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अनोखी मछली (भाग 4)| रोमांच। Anokhi Machhali (part 4) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch

अनोखी मछली

रोमांच । Anokhi Machhali (part 4) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch

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यह कहानी हमारी कहानी अनोखी मछली का चौथा भाग है। यदि आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहां से पढ़ें।

अनोखी मछली (भाग 1)


पिछला भाग- अनोखी मछली (भाग 3)


भाग 4


दिन बीत गया था जब राजकुमारियों को होश आया। उठते ही सोनल ने कादम्बरी पुकारा।

“दीदी! मै यहीं हूं” बिस्तर के बगल पड़ी कुर्सी पर बैठी कादम्बरी ने सोनल का हाथ थाम कर कहा।

सोनल ने उठकर बैठना चाहा, “आह!” उसने सिर पर हाथ रखा, “सिर अभी तक घूम रहा है।” वह फिर से लेट गई।

“यह मेरी वजह से हुआ दीदी” कादम्बरी ने मुंह लटकाकर कहा।

“चलो कोई बात नहीं” सोनल ने छोटी सी मुस्कान देते हुए कहा, “अगली बार से ध्यान रखना कि विस्फोटक का धुंआ समाप्त होने के बाद ही उसके पास जाएं।”

“जरूर” कादम्बरी ने हाथ और जोर से दबा दिया।

 

सुबह होते ही कादम्बरी और सोनल शाही बगीचे मे आ गए थे। दोनों अपने शिकार को देखने के लिए उत्साहित थे। युवराज कुछ ही समय मे आ रहे होंगे।

“दीदी! भैया कहां रह गए?” कादम्बरी अधिक धैर्य नहीं रख पाती थी।

अपने हाथों से चमेली की एक पतली डाल को पकड़कर हिलाते हुए सोनल ने जबाब दिया, “आ ही रहा होगा।”

पत्तियों पर जमी ओंस की बूंदे बारिश जैसे कादम्बरी पर गिरी तो वह झट से पेड़ की छाया से बाहर आ गई, “दीदी! ये क्या करती रहतीं आप?”

“आनंद कादम्बरी! आनंद!” सोनल टहलते हुए बोली, “केवल युद्ध के मैदान पर जाना या शस्त्रों का अभ्यास करना ही जरूरी नहीं है, यह भी जरूरी है। इसमें भी आनंद मिलता है।”

“हां पर आप आनंद का बहाना करके मुझे भिगा रहीं हैं” कादम्बरी ने मुंह सिकोड़ा तो सोनल हंस पड़ी।

“ये देखो भैया आ गए” कादम्बरी ने प्रसन्नता से इशारा किया।

सफेद धोती लपेटे युवराज सुलभ अपने चार सेवकों के साथ बड़े ही राजसी ठाठ मे चले आ रहे थे। कमर मे तलवार, चेहरे पर रौनक, लम्बा कद, गठीला गोरा शरीर और चाल ऐसी जैसे अभी-अभी राज्याभिषेक कराए आ रहें हैं। आते ही उन्होने झुककर सोनल के पैर छुए।

“आयुष्मान भव!” सोनल ने गर्व से आशीर्वाद दिया।

पीछे खड़ी कादम्बरी जोर से हंस दी और अपने मुंह पर ऐसे उंगली रख ली जैसे बहुत अधिक गम्भीर बनना चाह रही।

“बहुत शैतान हो गई हो तुम” सुलभ ने उसकी नाक पकड़ के नोंच ली।

“कहां है वो?” सोनल ने रास्ता देखते हुए कहा।

“आ रहा है पर उस रास्ते से नहीं जिसपर आप देख रहीं” सुलभ ने बगीचे की दीवार की तरफ इशारा किया। “छोटे उस्ताद” उसने ताली बजाई और दीवार के पार से हिरण कूदकर बगीचे मे आ गया।

“वाह” कादम्बरी दौड़ी लेकिन उसको आता देख हिरण और जोर से भागा। पूरे बगीचे मे दोनों राजकुमारियों और युवराज की दौड़ उस हिरण से होती रही तब तक, जब तक सोनल ने उसे पकड़ नहीं लिया।

“राजकुमारी! युवराज!” सेविका ने तेजी से आते हुए सिर झुकाया।

हाथों मे हिरण की रस्सी पकड़े सोनल ने पूछा, “क्या बात है?”

