्वास से भरे गर्वीले अंदाज में कहा। सुनिधि निरुत्तर रही तो गौरव भीतर घुसता चला आया और घर देखने लगा।

मम्मी-पापा तो हैं नहीं। कहीं गए हैं। सुनिधि ने इस विषम परिस्थिति में सर्वाधिक उचित लगने वाला वाक्य कहा तो गौरव उसकी ओर मुस्कुराते हुए घूमा। ये तो पता है मुझे। तभी तो आया हूं। उसकी मुस्कान कटीली थी। शैतानी थी। सुनिधि को डर लग रहा था। जी

हाइवे पर देखा था उनको, सिटी से बाहर जा रहे थे। तुम नहीं थी तो सोचा कहीं अकेले डर न लगे तुमको तो बस चला आया। देखो बाहर बारिश भी हुई और दोबारा भी हो सकती है। वो सुनिधि की तरफ बढ़ता चला आया। कहीं बिजली कड़की और तुम घबराई तो कोई होना चाहिए ना तुम्हें अपने सीने में समेटने के लिए। उसने सुनिधि का हाथ पकड़ना चाहा लेकिन उसने झटक दिया।

गौरव आप अभी यहां नहीं रह सकते। जब पापा होंगे तब आइएगा। ऐसे सही नहीं है।

सही नहीं है?’ गौरव ने यूं प्रश्नवाचक देखा जैसे सुनिधि ने अनुचित कहा हो। इसमें क्या गलत है?’

बस ये सही नहीं है। आप अभी जाइए यहां से।

अरे हमारी शादी तय हो चुकी है। हम बहुत जल्द एक दूसरे के हो जाएंगे और तब तो हमें साथ में रहना ही है। इसमें गलत क्या है?’

लेकिन अभी हुई नहीं है सुनिधि हर पल ज्यादा असहज हो रही थी। अभी आप यहां से जाइए बस।

गौरव आज बहुत से ख्याल बुनकर आया था और उनको भुलाकर ऐसे चले जाने को कहना उसे बिल्कुल भी सही नहीं लग रहा था। सुनिधि खुद उसे जाने को कह रही थी यह तो उसे और भी बुरा लग रहा था फिर भी उसने स्थिति को सीधा करने की आखिरी कोशिश की। मुझे लगता है कि तुम शर्मा रही हो। उसने आगे बढ़कर सुनिधि के कंधे पर हाथ रखा। मेरे साथ रही नहीं हो ना ज्यादा। उसने दूसरा हाथ भी कंधे पर रखा। सुनिधि के लिए यह असहनीय हो चुका था। उसने गौरव के हाथ झटका और तेज आंखो से देखते हुए चिल्लाई। आपको समझ नहीं आता क्या? मै आपसे कहती जा रही कि यहां से जाइए और आप हैं कि बेशर्मों की तरह रुके हुए हैं।

गौरव के लिए यह बेइज्जती बर्दाश्त से बाहर थी। मुंह पोंछकर वह बाहर की ओर निकला और दरवाजे से बाहर आया कि ठिठककर खड़ा हो गया। सुनिधि इस तरह उसको भगाकर डर रही थी कि गौरव का रुकना देखकर आगामी अनहोनी की आशंका ने उसके मन पर डर की छाया फैला दी। गौरव सामने देखता रहा और फिर सुनिधि की ओर घूमा। ये कौन है?’

सुनिधि कदम बढ़ाकर दरवाजे पर आई और उसका जी धक्क हो गया। दरवाजे के बाहर केशव खड़ा हुआ था। तीनों व्यक्ति इस समय इसी कश्मकश में थे कि कौन क्या कहे। किस भाव से एक-दूसरे को देखे और सामने से कोई प्रश्न पूछे तो क्या उत्तर दे। खामोशी की ठिठुरती लहर ने तीनों को अपने आगोश में ले रखा था और हिम्मत बटोरते-समेटे ये भ्रमित बच्चे भीतर ही भीतर संघर्ष कर रहे थे कि ब्रेक की तेज आवाज आई और गाड़ी के टायर लॉन के गेट पर आकर रुके। अब ये सच में अनहोनी हो गई थी। ना कोई कहीं जा सकता था ना कुछ कह सकता था। बस एक दूसरे को घूम-घूमकर देख रहे थे। गाड़ी से अधेड़ दम्पति उतरे और चलते हुए आ गए।

गौरव पुरुष ने कहा।

सुनिधि स्त्री ने कहा।

अंकल गौरव बुदबुदाया।

मम्मी सुनिधि फुसफुसाई।

केशव इस विचित्र शतरंज का मौन सिपाही बनकर खड़ा रह गया।

.......

