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राखी: भाई बहन का प्रेम । रोमांच । rakhi | love between brother and sister | The Romanch |

राखी

Rakhi-theromanch.com



पिछले चार दिन से सीमा उदास थी। हो भी क्यों न, राखी जो आ रही थी। हर बार उसके भैया उसके घर आते थे। दस साल के बच्चे की मां अपने भैया के सामने बच्ची हो जाती थी। प्रेम से राखी बांधती थी। जबरदस्ती मिठाई खिलाती थी और रुपए के लिए जिद करती थी।

शादी के इतने सालों के बाद जब दूसरों की अपेक्षाओं मे वो कुशल गृहिणी, गम्भीर स्त्री, परिपक्व मां थी, वहीं अपने भैया के लिए वह अब भी लाडो थी, गुड़िया थी जिनके सामने वह एक साथ हंस भी सकती थी, रो भी सकती थी और गुस्सा भी हो सकती थी।

इतने सालों से जिस भाई से इतना प्यार, इतना दुलार करती थी वह इस साल नहीं आ सकता था यह सोचकर वह छुप-छुप कर रोए जा रही थी। कैसे आता उसका भाई, वह तो आठ महीने पहले इस संसार को छोड़ कर ही चला गया है।

महीनों तक वह रोई, बीमार भी हो गई और फिर ठीक होकर घर आ गई। रोना तो बंद हो गया था पर भैया की सूरत आंखो से न गई थी, उनका दुलार न भूल पायी थी। रह-रह कर वो याद आ ही जाते थें लेकिन धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य हो गई। रोना बंद हुआ पर चार दिन पहले जब बाजार मे राखियों की दूकान देखी तो फिर से वही चालू हो गया।

गोलू ने तो पूछा भी था कि मां क्यों इतना उदास हो। तब तो झूठ बोलकर कि बस सिर मे दर्द है उसको फुसला दिया था लेकिन अमृत को पता चल गया था। उन्होने प्यार से समझाया, मन बहलाया, बाहर लेकर भी गए लेकिन आज उन्हें भी तो जाना था। कविता उनका भी तो इंतजार कर रही होगी। गोलू भी उनके साथ चला गया था और वो अकेली रह गई।

पढ़ें कहानी 'पथिक'

अकेली हॉल मे बैठी उसने मोबाइल उठाया। गैलरी मे जाकर भैया की तस्वीरें देखने लगी। उनका चोटी खींचना, गाल नोचना, गोलू के साथ आइसक्रीम नाक पर लगाकर पोज देना।

उसके गालों पर दो आंसू ढुलक गए।

“भैया!” उसके होठों से धीमा स्वर निकला और अतीत के पन्ने मे वह खो गई।

“भैया! छोड़िए ना मेरा कान” सीमा ने एक आंख बंद करके खुद को छुड़ाते हुए कहा।

“क्यों छोड़ दूं तुझे? शादी हो गई तो भाई को भूल जाएगी। बोलो भला इसीलिए की थी शादी तुम्हारी” रमेश ने डांटने के अंदाज मे कहा।

“अरे भैया कहां भूल गई आपको मै? भला मै आपको भूल सकती हूं कभी? बोलो?” अपने कान को सहलाते हुए उसने कहा।

“हां तभी पिछले पंद्रह दिन मे खुद से एक भी फोन नहीं किया। मुझे ही करना पड़ता है और तब भी तू दो मिनट मे रख देती है” रमेश ने अपनी आंखे बड़ी की।

“अरे तो भैया वहां घर मे सब होते हैं, काम होता है करने को। आपने ही तो कहा था वहां जाना सबका ध्यान रखना, अच्छे से रहना” उसने नकल की।

“अरे मेरी बिट्टू!” रमेश ने गले से लगा लिया, “मेरी बिट्टू इतना काम करने लगी है। सबका ध्यान रखने लगी है। बहुत अच्छा मेरी गुड़िया”

“हां भैया! और सब बहुत खुश हैं मुझसे” उसने भैया को देखकर कहा।

“होंगे ही मेरी गुड़िया से, इतनी समझदार जो है”

“लेकिन आप चिंता ना करो भैया! मै आपको कभी नहीं भूलूंगी” उसने चहकते हुए कहा।

“कभी नहीं!” रमेश ने उसके सिर पर हाथ फेरा।

“और आप मुझे रोज फोन करने आएंगे और हमेशा मिलने आएंगे” चुटकी बजाकर उसने कहा।

“हमेशा!”

हॉर्न की आवाज आने से सीमा वर्तमान मे आई। बाहर कोई हॉर्न बजा रहा था। यकायक उसके अंदर रोमांच आया और वह दरवाजे की ओर दौड़ी लेकिन खिड़की से पड़ोस की सिमरन के भाई की गाड़ी देखकर उसके कदम ठिठक गए। उम्मीद से खुश हुआ चेहरा पल भर मे उसी तरह निराश हो गया। वह वापस से अंदर की ओर लौटने लगी।

हॉर्न की एक और आवाज आई। वह झट से घूम गई। यह आवाज उसके दरवाजे के पास से ही थी। उसके घर के सामने से ही आई थी। उसने दौड़कर दरवाजा खोला।

भैया की गाड़ी थी।

उसका चेहरे की हैरानी चरम पे थी। उसने गाड़ी को ध्यान से देखा।

दरवाजा खुला और आरव उतरा। साथ मे भाभी भी थीं।

“भाभी! आरव!” वह आगे आई।

“हां गुड़िया!” भाभी ने कहा।

“आप यहां? आज?”

“हां!” वात्सल्य उनके स्वर मे था, “भैया नहीं हैं तो क्या हुआ, हम तो हैं। हम आएं है गुड़िया के पास राखी बंधवाने।”

“भाभी!” सीमा ने उनका हाथ पकड़ लिया।

“रो मत गुड़िया! तेरे भैया को वहां से अच्छा नहीं लगेगा” भाभी ने सीमा को गले से लगा लिया।

अपने हाथों मे गिफ्ट का पैकेट लिए आरव आंखो मे आंसू लिए मुस्कुरा रहा था।


पढ़ें हमारी अगली कहानी 'विक्षिप्त'

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हमारी सबसे बेहतरीन कहानी 'अनोखी मछली'

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