“महराज ने आप दोनों को तत्काल बुलाया है”

“कुछ जरूरी बात है क्या?” सोनल ने सुलभ की ओर देखा।

“क्या पता” सुलभ ने कंधे हिला दिए।

 

 

पंद्रह दिनों मे ही सभी राज्यों मे यह खबर फैल गई कि अंतरापुर की राजकुमारी सोनल का स्वयंवर रचा गया है। खबर यह भी फैली कि राजकुमारी ने स्वयं शर्त रखी है। पूरे राज्य मे तैयारियां होने लगीं। सराय वाले, धर्मशाला वाले, घोड़ागाड़ी, बैलगाड़ी चलाने वाले, खाने-पीने की दूकान लगाने वालों के लिए तो जैसे त्यौहार हो गया था। आर्यावर्त के लगभग सभी राज्यों के राजा-राजकुमार आएंगे ऐसी खबर फैली थी। तैयारियों के लिए महीनों का समय था किंतु महीने भी कम पड़ते जान पड़ते थे। ऐसे समय जब सभी ओर व्यस्तता थी, मछुवारों का एक सरदार अपने दो दोस्तों के साथ गोदावरी के किनारे उसके तट पर लेटा मजे से मिठाइयां खा रहा था।

अंगद- कुछ भी कहो मुनीर लेकिन तवेशर की मां के हाथ की मिठाई का कोई जबाब नहीं।

उसने एक पेड़ा मुंह के अंदर रख लिया।

“बिल्कुल सही कहा तुमने उस्ताद” मुनीर ने कुछ जोर की सहमति दिखाई और एक और पेड़ा अंदर किया।

तवेशर जमीन मे पड़ा रहा। “तुम लोग भी कैसे दोस्त हो?” उसने आंख बंद रखकर कहा, “मैं इतनी दूर से आया हूं और बजाए मेरा हाल पूंछने के तुम लोग मिठाइयों पर टूट पड़े” वह लेटा ही रहा।

“अरे तुमसे पहले हमें मां की याद आती है तभी तो पहले मिठाई पर ध्यान गया” अंगद ने उसके बाजुओं मे चुटकी काट ली।

“आह!” तवेशर झटके से उठ गया, “क्या यार अब भी चुटकी काट लेते हो”

“हां भाई जानते हैं हम कि अब तू बड़ा हो गया है। क्यों उस्ताद?” मुनीर ने अंगद की सहमति मांगी।

“हां-हां बिल्कुल!” अंगद ने हाथ हिलाते हुए कहा, “अब हमारा दोस्त सेना मे ऊंचे पद पर पहुंच गया है। अब तो इसका मान बहुत बढ़ गया है।”

तवेशर ने एक पेड़ा उठाते हुए कहा, “तुम लोग सुधर नहीं सकते हो। चिढ़ाना ऐसे चालू रहता है जैसे मैं इसीलिए आता हूं।”

तीनों दोस्त हंस पड़े।

“वैसे तुम लोगों को यह नहीं पता कि आर्यावर्त मे इस समय किस चीज की चर्चा हो रही है” तवेशर ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा।

“क्यों? क्या इस समय कुछ महत्वपूर्ण चल रहा?” अंगद ने पानी पीकर पूछा।

“हां बिल्कुल” तवेशर ने मजाकिया चेहरा बनाते हुए कहा। उसे पता था कि ये बात कितनी असरदार है यहां के लिए, “राजकुमारी सोनल का स्वयंवर हो रहा है”

दोनों की नजरें अंगद पर टिक गईं जिसके भाव नाटकीय ढंग से सामान्य से आश्चर्य, प्रसन्न, उदासीन और फिर चिंतित हुए जिसे उसने सामान्य दिखाने की पुनः चेष्टा की।

