नीलिमा:एक वेश्या से प्रेम (भाग 2) | सच्चे प्यार की लव स्टोरी A Short Love Story in Hindi | Kahani, Love Story, Short Love Story, Story in hindi | रोमांच । The Romanch
नीलिमा (भाग 2)
(प्रेम कहानी)
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नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है हर्ष वर्धन सिंह और आप आए हैं रोमांच मे।
अरविंद के भीतर नीलिमा के लिये
मोहब्बत बढती ही जा रही थी पर वह व्यक्त नही कर पा रहा था। वह उसका साथ चाहता था
किंतु वह तो एक घंटे के लिये आती और फिर काम होते ही निकल लेती। अरविंद को ना
चाहते हुए भी उसके साथ सम्बंध बनाना पड़ रहा था। वह अपने मन की बात किसी को नही
बताता था क्योंकि उसे लगता कि सब क्या कहेंगे।
“अरे अरविंद भाई! ऐसी भी क्या मोहब्बत जो वेश्या
ही पसंद आयी।“ “अब जब उसके जिस्म का मजा ले ही चुके हो तो शादी करके क्या करोगे।“
“हां भाई शादी कर लो अभी तो पैसे देने पड़ते हैं हर बार, फिर
तो खुद का माल हो जायेगी।“
वह कांप जाता था ये सब सोचकर
पर उसके मन का ये मुख्य डर नही था। उसे तो डर लगता था कि कहीं उसने इंकार कर दिया
तो क्या होगा।
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इस शनिवार उसने काफी सोचा और
फिर शाम को उसने नीलिमा को फोन किया,” हैलो नीलिमा! कल रविवार है छुट्टी का दिन तो क्या तुम पूरे चौबीस घंटे के
लिये आ सकती हो मेरे घर्।“
नीलिमा जोरों से हसी, “क्या साहब इतनी भी खूबसूरत नही हूं मै।“
अरविंद थोड़ा सा व्यथित हो गया, “बताओ आ सकती हो?”
“हां ठीक है कुछ बुकिंग ली थी
पर आप इतने बड़े ग्राहक हो हमारे तो उनको छोड़ देती हूं।“
“अरे तुम चिंता मत करो मै उन
सबके पैसे दे दूंगा तुमको।“
अरविंद अत्यधिक उत्साहित था।
उसने सारे घर को साफ किया, चीजें सही से रखी और अगले दिन के खाने के लिये अच्छी व्यवस्था कर ली। ठीक
आठ बजे दरवाजे की घंटी बजी। वह दौड़कर दरवाजा खोलने गया और फिर ठिठक कर खड़ा हो गया
उस कयामत को देखकर।
पीले टॉप और जींस मे सौंदर्य
की देवी खड़ी थी। आज कोई गहरी लिपस्टिक नही बस एक हल्की गुलाबी लकीर सी खींची गयी
थी। बालों को सलीके से बांधा था और माथे पर छोटी सी एक काली बिंदी लगायी थी। ये
वही शरीर था जिसके हर एक तिल को अरविंद ने देखा था किंतु ये उसका प्रेम था जो उसके
सौंदर्य की वंदना कर रहा था और प्रेम को आवृत्ति से कोई मतलब नही होता, वह तो चिरंजीवी होता है, शाश्वत होता है और आज उसका प्रेम उसके समक्ष खड़ा था बिल्कुल
उसके समक्ष|
अपना हाथ आगे बढ़ाकर अरविंद ने उसे घर मे बुलाया
और वह उसके हाथ मे हाथ रखे मधुर मुस्कान के साथ आयी। आज उसके अधरों पर भी उल्लास
का एक दीप अपनी लौ बिखेर रहा था। घर के हर एक कोने को सजा रखा था उसने। नीलिमा ने
हसते हुए पूछा, “आज आपका जन्मदिन
है क्या?”
“नही जन्मदिन तो नही है पर ये
जरूर कह सकती हो कि त्यौहार जरूर है, आज तुम पूरे दिन के लिये आयी हो।“
“अच्छा तो आज आपको बड़ी वाली
सुहागरात मनानी है।“
अरविंद एक पल के लिये बस उसे
निहारता रहा और फिर यकायक बोला, “ये सब छोड़ो ये बताओ कि एक दिन के कितने पैसे लोगी?”
“मै क्या सोच रही थी कि आज मै
पैसे नही लेती हूं, वो क्या है इतने दिन मे आपसे कुछ दोस्ती सी हो गयी है तो आज एक दिन
दोस्ती के नाम।“
उसकी रगों मे रोमांच दौड़ गया।
वह बस इसे अपने हृदय से लगाना ही चाहता था,”शायद इसके मन मे मेरे लिये प्रेम का कोई दीप जल गया हो। अरे
नही ये शायद ये बस ऐसे ही कह रही है। अगर तूने ज्यादा जल्दी की तो मामला बिगड़ सकता
है।“
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अरविंद की वैचारिक यात्रा
अनवरत चल रही थी कि उसे दूर से आती एक आवाज सुनाई दी और फिर वो वर्तमान मे लौटा।
“ए साहब कहाँ खो गये? तबियत तो ठीक है ना?”
