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अनोखी मछली (भाग 7) | रोमांच । Anokhi Machhali (part 7) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch

अनोखी मछली

रोमांच। Anokhi Machhali (part 7) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch

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यह कहानी हमारी कहानी अनोखी मछली का सांतवा भाग है। यदि आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहां से पढ़ें।

अनोखी मछली (भाग 1) 


पिछला भाग- अनोखी मछली (भाग 6)

 

भाग 7


अरब सागर मे उतरा कोंकण का एक जहाज हिंद महासागर मे दो महीने बिता चुका था। जहाज के लोगों को एक ऐसी चीज की तलाश थी जो किसी को नहीं पता कि कहां है। काफी विचार-विमर्श करने के बाद समूह इस नतीजे पर पहुंचा था कि वे समुद्री द्वीपों पर जाकर वहां बसी जन-जातियों से इस कहानी के विषय मे पूछेंगे। ऐसे बहुत से द्वीप हैं जहां जनजातियां रहती हैं जो पूर्व समय के मछुवारों के बीच से ही अलग होकर किसी द्वीप पर रहने लगी थी।

बहुत से द्वीपों का चक्कर लगा लेने के बाद भी कुछ पता न चलने पर समूह कुछ निराश था। सभी महत्वपूर्ण लोग जहाज की छत पर खड़े होकर कुछ बातचीत कर रहे थे।

“इस दिशा मे तो बढ़ना भी सही नहीं लग रहा मुझे” मुनीर ने मानचित्र देखते हुए कहा।

उन्होने अपनी यात्राओं और पहले की यात्राओं के आधार पर एक नया समुद्री मानचित्र बनाया था।

“पर उम्मीद इसी तरफ से है” अंगद ने समुद्र की लहरों को देखा।

“पर तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?” तवेशर ने पूछा।

“क्योंकि और अधिक दक्षिण मे हिंद महासागर की गहराइयां शुरू हो जाती हैं और वहां किसी द्वीप का होना ही कठिन है और यदि हुआ भी तो वहां किसी जाति का बसना नहीं हो सकता। हम पूर्व की तरफ जाकर सिंहल के पास से गुजरकर आगे के द्वीपों पर खोज करेंगे।”

“ये काम कठिन होगा ये तो मुझे पहले से ही पता था” सोनल ने अपने पास रखे एक छोटे कंकड़ को पानी मे फेंकते हुए कहा।

इतने समय मे इन चारों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी।

“हां है तो” अंगद भी बैठ गया, “एक बार इस कहानी के बारे मे और जानकारी मिले तो शायद हम उस तक पहुंचने का कोई रास्ता खोज पाएं”

“तुम अधिक चिंता मत करो उस्ताद!” सोनल ने उसकी ओर देखा, “हम जरूर कामयाब होंगे।”

“राजकुमारी!” अंगद ने राजकुमारी को आंखो से सहमति दी।

पीछे खड़े दोनों दोस्त एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए। जाहिर था राजकुमारी अब अंगद से प्रभावित थीं।

 

रात हो चुकी थी और सोनल, अंगद और तवेशर सो चुके थे। मुनीर रात के दो पहर जागकर सोने जाता था जब तवेशर आ जाता था और चौथे पहर के शुरु होते-होते अंगद उठ जाता था। सोनल को इन कार्यों मे नहीं रखा जा सकता था यद्यपि वह स्वयं दिन भर जहाज की सुरक्षा के विषय मे विचार करती रहती थी।

मुनीर ने दूर पूर्वी छोर पर दृष्टि डाली। अधिक दूरी पर उसे कुछ प्रतीत हुआ। शांत समुद्र की समतल काली छाया मे दूर कुछ उत्थान दिखा। उसने दूरबीन लगाई।

“हे भगवान!” उसने आह भरी, “बड़े जहाजों का एक बेड़ा दिखाई दिया।

“रिपू!” उसने एक साथी को आदेश दिया, “अंगद और बाकी सभी को तुरंत बुला कर लाओ।”

कुछ ही समय मे अंगद, तवेशर और सोनल आ चुके थें। बाकी के सभी सैनिक भी आ गए थे।

“इतनी बड़ी सेना!” अंगद ने भयभीत होकर कहा।

“ये हम पर आक्रमण नहीं करेंगे” सोनल किसी निष्कर्ष पर पहुंचती प्रतीत हुई, “ये हमारा पीछा कर रहे हैं।”

“कैसे?” तवेशर ने आपत्ति की, “आप ये बात कैसे कह सकती हैं?”