“अरे छोड़ो भी ये शांत रहना” तवेशर ने उसके पैरों पर हाथ मारा, “हम जानते हैं तेरे मन की बात।”

एक क्षण मे अंगद ने नाटकीय भाव से स्वयं को मुक्त किया और स्वाभाविक हुआ। कुछ पुरानी स्मृतियों को याद करके मुस्कान से लाल होता वह लेट गया, “सोनल!” आवाज हृदय से आई थी।

“अरे!” मुनीर आरोही स्वर मे बोला, “यह तो मगन हो गया” वह भी बगल मे लेट गया।

“हां वह सब तो ठीक है लेकिन उसका स्वयंवर है” तवेशर ने बैठे-बैठे ही कहा।

“तो तवेशर” मुनीर ने प्रश्न किया, “राजकुमारी के स्वयंवर से पूरे आर्यावर्त मे चहल-पहल क्यों होगी?

तवेशर ने अपने ज्ञान का कोश खोला, “तुम कुछ जानते भी हो भला? मछली पकड़ो दोनों बस।”

“तो तुम्हीं बता दो महान ज्ञान देवता।”

“देखो!” तवेशर ने शुरु किया, “अंतराभूमि की वर्तमान स्थिति बहुत ही बेहतरीन है। युवराज सुलभ के नए सैन्य अभियानों से राज्य की सीमा गोदावरी तक आ गई है यानी अब हम उत्तर और दक्षिण के लिए अच्छा पुल बन गए हैं। पश्चिम और दक्षिण का समुद्र भी हमारे लिए समृद्धि ला रहा। पूर्व के कुछ क्षेत्र और गोदावरी का तटीय मैदान उर्वरता मे सहायक है। बीच की पहाड़ियों की बहुमूल्य सम्पदा जो हमें प्राप्त हो रही, इन सबसे हम इस समय उत्तर के कई बड़े राज्यों को भी टक्कर देने मे समर्थ हो चुके हैं।”

“वाह ये तो बहुत ही बढ़िया है। पर इससे तो युवराज का विवाह होना चाहिए, राजकुमारी का क्यों?” मुनीर ने माथे को पोंछते हुए पूछा।

“पहली बात तो यह कि राजकुमारी बड़ी हैं लेकिन यह उतना महत्वपूर्ण नहीं। बात यह है कि राजकुमारी के सौंदर्य से अधिक उनके युद्ध कौशल और बुद्धिमत्ता की चर्चा है। पिछले चार वर्षों मे राजकुमारी ने सात विद्रोह, चार अंतर्राज्यीय युद्ध और तेइस समुद्री अभियान किए हैं जिनमे प्रत्येक मे उन्हें जीत मिली है।”

“क्या? तेइस!” अंगद चौंक कर बैठ गया।

मुनीर और वह दोनों जानते थे कि एक बार मे ही उनके पसीने छूट गए थे इस बार।”

“तो!” तवेशर ने गर्व से छाती चौड़ी की। राजकुमारी के शौर्य का वर्णन उसके लिए भी गौरवशाली प्रतीत हो रहा था, “समुद्री डाकू राजकुमारी के नाम से कांपते हैं।”

“लेकिन वो समुद्र मे क्यों जाती हैं?” मुनीर ने प्रश्न किया।

“अपना शौक पूरा करने” अंगद ने जबाब दिया, “मै भी उन्हें एक बार अपने साथ ले जा चुका हूं।”

“अब तक यह शौक लगता था पर अब नहीं” तवेशर ने तर्क दिया।

“क्यों?” अंगद ने आश्चर्य किया, “मैनें स्वयं उनको घुमाया है। सिर्फ यात्रा किया उन्होनें।”

“हां ऐसा कहा जाता था किंतु स्वयंवर की शर्त सुनोगे तो तुम्हें भी विश्वास हो जाएगा कि सच्चाई क्या है?”

“क्यों ऐसी क्या सच्चाई है” अंगद ने मुनीर के चेहरे पर एक लहर डालते हुए तवेशर की तरफ देखा।


कहानी जारी रहेगी....


पढ़ें अगला भाग- अनोखी मछली (भाग 5)


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