स्थिति कुछ ज्यादा ही बिगड़ चुकी थी। गौरव बिन बुलाए आया था जिससे सुनिधि के पिता मिस्टर अग्रवाल खफा थे। मिसेज टूटी बैठी थी। बिटिया हाथ से निकल गई थी। गौरव खुद तो फंसा था लेकिन केशव का होना उसे इतना गुस्सा कर चुका था कि उसे खुद की समस्या दिखाई न दे रही थी। मामला तंग था और माहौल खामोश। हवा के थपेड़े ही थे जो रह-रहकर एहसास कराते थे कि अभी वे जिंदा थे। कुछ देर तो ये गहरी शांति जमी रही और फिर बर्फ का एक टुकड़ा टूटा।

सारे दिन दिखा दिए आपकी बिटिया ने। वो भी शादी से पहले ही। गौरव ने मामला मोड़ा। मिस्टर केशव की ओर घूमे। क्या नाम है तुम्हारा?’

जी केशव।

सुनिधि के साथ पढ़ते हो?’

जी

वो सुनिधि की ओर घूमे। कब से चल रहा ये सब?’

सुनिधि के मन में डर, संकोच, असहजता और लज्जा का सम्मिश्रित भाव था किंतु स्थान और स्थिति इसकी अनुमति नहीं दे रही थी। उसे साहस का एक पौधा रोंपना ही पड़ा। हम अच्छे दोस्त हैं।

मैंने पूछा कब से चल रहा ये?’

कुछ महीनों से।

अग्रवाल की भौंहे तन गई। कई महीनों से ये लड़का घर आ रहा है।

जी नहीं सुनिधि ने झट से सिर उठाया। घर तो पहली बार आए आज। जब आप बाहर थे।

अग्रवाल ने पत्नी को देखा जो सिर पर हाथ रखे बैठी हुई थी। वे टहलते हुए केशव तक गए। केशव नजरें झुकाए खड़ा था। जब भी हम बाहर होंगे, तुम यहां आओगे?’

जी नहीं। अब मै यहां कभी नहीं आऊंगा।

अग्रवाल मुस्कुराए और घूमे। सुनिधि! ये प्रेमी तो बड़ा कच्चा निकला। इतना डरपोक तो मै भी नहीं था कभी।

सुनिधि ने सिर उठाकर आश्चर्य से देखा। वही भाव दूसरी आंखो में भी था।

जी नहीं। मेरा मतलब था कि ऐसे घर नहीं आऊंगा। गौरव ने निर्दोष भाव से स्पष्ट किया।

और मेरी बेटी से मिलोगे?’

गौरव ने सुनिधि की ओर देखा। दोनों दुर्बल थे। निरुत्तर।

अग्रवाल अनुभवी आदमी थे। इस हिचकिचाहट का लुत्फ उठा अच्छे से जानते थे। कुछ क्षण गम्भीरता का चद्दर ओढ़े रहे फिर खिलखिलाए। कहां से ढूंढ़ लिया इस बंदे को तुमने।

जी सुनिधि फुसफुसाई।

इतनी शर्म तो किसी लड़की में भी नहीं होती आजकल। गजब है ये बंदा।

सुनिधि मुस्कुराई। केशव विस्मित सिमट गया। मिसेज और गौरव उछल पड़े। अंकल। गौरव चिड़चिड़ाया।

बोलो।

ये आप क्या कर रहे? ये लड़का आपकी लड़की के पास अकेले में आया था।

वो तो तुम भी आए थे और तुम्हें तो मेरी बेटी ने बुलाया भी नहीं था।

कैसी बातें कर रहे आप? इज्जत-सम्मान कुछ है की नहीं।

है। बहुत है। और उसी का मान रख रहा हूं। मेरी बेटी की जहां इच्छा होगी, वहां रहेगी। जिसके साथ मन होगा, उसके साथ रहेगी। इसमें ड्रामा खड़ा करने की क्या जरूरत?’

लोग जानेंगे तो हँसेंगे आपपर।

फिर भी मेरी बेटी की पसंद उसके साथ है, इसका सुकून मुझे रहेगा।

गौरव झटककर बाहर निकल गया। सुनिधि आगे आकर पिता से लिपट गई। उन्होनें चिपका लिया।

ऐम सॉरी केशव ने धीमे से कहा।

हां अग्रवाल ने खुले अंदाज में कहा। दोबारा इस तरह का मौका न आए। ये सब स्कूल-कॉलेज तक सीमित रखो और पढ़ाई पूरी करो। इस बार छोड़ रहा हूं।

केशव भ्रमित था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या जबाब दे और कैसे जाए। कुछ देर तक सोचता रहा फिर आगे आया। अग्रवाल के पैर छुए। मिसेज के पैर छुए। और चुपचाप निकल गया।

ये बेस्ट च्वॉइस है तुम्हारी अग्रवाल ने कहा और सिर पर हाथ फेर दिया। गहरा माहौल ठंडा हुआ था और रात भी।







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