अनोखी मछली (भाग 8) | रोमांच। Anokhi Machhali (part 8) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch
अनोखी मछली
रोमांच। Anokhi Machhali (part 8) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch
यह कहानी हमारी कहानी अनोखी मछली का आंठवा भाग है। यदि आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहां से पढ़ें।
पिछला भाग- अनोखी मछली(भाग 7)
भाग 8
सैनिक के वार से बचने के लिए अंगद ने अपनी ढाल आगे
की। वार घातक था लेकिन ढाल ने बचाया। अंगद ने तुरंत जोर देकर उसे पीछे धकेल दिया।
तब तक दूसरा सैनिक आ चुका था। उसके तलवार के वार से नीचे झुककर खुद को बचाकर अंगद
ने उसके पैरों पर ढाल मारी। वह गिर गया। उसके कंधे पर पैर रखकर वह उछला और आगे के
तीन सैनिकों को उसने धक्का दिया। ढाल का जोर लगते ही वे गिरे और तुरंत खड़े हो गए।
इतनी देर मे सभी सैनिक आ चुके थे और उन्होने अंगद
को घेर लिया था। अंगद उनके बीच मे घिरा अपने कदमों को सम्भाले इधर-उधर चौकन्ना
होकर देख रहा था। किसी भी समय होने वाले हमले से तैयार वह अपनी ढाल को मजबूती से
थामे था। सैनिक उस पर वार करने ही वाले थे।
“रुक जाओ!” जंगल के भीतर से आवाज आई।
सैनिक रुक गए और एक पंक्ति मे अनुशासित ढंग से खड़े
हो गए।
अंगद ने देखने की कोशिश की।
भीतर से एक बूढ़ी आकृति आती प्रतीत हुई। धीरे धीरे
आकृति और स्पष्ट हुई। बूढ़े के साथ दो सैनिक चल रहे थे। वह और समीप आया।
अंगद ने ध्यान दिया। बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला यह आदमी
अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव मे था। भले ही उसकी त्वचा कमजोर दिख रही थी लेकिन उसकी
चाल मे कोई दुर्बलता नहीं थी। उसके चेहरे की चमक उसके अंदर की मजबूती को दिखाती थी
और उसकी आंखे, उसकी आंखे तेल मे डूबे हुए हीरे की तरह चमकदार
थीं। उसने ध्यान दिया। ऐसी आंखे वह देख चुका है। कहां ये मालुम नहीं पर देख चुका
था।
“अंगद तुम्हारा ही नाम है?” उसने कठोर स्वर मे कहा।
“कौन हो तुम?” अंगद ने उसके
प्रश्न को छोड़कर अपना प्रश्न किया, “और कहां हैं राजकुमारी?”
“चिंता मत करो” बूढ़े ने आश्वासन दिया, “राजकुमारी सोनल सुरक्षित हैं। हां ये जरूर है कि उनकी वजह से मेरे पचास
से भी ज्यादा सैनिक घायल पड़े हैं। कईयों को तो उन्होने मौत तक पहुंचा दिया है।”
“तुम लोगों ने उन्हें बंधक बनाया है?” अंगद अब भी क्रुद्ध था।
“बनाता” बूढ़ा जहाज की ओर देखते हुए बोला, “यहां आने वाले हर जहाज को हम पकड़ लेते हैं। हर व्यक्ति को बंधक बना लेते
हैं जो हमारी सभ्यता की तरफ आंख उठाते हैं। तुम्हारे जहाज को पकड़ते समय अकेली वहीं
थी जिनसे हमारी टक्कर हुई” उसने पेड़ से बंधे लोगों पर नजर डाली, “तुम्हारे सभी साथी सो रहे थे जबकि वह अकेली जाग रही थी। उसको पकड़ने मे
मेरे लोगों को सच मे बहुत मेहनत करनी पड़ी।”
“वो राजकुमारी है” अंगद गुर्राया, “उनको पकड़ने का मतलब भी समझते हो तुम? पूरी
अंतराभूमि की सेना तुम्हारे इस जंगल को समाप्त कर देगी।”
“और उन्हें यहां का रास्ता कौन बताएगा?” बूढ़े ने झुककर कहा, “तुम चिंता मत करो। हमने उन्हें
बस अपने पास रखा है। वो बंधन मे नहीं हैं तब तक, जब तक कि
तुम लोग हमारे लिए अधिक खतरा नहीं बनते जो वो तो अब नहीं है,
शायद तुम हो?”