हड़बड़ाकर उसने हां कहा और फिर
खुद को सम्भाला, “नीलिमा अगर आज
तुम पैसे नही लोगी तो मै सोच रहा था कि आज हम सम्बंध ना बनाये।“ उसके स्वरों मे भय
का पुट था।
“ये आप क्या कह रहें है? आपने मुझे किसलिये बुलाया है?”
अरविंद के शरीर मे एक झन्नाहट
हुई, फिर खुद को
सम्भालकर उसने कहा,”मेरा कहने का मतलब था कि अब हम पूरे दिन एक ही कार्य तो नही कर सकते ना तो
हम पहले बातें करते है कुछ खाते पीते है, फिर बाद मे ये सब करेंगे।“ उसका लहजा बात को सम्भालना चाहता
था फिर भी उसमे घबराहट स्पष्ट थी।
“हां ये ठीक है। तो चलिये आज
कुछ बनाते हैं।“
सुकून की एक लम्बी सांस खीचकर
उसने हाथ बढ़ाया तो नीलिमा ने अपना हाथ उसके हाथों मे दे दिया और फिर वे साथ मे
किचेन की तरफ बढ़ गये।
“तुम कुछ बनाना चाहती हो या मै
बनाऊं?” अरविंद ने स्वयं
को सामान्य रखते हुए पूछा। उसने इतने दिनों मे हज़ारों बार अलग अलग स्रोतों से यह
जानने की कोशिश की थी कि किसी लड़की के हृदय मे प्रेम कैसे उत्पन्न किया जाये और
उसे जो सलाह अपेक्षाकृत सभी ने दी वह यही थी कि लड़की को जानो कि उसे क्या अच्छा
लगता है और क्या नही फिर उसी के अनुसार कार्य करो। उसको सम्मान और महत्व दो तब वह
निश्चित रूप से तुम्हारी बातों को सुनेगी और फिर प्रेम उत्पन्न होगा।
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इतना सब जानने के बाद भी वह डर
रहा था कि कहीं वह सही से कुछ ना कर पाया तो? कहीं वह गुस्सा हो गयी और चली गयी तो? वह असमंजस मे था इसीलिये उसने हर चीज मे उसकी इच्छा पूछने का
मन बनाया।
“मै आज बनाती हूं आप बस देखिये।“
“तुमको खाना बनाना आता है?” वह हर एक बात में डर रहा था।
“हां हमारी अम्मा ने हमें सिखाया
था।“ उसने कहा पर एकदम से चुप हो गयी
पहली बार उसने अपने बारे मे कुछ
कहा था। अरविंद और जानना चाह रहा था पर कैसे पूछे ये हिम्मत नही कर पा रहा था।
साहस करके उसने बस इतना कहा, “बनाने क्या जा रही तुम अभी?”
ये उसका सबसे सही प्रश्न था इस
दशा मे ऐसा उसको लगा क्योंकि इसके बाद नीलिमा भी किसी अंजानी उलझन से बाहर आयी
प्रतीत हुई।
“अभी पहले कचौड़ियां बना रही हूं।
खाना बाद मे बना लेंगे।“
“हां ठीक है। चाय मै बना लेता
हूं इस तरफ उसने चाय का बर्तन उठाते हुए कहा।
“नही आप नही, आज तो मै ही बनाउंगी सब कुछ्।“ उसकी इस बात मे
जैसे कुछ अधिकार था। अरविंद के चेहरे पर चौड़ी मुस्कुराहट आ गयी।
“आप हर चीज पर मुस्कुराने क्यों
लगते हैं?” वह जैसे डांट
रही थी।
“तुम मेरी मां के जैसे व्यवहार
कर रही हो। वो भी मुझको ऐसे ही डांटती थी।“
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एक क्षण के लिये ऐसा लगा जैसे वह
इस विषय पर बात नही करना चाहती और अधिक किंतु उसके बाद उसने बड़े ही शांत स्वर मे
पूछ, “आप उन सभी को बहुत याद करते
होंगे है ना?”
