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नीलिमा: एक वैश्या से प्रेम । सच्चे प्यार की लव स्टोरी A Short Love Story in hindi । kahani (love story), short story, love story in hindi । रोमांच । The Romanch

नीलिमा

 (प्रेम कहानी)

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नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच मे




आज फिर नीलिमा अरविंद के घर आयी थी। लगभग एक घंटे मे उसने काम खतम किया और पैसे लिये। लौटते वक़्त एक पल भर को रुकी और घूमी और फिर कुछ शिकायती अंदाज मे कहा,”क्या साहब क्यों अपना पैसा हम लौंडियों पर बर्बाद करते हो? कहा था आपसे पर आप हो कि मानते ही नही,बार-बार बुला लेते हो।“
अरविंद के सपाट चेहरे पर चिरपरिचित सी मुस्कान आ गयी।
“आप बस मुस्कुराइये।“ उसका भाव और अधिक शिकायती था।
“तुम अपने एक ग्राहक को क्यों कम करना चाहती हो।“
“अरे हम लोग उन लोगों की रातें रंगीन करते हैं जिनकी भूख उनके घर मे पूरी नही होती पर आप तो जवान हैं शादी काहे नही कर लेते?”
“अरे महारानी अब यहीं बातें करोगी या जाओगी अपने किसी और ग्राहक के पास।“
नीलिमा अपनी तेज चाल मे उसके कमरे से निकल गयी। आज उसने हरी चमकीली साड़ी पहनी थी, उसके होठों पर गहरी लाल लिपस्टिक और गालों पर गुलाबी पन था फिर भी चेहरे की झाइयां, रूखापन और गालों, कान और गले पर काटने के निशान छिपे ना थे।

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अरविंद के हृदय मे गहरा कष्ट होता था, उसके शरीर पर काटने के निशान देखकर। उसे उन लोगों पर बहुत गुस्सा आता था जो पैसे देने के बाद वेश्या के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते थे। उसके हिसाब से लोगों को वेश्याओं के साथ भी प्यार और कायदे से पेश आना चाहिये। शायद उसका स्वभाव था थोड़ा दयालु या समय ने उसे दर्द की परिभाषा सिखा दी थी।
अरविंद सत्ताईस साल का एक युवक था जो बैंक में काम करता था। अभी चार महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी। शादी के पांच दिन बाद ही माता-पिता और पत्नी के साथ जा रहा था कि कार के साथ दुर्घटना हो गयी। समय का भयानक खेल तो देखो कि माता-पिता और पत्नी तीनों मारे गये किंतु ये बच गया। गम व अकेलेपन का दुष्परिणाम ये हुआ कि दर्द और नशा यही जीवन मे बचे। हर शाम को काम से लौटकर वह शराब के नशे मे डूब जाता था। शराब के साथ-साथ वह वेश्याओं को भी बुलाने लगा और बस उसकी सत्ताईस साल की जिंदगी सारे संघर्षों से हर दिन हारने लगी।
बिस्तर पर लेटे-लेटे वह उस दिन को याद कर रहा था जब उसके एक दोस्त ने किसी वेश्या की खूब तारीफ की और उसे उसका नम्बर दिया। उसी ने कहा था कि ये बहुत खूबसूरत है और उमर भी अभी इक्कीस या बाईस साल है।