“नहीं! हम राजकुमारी के अनुसार ही चलेंगे” अंगद ने
अपने पेट को दबाते हुए कहा।
“लेकिन तुम्हारे सैनिक अभी नहीं खोले जाएंगे” बूढ़े
ने कहा।
सभी जंगल से अंदर की तरफ गए।
जैसा यह टापू बाहर से लग रहा था, अंदर से बिल्कुल विपरीत था। अंदर कोई जंगल नहीं था बल्कि एक बसा हुआ नगर
था। घर तो सभी कच्चे ही थे किंतु सब के सब सुव्यवस्थित थे।मुख्य मार्ग पर बाजार था
जहां लोग खरीददारी कर रहे थे। कुछ पचास-साठ दुकानें रास्ते के दोनों तरफ थीं। बहुत
अधिक शोर-शराबा नहीं था।
जिस रास्ते से अंगद और वह बूढ़ा व्यक्ति निकले उस पर
भी लोग आराम से अपना काम कर रहे थे। उनके बीच की इस लगातार खामोशी से अंगद परेशान
हो रहा था। कुछ बात करने के लिए उसने पूछना चाहा, “आप!”
उसने तुम नहीं कहा, “आप इस राज्य के क्या हैं?”
बूढ़ा उसकी तरफ घूमा। “अब इसको राज्य कहें या बस एक
कबीला या दस हज़ार लोगों का एक घर। अपार समुद्र के बीच बसा यह एक अदृश्य द्वीप है
जिसका मै सरदार हूं या मुखिया कह दो” बूढ़े ने चारों तरफ देखकर हाथ फैलाए हुए कहा।
“और इसका नाम क्या है?” अंगद ने प्रश्न किया।
“हमारे इस छोटे लेकिन पूरे घर का नाम है, रबील!” बूढ़े ने प्रसन्नता से बताया।
“रबील?” अंगद रुक गया।
वह स्तब्ध हो गया।
“क्या हुआ?” बूढ़े ने उसकी
तरफ देखा और फिर से अपनी दुनिया को देखने लगा।
“कुछ नहीं” अंगद हकलाते हुए बोला। उसकी धड़कने बढ़
चुकी थीं। उसने शांत रहने का विचार किया। लेकिन उसके मन की कश्मकश उससे एक प्रश्न
पूछने को बार-बार कह रही थी। अपने मन को नियंत्रित ना कर सकने पर उसने कहा, “और आपका क्या नाम है सरदार?”
“तवारी” बूढ़े ने गर्व से कहा।
सभी आगे बढ़ गए। अंगद के होठों पर एक मुस्कान थी।
“राजकुमारी!” अंगद दौड़ते हुए सोनल तक गया।
कबीले के मध्य मे बने बड़े से भवन के आते ही तवारी
ने उसे बता दिया था कि राजकुमारी को कहां रखा गया है। अंगद बिना देरी के उससे
मिलने भागा था।
“अंगद!” सोनल उठ के खड़ी हो गई। उसके शरीर पर कई
चोटों के निशान थे।
अंगद दौड़कर उसे गले लगाने ही वाला था लेकिन फिर वह
झटके से रुक गया। ऐसा लगा जैसे उसने खुद को रोका हो। राजकुमारी भी उसके आलिंगन के
लिए तैयार थीं किंतु फिर उन्हे भी एहसास हो गया और वे सीधी हो गईं।
“आप ठीक तो हैं?” अंगद उसके घावों
की ओर देखकर बोला।
“हां! बिल्कुल” सोनल मुस्कुराते हुए बोली।
“पर आपने इतने सैनिकों से युद्ध लड़ा?” अंगद ने कहा।
“हां! ये लोग मुझे बंदी बनाकर ही लाए थे लेकिन जब
मैने बताया कि मै कोंकण की राजकुमारी हूं तो उन्होने मुझे छोड़ दिया। मुझे यहां
लाकर रख दिया”
“राजकुमारी! हमें यहां से चलना होगा” अंगद ने चारों
ओर देखकर कहा, “यहां रहना बहुत खतरनाक है|”
“क्यों?” सोनल उसके भावों
को समझने का प्रयास कर रही थी।
“क्योंकि दुनिया मे केवल यही जगह है जहां मेरी मां
ने मुझे आने से मना किया था।” अंगद इधर-उधर देखते हुए बोला।
“तुम्हारी मां जानती थीं ऐसी किसी जगह के विषय मे?” सोनल ने आश्चर्य किया।
“हां! पर अभी ज्यादा कुछ नहीं पूछो। हम यहां से
जाएं। बाद मे मै तुमको सब बता दूंगा।” अंगद ने कहा।
वे दोनों तुरंत बाहर आए। बाहर दो सैनिक उनके इंतजार
मे थे। दोनों जल्द ही सरदार तवारी के पास पहुंच गए।
“राजकुमारी! अंगद! आइए आकर हमारे साथ भोजन कीजिए”
तवारी ने उनका स्वागत किया।
अंगद ने वहां उपस्थित लोगों की तरफ देखा। सभी उन
दोनों को ही देख रहे थे। तवारी के बगल मे दो पत्तलें और रख दी गईं। दोनों बैठ गए।
अंगद वहां के लोगों की प्रतिक्रिया को समझ रहा था
किंतु तवारी का व्यवहार उसे समझ नहीं आ रहा था।
मां ने तो कहा था कि ये लोग किसी से नहीं मिलते पर सरदार क्यों हमसे इतना प्रसन्न हैं। वे हमें यहां रहने ही क्यों दे रहे हैं?