वो भय,वो घबराहट,वो एक पल का
उत्साह,वो सब जैसे रुक गया था नीलिमा के इस प्रश्न के बाद।
उसने बड़े ही शांत ढंग से उत्तर
दिया,”हां।“
“तो ये सब हुआ कैसे?” नीलिमा जैसे आज उसे जानना चाहती थी।
अरविंद के चेहरा अब भावविहीन था।
उसने एक पल तक मौन रखा और फिर कहना प्रारम्भ किया,
“वह हमारी शादी के बाद का पांचवा
दिन था और हम गांव के लिये निकले थे। मां की कोई मान्यता थी जिसको पूरा करना था।
हम आधे रास्ते पर ही पहुंचे थे कि पीछे से एक कार ने टक्कर मार दी। उसके धक्के से
हमारी गाड़ी बस हल्का सा बढ़ी थी कि सामने से आता एक ट्रक उसको बचाने मे मेरी गाड़ी
से टकरा गया और बस सब खत्म हो गया।“
किचेन का पूरा वातावरण गर्म हो
चुका था। उसने अपनी बात जारी रखी।
“जब मेरी आंख खुली तो मै अस्पताल
मे था। थोड़े ही समय मे मुझे पता चला कि मै चार दिन तक वहां था। मेरे ससुराल वालों
ने मेरे माता-पिता और पत्नी का अंतिम संस्कार कर दिया था। मै उन्हे आखिरी बार देख
भी नही पाया। मै अस्पताल मे और दस दिन रहा जिसके बाद मै बाहर आया और फिर तब से इसी
तरह हूं।“
किचेन मे खड़े दोनो लोगों की आंखो
मे आंसू थे। कुछ समय तक वहां खामोशी रही और फिर वह धीरे से बोला, “जिंदगी कभी बहुत
मेहरबान नही होती।“
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“हां जिंदगी बहुत मेहरबान नही
होती। हम भी दोनों बहनें अपनी मां के साथ रहते थे जब हमारे बापू कच्ची दारू के नशे
मे एक दिन मर गये। हम फिर भी कैसे भी जी रहे थे कि एक दिन मां बेहोश हो गयी।
डॉक्टर ने बताया कि उनके फेफड़ो मे कफ जम गया है जिसको जल्द ही नही निकाला गया तो
पूरे फेफड़े को जाम कर देगा। बहुत पैसे नही मांगे थे उन लोगों ने बस पच्चीस हजार ही
मांगे थे जिसमे से पांच हमने जमा भी कर दिया था बस और बीस नही हो पा रहे थे। दो
दिन का समय मिला था हमे। मैं छोटी को वही रहने को कहकर पैसे के लिये निकली पर
अस्पताल से बाहर आते ही मेरे कदम रुक गये। कहां जाती कोई तो नही था जो मदद करता।
फिर एकदम से खयाल आया उस फैक्ट्री का जहां बापू काम करते थे। वहां के कुछ लोग हमे
जानते थे। वहां पहुंची तो पता चला कि मालिक दो दिन मे आयेंगे। मदद के लिये उनके
मुंशी से मिली तो वही हुआ जिसका डर जवान लड़कीको हमेशा रहता है। उसने पैसे रखकर
मुझे कपड़े उतारने को कहा। मैंने हाथ जोड़कर उनसे विनती की तो उन्होने कहा,”देख लड़की तुझे बीस हज़ार की जरूरत है वो भी दो
दिन बाद तो अगर तू तब तक मेरे पास मेरी बीवी की तरह रहेगी तो तुझे दूंगा। मेरे पास
यही एक रास्ता बचा था। आंसुओं के सैलाब को मजबूरी के पहाड़ से छिपाकर मैंने अपना
दुपट्टा नीचे गिरा दिया।
अरविंद की आंखो मे आंसुओं के साथ
साथ क्रोध भी दहल रहा था। उसके मुहं से बस इतना निकला, “तुम मुझे केवल उस तक ले चलो मै उसको बताउंगा
कि मजबूरी का फायदा उठाने का क्या अंजाम होता है।“
नीलिमा का करुण स्वर जारी रहा, “आपको वह करने की जरूरत नही क्योकिं उनके
मालिक एक दिन पहले ही आ गये और मुझको देखकर वो सब जान गये और फिर उस मुंशी को
उन्होने पीट कर निकाल दिया। वो मेरे पिता के किसी एहसान के बारे मे भी बात कर रहे
थे। और फिर उन्होनें मुझे पैसे दिये जिसे मै अस्पताल लेकर गयी पर शायद पैसे
पर्याप्त नही थे। मुझे लगा था कि अब सब अच्छा होगा पर नही ये सबसे बुरा था। मेरी
मां के दोनो फेफड़े बुरी तरह जम चुके थे और वो नही बच सकी। उनके जाने के बाद तो
छोटी की सारी जिम्मेदारी मेरी थी और मुझे पैसे भी कमाने थे और फिर मिली एक औरत
जिसने मुझे बताया तरीका रात भर मे पैसे कमाने का और फिर मै इस धंधे मे आ गयी।“