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शाम होते ही वह घर पर आ गया था और एक बोतल खत्म भी कर चुका था कि दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर वह अंदर आयी। ये लोग अपने ऊपर सौंदर्य के संसाधनों का खूब उपयोग करते थे जो अरविंद के लिये इतने दिनों मे सामान्य हो चुका था। शायद इस धंधे का ही प्रभाव था कि आते ही उसने बड़े ही धाकड़ स्वर मे कहा, “ए साहब अपना रेट हज़ार रुपया घंटा है एक भी कम नही और पहले पैसा दो फिर मजे लेना।“
अरविंद के लिये ये सामान्य हो चुका था अब। उसने पैसे बढ़ाये जिसे उसने अपने बैग मे रखा। पैसे रखकर वह खुद अपनी साड़ी का पल्लू गिराकर बोली।“आप उतारोगे या मै खुद उतारूं?
एक पल मे अरविंद ने उसे अपने ऊपर खीच लिया और वह बिना किसी विरोध के अरविंद की बाहों मे चली गयी।खुद से चिपकाकर जल्दी जल्दी वह उसे चूमने लगा और साथ ही साथ उसके कोमल अंगों को टटोलने लगा। फिर उसने उसके सारे कपड़े निकाल दिये और बिस्तर पर लिटाकर संसार का सबसे पुराना और हर जीव द्वारा खेले जाने वाला खेल शुरु कर दिया। तूफान केवल अरविंद के शरीर मे ही था वह तो बस अपने धंधे की मजबूरी के धक्कों की वजह से हिल रही थी। आधे घंटे के उस  तूफान के बाद अरविंद निढाल होकर पड़ा था जबकि वह अपने किसी और ग्राहक के पास पहुंचने के लिये निकल रही थी।
कमरे के किनारे पहुंची ही थी कि दीवार पर लगी एक खूबसूरत तस्वीर देखकर रुक गयी। “ए साहब ई औरत कौन है और इनपर तो हार चढ़ा है?” और फिर जबाब भी उसके कुछ बगल ही मिल गया। लाल जोड़े मे वही औरत हाथों मे वरमाला लिये और उसके सामने यही साहब काले सूट मे। “ओ माई! ये तो आपकी बीवी है पर ये हार।“
अरविंद की सारी थकावट सारा नशा सब दूर हो गया था। उसकी आंखें बस नीलिमा को घूर रही थी। “पैसा मिल गया ना तुमको तो यहां क्यों खड़ी हो? जाओ यहां से।“
“पर।“ नीलिमा ने कुछ कहना चाहा।
“क्या पर? वेश्या हो और वही बन कर रहो। बीवी बनने की कोशिश ना करो।“ उसकी आवाज कुछ तेज थी।
वह शांत हो गयी। उसकी भावशून्य आंखें अब कुछ नम थी। वह वहीं पर खड़ी रही। एक पल मे अरविंद को गलती का एहसास हुआ और वह आगे आया।“सॉरी, मुझे चिल्लाना नही चाहिये था।“
उसकी सजल आंखो से पहला मोती बाहर आया तो पीड़ा अरविंद के हृदय मे हुई और उसने आगे आकर उसको गले से लगा लिया। सम्पूर्ण वातावरण परिवर्तित हो गया था जहां कुछ क्षण पहले मादकता व काम का प्रभुत्व था वहां अब करुणा आ चुकी थी। लगभग एक मिनट वे आलिंगन मे रहे जिसके बाद नीलिमा खुद को छुड़ाकर वहां से चली गयी।

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अरविंद के लिये यह घटना अप्रत्याशित थी। वेश्याएं स्वभाव से मजबूत होती हैं वे बहुत सहती है और कभी नही रोती। परंतु ये कुछ अलग थी। बिस्तर पर लेटे लेटे वह उसी के विषय मे सोच रहा था।
उस दिन के बाद अरविंद ने कई बार उसे बुलाया। पहले तो वह आयी ही नही फिर आयी तो सीधे काम पे ही लग गई। जितनी जल्दी हुआ उतनी जल्दी निकल ले। ना कोई बातचीत ना हसी ठिठोली।
इस दौरान लगभग हर चौथे दिन वह आने लगी और फिर धीरे धीरे वह सामान्य हो गयी किंतु बहुत ज्यादा बातचीत नही करती थी पर हां खुद को ना बुलाने को कई बार कह चुकी थी और साथ मे शादी करने की सलाह भी दे चुकी थी।
पहले दिन के बाद से अरविंद के अंदर उसके साथ रति करने की इच्छा समाप्त हो चुकी थी। वह अब उसके साथ बैठकर बात करना चाहता था, उसे समझना चाहता था, खुद को समझाना चाहता था। अजीब से भाव आने लगे थे उसके अंदर। अजीब से काम करता था जो पहले उसको नही करने की इच्छा होती थी। वह घर को उसके आने के पहले ही साफ करता, शराब नही पीता कम से कम उसके सामने, उससे ज्यादा बात करता, साथ मे खाने को पूछता भले वह हर बार इंकार करती। शायद वह प्रेम करने लगा था उससे...शायद।
                                      
(कहानी जारी रहेगी)

नीलिमा भाग 2

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