“राजकुमारी!” तवारी ने निवाला निगलते हुए पूछा, “आप लोग इतनी दूर किस उद्देश्य से आए हैं?”
अंगद की वैचारिक श्रंखला भंग हुई। उसने सोनल की तरफ
देखा जो उत्तर देने मे स्वयं को असहज समझ महसूस कर रही थी। अंगद ने उसके मन को
समझते हुए कहा, “हम अनोखी मछली की तलाश मे हैं।”
एक क्षण के लिए तवारी ने अपने लोगों की ओर देखा, उनका चेहरा सख्त हो गया किंतु पुनः उन्होने विनम्र होकर पूछा, “क्यों? वह तो बस कथाओं का हिस्सा है।”
सोनल खाने मे मग्न थी किंतु अंगद वहां के लोगों के
भावों को अधिक से अधिक जानने का इच्छुक था। उसने देख लिया था कि अनोखी मछली के नाम
से ही इन लोगों के भावों मे कुछ दृढ़ता आ गई थी। शायद ये लोग उसके विषय मे कुछ अधिक
जानते थे।
मां सही कहतीं थीं ये लोग रहस्यमयी हैं।
“मैनें बचपन से ही दादी से उसकी कहानी सुनी है।
मुझे उससे मिलने का मन होता है।” सोनल ने अपने सपनों का वर्णन किया।
“राजकुमारी उसे बस एक बार देखना चाहतीं हैं” अंगद
ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया और फिर सोनल की तरफ देखा जो उसकी इस बात से कुछ
हैरान थी।
“तो आप लोग बस उसे एक बार देखने के लिए यात्रा कर
रहे हैं” तवारी ने संदेह किया।
“हां!” अंगद ने हाथ लहराते हुए सोनल का समर्थन
मांगा, “हमें कौन सा उसे लेकर जाना है।”
सोनल उसको देखकर अधिक हैरान हो रही थी। ऐसा तो कभी
कहा ही नहीं गया था। ऐसी बात भी नहीं हुई थी। वह तो मछली लेने आई थी। फिर अंगद
क्यों ऐसा कह रहा। उसने अंगद की तरफ कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उसे उसके
बाएं हाथ की उंगली सीधी दिखी। अंगद उससे चुप रहने का इशारा दे रहा था यद्यपि वह
स्वयं तवारी से कुछ और कहने लगा था।
“ये अंगद कोई बहुत बड़ा रहस्य छुपा रहा है” सोनल ने
अपने मन मे कहा। उसने अपना ध्यान उनकी बातों पर लगाया।
“तो आप कहना चाहते हैं कि कुछ लोग इस कथा पर
विश्वास भी नहीं करते?” अंगद ने अभी-अभी तवारी द्वारा
बताई गयी किसी बात पर प्रश्न किया।
“हां! हालाकिं कुछ लोग ऐसे हैं जो इसे सही मानते
हैं पर ये तो हज़ारों साल पहले की बात है। अब कौन जाने क्या सही और क्या गलत?” तवारी ने अपने अनुभवी अंदाज मे कहा।
“फिर भी हम इतनी दूर आएं हैं तो एक बार तो देखेंगे
ही” अंगद ने हाथ पोंछते हुए कहा।
“जरूर! यदि सच मे आपकी किस्मत आपको वहां तक ले जाए” तवारी ने जल का पात्र नीचे रखते हुए कहा।
कहानी जारी रहेगी....
पढ़ें अगला भाग- अनोखी मछली (भाग 9)
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