“इतनी बड़ी सेना कोई लुटेरों की सेना नहीं” सोनल ने सभी को समझाते हुए कहा, “दिखने से ही लग रहा कि यहां कम से कम दस हज़ार लोग होंगे। ये किसी राज्य की सेना है जो या तो किसी यात्रा पर है अथवा हमारा पीछा कर रही।”

“आपका मतलब है कि कोई और भी आपसे विवाह करने का इतना अधिक इच्छुक है?” अंगद ने चुटकी ली।

“अंगद!” राजकुमारी दृढ़ हुईं।

अंगद सीधा हो गया। उसका मजाक अधिक था।

राजकुमारी हंस दी, “तुम इतना डर जाते हो?”

अंगद सहज हुआ।

“हमें कोई युक्ति करनी होगी” राजकुमारी ने योजना बनाने की मंशा की।

“हम उनसे भाग नहीं सकते” अंगद ने सेना देखते हुए कहा, “वो हमसे कुछ दो किलोमीटर की दूरी पर ही होंगे।”

“हम उनके राजा को ही मार दें? पूरी सेना भाग जाएगी एक बार मे” मुनीर ने सुझाव दिया।

“क्या?” राजकुमारी आश्चर्यचकित थीं, “क्या कहा तुमने?”

“हम उनके नायक को समाप्त कर दें” मुनीर ने स्पष्ट करना चाहा।

“अच्छा?” राजकुमारी ने मुस्कुराते हुए व्यंग किया, “तो जाओ सामने वो मरने के लिए इंतजार कर रहा। जाओ मार दो।”

अंगद शांत खड़ा उनकी बातें सुन रहा था। उसे पता था कि मुनीर किस अनुभव के आधार पर यह कह रहा है। तवेशर खड़ा मुस्कुरा रहा था। मुनीर ने उन दोनों की तरफ आशा से देखा।

“शायद आपने किसी समुद्री डाकू को मारा है?” राजकुमारी ने उसके भावों को पढ़ते हुए कहा।

“हां” मुनीर ने आधी हामी दी।

“और ये कोई डाकुओं का गिरोह दिखाई दे रहा” उसने इशारा किया।

“वो हमने एक बार ऐसा किया था” अंगद ने सपाट स्वर मे कहा।

“आप लोगों ने कहीं सौ-दो सौ लोगों को हरा दिया, इसका मतलब ये थोड़े ना कि आपने सेना परास्त कर दिया, “इस सेना का एक संगठित स्वरूप होगा जिसके सबसे सुरक्षित स्थान पर सेनानायक या राजा होगा। यहां वैसा नहीं होगा।”

“तो अब हम करेंगे क्या?” तवेशर ने पूछा।

“हमें उन्हें भ्रमित करेंगे” राजकुमारी ने जबाब दिया, “जहाज की गति ऐसे ही रखो। आओ सभी लोग, हमें तैयारी करनी है।”

अगले पूरे दिन तक जहाज वैसे ही चलता रहा किंतु सुबह के पहले ही सेना इतनी दूर हो गई थी कि उसे देखा ना जा सके।

अगली रात अंगद ने दूरबीन लगाई।

“बहुत अधिक दूर लग रही है।”

“तो अब हमें अपनी योजना पर कार्य करना चाहिए” राजकुमारी ने चलते हुए कहा।

तवेशर आज शाम को जलाई गयी मशाल ले आया।

“आपको विश्वास है कि ये कार्य करेगा?” मुनीर ने संदेह किया।

“बिल्कुल करेगा” राजकुमारी दृढ़ थी, “हम पिछले कई घंटो से यहीं रुके हुए हैं और इसीलिए वे आगे नहीं बढ़ रहे। इतनी अधिक दूरी से वे हमारे जहाज को नहीं बल्कि हमारी इस मशाल को देख रहे हैं। यदि हम सारी रात यहीं रुके रहेंगे तो वे नहीं आएंगे आगे।”

उसने अंगद की ओर देखकर इशारा दिया। अंगद ने हामी भरते हुए एक सैनिक को इशारा दिया। सैनिक भीतर चला गया।

दिन भर की मेहनत के बाद लकड़ी के लट्ठों से बनाई गयी एक छोटी तख्ती को लाया गया। तख्ती के एक हिस्से मे एक लट्ठ बंधा हुआ था। अंगद और मुनीर के साथ कुछ अन्य सैनिकों ने मिलकर तख्ती को पानी मे उतारा।

“तैर रही है” अंगद ने राजकुमारी से कहा।

“अब मशाल दो” राजकुमारी ने तवेशर को इशारा दिया।

मशाल को तख्ती के लट्ठ पर लगा दिया गया। लट्ठ की ऊंचाई उतनी ही थी जितने ऊंचे पर मशाल जहाज पर लगाई गयी थी।