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उसकी आंखो से आंसू लगातार बह रहे
थे। अरविंद ने उसे अपने गले से लगा लिया। प्रेम की भावाभिव्यक्ति के लिये उचित था
ये, उसने खुद से चिपकाकर उसके
सिर को चूमा और फिर ना रोओ ऐसा कहकर उंगलियो से आंसू पोछे। पुनः उसने उसे खुद से
चिपका लिया और ऐसे ही थमे रहे वे दोनों एक दूसरे पर कुछ मिनट तक और फिर अलग हुए।
नीलिमा की हथेलियों को अब भी अरविंद ने थाम रखा था अपनी हथेलियों मे और फिर उन्होने
एक दूसरे की आंखो मे देखा।
दोनो ही अब एक दूसरे मे भाव खोज
रहे थे, एक दूसरे को समझ
रहे थे, एक दूसरे मे सहारा खोज रहे थे,
शायद वे एक दूसरे मे प्रेम पाना चाह रहे थे। ये प्रेम का वो दौर था जहां सोच
समाप्त हो जाती है, जहां कोई योजना काम नही आती, जहां छल या चाल का कोई स्थान नही होता, जहां बस वो
एक दूसरे को देख रहे होते हैं, एक दूसरे मे खुद को पाना चाह
रहे होते हैं, एक दूसरे मे मिल जाना चाहते हैं और फिर वे
थोड़ा करीब आये और उस प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के माथे पर अपने प्रेम का एक चुम्बन
दिया जिसे उसकी प्रेयसी ने आंखे बंद करके संतुष्टि के भाव से स्वीकार किया। शब्दों
की महत्ता समाप्त हो चुकी थी अब और ना ही उसकी आवश्यकता थी,
वे परिपूर्ण थे उस भावामृत से जिसकी उन्होने आकांक्षा की थी और जिसकी उन्हे अब
अराधना करनी थी, अब इस जीवन मे।
वह दिन उनके बीच बिना शारीरिक
सम्बंध बनाये बीता क्योंकि उन्होने प्रेम के अनुपम आत्मिक सम्बंध की स्थापना कर ली
थी अपने मन के शाश्वत मंदिर मे और वे तृप्त थे उसकी अराधना मे।
प्रेम का अर्थ ही यही होता है एक
दूसरे मे खुद को खोजना। इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि आपका अतीत कैसा था। आप
वर्तमान मे जिसे पूजते हैं वही प्रेम है। हमारे जीवन में कई सारी समस्याएं ऐसी आती
जिनसे उलझकर हम अपने प्रेम का अपमान कर देते हैं, कई बार परिस्थितियां आपको विवश कर देती हैं और
आप अपने भ्रमित होकर या क्रोधित होकर उस प्रेम को छोड़ने पर आ जाते हैं। प्रेमविवाह
होतें हैं किंतु उनमे से अधिकांश बाद मे असफल हो जाते हैं। यदि आप इन रिश्तों मे
बंधे लोगों को ध्यान से देखें या कभी टूटे हुए सम्बंधो की परिप्रेक्षा करें तो आप
यही पायेंगे कि एक समय ऐसा आया जब वे लोग एक दूसरे से ऊब गये, जब उनके अहंकार ने प्रेम पर विजय पाई, जब वे एक
दूसरे से वो पा चुके जिसपर उनका सम्बंध आधारित था यानी एक दूसरे का शरीर, उन लोगों ने छोड़ दिया एक दूसरे को। परंतु यदि दो आत्माओं का सरोकार होता
है एक दूसरे से तो वे कभी अलग नही होते पूरे जीवन भर।
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अरविंद और नीलिमा ने भी जिंदगी
का सफर एक ही जहाज से पार करने का निर्णय कर लिया। नीलिमा ने अपना वह घृणित कार्य
छोड़ दिया और अरविंद ने शराब और दूसरी गंदी लतों को दूर करने का फैसला किया और फिर
एक दिन उन लोगों ने शादी कर ली। नीलिमा की छोटी बहन जिसको उसने इस नर्क वाली
जिंदगी से बचाकर रखा था, समय आने पर
उसकी भी शादी कर दी गयी। जीवन मे समस्याएं और भी आयीं,
संघर्ष और भी आये पर कोई भी संघर्ष उन दोनों को अलग नही कर पाया। हमेशा वे दोनो एक
दूसरे की हिम्मत बढ़ाते रहे और उनका प्रेम चिरंजीवी हो गया। और हां एक बात तो रह ही
गयी, नीलिमा की बहन का भी प्रेमविवाह ही हुआ था, आपको सुनना है वह कहानी, जरूर सुनाउंगा पर आज नहीं
कभी और। तब तक आप इस कहानी को याद करके बस मुस्कुराइये।
धन्यवाद
(समाप्त)
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yyy
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