“अब हमें धुएं की जरूरत है” राजकुमारी ने पीछे जाते हुए कहा।

दो सैनिक एक बोरी मे एक आटे जैसा पदार्थ लेकर आ गए।

“मेरे इशारे पर सभी इसे पानी मे डाल देंगे” राजकुमारी ने जोर से कहा ताकि सबको सुनाई दे।

अपनी-अपनी हथेलियों मे उस आटे को लेकर सभी सैनिक जहाज के किनारे पर आ गए।

“जैसे ही ये नीचे गिरेगा, हमें जहाज को आगे बढ़ा देना है” उसने अंगद की ओर देखा जो नीचे जहाज के चालक को इशारा देने के लिए तैयार था।

“अब” सोनल ने अपनी हथेली खाली की और पीछे हो गई।

सभी सैनिकों ने हथेली खाली की।

पानी मे गिरते ही उस आटे और पानी के सम्पर्क से धुआं आना शुरू हुआ। जहाज आगे चल दिया लेकिन तब तक जहाज पर भी धुआं आ चुका था। एक-एक करके सैनिक गिरने लगे। सारे सैनिक गिरे, तवेशर गिरा, मुनीर गिरा और फिर अंगद भी गिर गया।

अपने मुंह पर कपड़ा लपेटे सोनल वहीं खड़ी रही। जहाज चलता रहा।

 

 

पिछले दो घंटे मे जहाज ने काफी दूरी तय कर ली थी। चालक को आदेश था कि वह अधिकतम गति से जहाज चलाएगा ताकि वे अधिक से अधिक दूरी तय कर ले।

दूरबीन लगाकर सोनल ने देखा। दूर-दूर तक समुद्री समतल के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उसे पता था कि उस रसायनिक आटे के गहरे भारी धुएं का असर चार से पांच घंटे रहेगा जितनी देर वह एक छाया जैसे दूर से प्रतीत होगा और इस दौरान सेना का जहाज उस छाया और मशाल की रोशनी को जहाज समझकर आगे नहीं आएगा। वे अब सुरक्षित थे।

उसने पीछे मुड़कर बेहोश पड़े सैनिकों और अंगद, तवेशर और मुनीर को देखा। अपने पूर्व अनुभवों से उसे पता था कि ऐसे रसायन की बेहोशी कई घंटे तक रहती है। इनमे से कोई भी सुबह से पहले उठने वाला नहीं है। उसके मन को बहुत खुशी हुई। वह हिचकिचा रही थी किंतु उसे विश्वास था कि इनमे से कोई भी उसे नहीं देख पाएगा। धीरे-धीरे कदमों से वह आगे आई और अंगद के पास जाकर बैठ गई।

“अंगद” उसने धीमे स्वर मे कहा। उसके मन की कोमलता उसके स्वर मे परिलक्षित हो रही थी। उसने अंगद के माथे पर हाथ रखा।

सुकोमलता अंगद के सिर को प्राप्त हुई और सुकून सोनल के मन को। उसने अपनी आंखे बंद की।

बड़ी देर तक वह अंगद के सिर को, उसके बालों को सहलाती रही।

 

दिन निकल आया था जब अंगद की आंख खुली। उसने उठने की कोशिश की।

“आह” उसने सिर पर हाथ रखा। सिर मे कुछ दर्द था।

“ये क्या है?” उसने अपने चारों ओर देखा।

पूरे जहाज पर टूटने-फूटने के निशान थे। ऐसा लग रहा था जैसे यहां कठिन संघर्ष हुआ है। उसने ऊपर उठकर देखा। जहाज एक तट पर रुका हुआ था। आगे घना जंगल था। दृष्टि अब भी धूमिल थी। उसने आंखो को साफ किया और दोबारा देखा। दूर पेड़ से सभी सैनिक बंधे हुए थे। मुनीर भी पेड़ से बंधा सो रहा था और तवेशर बंधा हुआ बैठा था। शायद जाग रहा था पर इन सब मे सोनल नहीं थी।

“राजकुमारी!” अंगद जहाज से कूदा। नीचे खून की छींटे पड़े हुए थे और साथ ही कई तलवारें और ढाल।

पेड़ों के पास खड़े बीस सैनिक उसकी ओर दौड़े। सभी के हाथ मे तलवार थी। अंगद ने पास पड़ी एक ढाल उठाकर अपने आगे कर ली थी। कोंकण के बहुत से सैनिक इस शोर से जाग गए थे और देख रहे थे जब अंगद के ऊपर एक शत्रु सैनिक ने तलवार चलाई।


कहानी जारी रहेगी...

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