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अनोखी मछली (भाग 10) | रोमांच। Anokhi Machhali (part 10) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch

अनोखी मछली 

रोमांच। Anokhi Machhali (part 10) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch



यह कहानी हमारी कहानी अनोखी मछली का दसवां भाग है। यदि आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहां से पढ़ें।

अनोखी मछली (भाग 1)

पिछला भाग- अनोखी मछली (भाग 9)


भाग 10


दिन निकल आया था। अंगद का दल जहाज पर आ गया था। पिछली शाम से ही सोनल और अंगद अत्यधिक प्रसन्न दिखाई दे रहे थे जिस पर तवेशर और मुनीर को भी आश्चर्य हो रहा था। यद्यपि वे थोड़ा नाराज भी थे क्योंकि उन्हे बांध कर रखा गया था और बाद मे जब खोला गया तब भी उन्हें अंगद ने अपने साथ नहीं बुलाया था। मुनीर के तवेशर से कहे शब्दों के अनुसार अंगद अब बड़ा आदमी बन गया था जिसकी राजाओं, सरदारो और राजकुमारियों से दोस्ती हो गई थी और अब वह मुनीर जैसे गरीबों की उपेक्षा करना शुरु कर चुका था।

दल के सभी लोग जहाज पर चढ़ चुके थे। सरदार तवारी स्वयं आए थे। “अंगद” तवारी ने आवाज दी।

“जी सरदार!” अंगद उनके समीप गया। मन के भीतर तो उसके अंदर अपने नाना के लिए आदर था ही।

तवारी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और तट पर चलने लगे। उनके साथ-साथ अंगद को भी चलना पड़ा।

रबील कबीले के लगभग पचास लोग पीछे रह गए थे जो जहाज के लोगों से छुटपुट बातें कर रहे थे।

“ये कबीला हमारे लिए सबकुछ है अंगद” तवारी ने कबीले की दिशा मे देखते हुए कहा।

अंगद ने कुछ भी ना बोलने का निश्चय कर लिया था। उसने बस “हूं” कहा।

वे लोग और आगे गए।

“तुम कल उस पहाड़ी पर गए थे ना?” तवारी ने नहर के पार वाली पहाड़ी को देखकर कहा।

“हां! वो राजकुमारी वहां पर थीं तो उन्हीं के पास गया था” अंगद ने सावधानी से शब्दों को तौलकर कहा।

“मेरी एक बेटी थी, सुखदा। वो भी उसी पहाड़ी पर बैठी रहती थी।” तवारी ने याद करते हुए कहा।

मेरी मां वहां बैठती थी?

“वो वहां बैठी दूर समुद्र को निहारा करती थी। जैसे किसी का इंतजार कर रही हो” तवारी ने आह भरी।

“इंतजार?” अंगद ने प्रश्न बनाया।

“हां इंतजार। उसे कोंकण के किसी मूर्ख मछुवारे से प्रेम हो गया था।”

अंगद को हंसी आ गई। उसके नाना उसी के सामने उसके पिता को मूर्ख कह रहे थे और वह सुन रहा था।

“कोंकण? मतलब मेरे राज्य से?”

“हां वहीं से। वह उस पहाड़ी पर बैठकर बहुत दूर का देख लेती थी। उस मूर्ख मछुवारे ने उसी पहाड़ी पर उसके सामने अपना प्रेम प्रदर्शित किया था। उसने एक पत्थर पर ऐसा लिखा था।”

अंगद अत्यंत प्रसन्न था। जिस स्थान पर उसकी मां को उसके पिता ने प्रेम प्रस्तावित किया था वहीं पर उसने भी किया है। वह इस संयोग पर बहुत खुश था किंतु उसने अपनी खुशी छिपाई।

“फिर?” उसने पूछा।

“एक दिन वह चली गई इस कबीले को छोड़कर उसके साथ। हमारे कबीले का नियम है कि कोई भी बाहर के किसी व्यक्ति के साथ वैवाहिक सम्बंध नहीं बना सकता किंतु उसने किया इसीलिए वह इस द्वीप को छोड़कर हमेशा के लिए चली गई।”

“यह सब उस मूर्ख व्यक्ति के कारण हुआ” अंगद ने अपने पिता को मूर्ख कहने का दुस्साहस किया। उसे आनंद प्राप्त हुआ।

“तुम्हें अपने पिता को मूर्ख नहीं कहना चाहिए” तवारी ने सपाट भाव से कहा।

पल भर मे अंगद सकपका गया।

“क्या?” उसने लड़खड़ाते स्वर मे कहा।

“तुम्हारी आंखे तुम्हारी मां से मिलती हैं। बहुत अधिक अंगद।” तवारी ने उसकी आंखो को देखते हुए कहा।

अंगद हतप्रभ खड़ा था। ये पहचान गए मुझे।

“वह मछली उत्तर के एक द्वीप पर स्थित है। यहां से चार दिन की और यात्रा करो। काले पत्थर की चट्टान वाले द्वीप के किनारे वह मछली रहती है।”

अंगद इतने सारे रहस्य झेलने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। वह पीछे हट गया।

“हमारे कबीले का नियम है कि हम बाहर के लोगों से वास्ता नहीं रखते इसीलिए अब तुम्हें यहां से चले जाना चाहिए” तवारी अपने लोगों की तरफ देखकर बोला।

वह पीछे मुड़ा और जाने लगा।

“क्यों?” अंगद की आंखो मे आंसू थे। तवारी रुक गया।

“आपने नियम क्यों तोड़ा?” अंगद ने प्रश्न किया।

वह पीछे घूमा। “सुखदा के यहां से जाने मे मैंने ही मदद की थी। मेरी बेटी की खुशियां ऐसे किसी नियम से अधिक महत्वपूर्ण हैं। तुम उसको जान से अधिक प्यारे हो जिसको मै अपनी जान से ज्यादा प्यार करता हूं। जाओ तुम्हारी मंजिल जहाज पर तुम्हारा इंतजार कर रही।”

तवारी चला गया। अंगद ने जहाज की ओर देखा। सोनल छत पर खड़ी उसे देख रही थी। उसने झुककर उस जगह की मिट्टी उठाई जहां तवारी खड़ा था। उसने वह मिट्टी अपने माथे पर लगा ली।

 

रबील के दक्षिणी तट से जहाज पूर्वी छोर से होते हुए उत्तर की ओर यात्रा आरम्भ कर चुका था। मंजिल अब करीब थी। मछली अब करीब थी।  

 

चार दिन की यात्रा के बाद मुनीर को काली चट्टान दिखाई दी। “वह रही चट्टान” वह चीखा।

जहाज की छत पर खड़े होकर सभी उस दिशा मे देखने लगे। खुशी की लहर चारों ओर दौड़ गई। कुछ ही समय मे जहाज किनारे लग गया।

“आह” अंगद ने तट पर अंगड़ाई ली। तवेशर एक चट्टान पर बैठ गया और मुनीर इधर उधर पानी मे निगाह दौड़ाने लगा।

सोनल सबसे आगे अपने जहाज को देख रही थी।

“राजकुमारी जी!” तवेशर ने उठकर कहा, “अब आपका स्वप्न पूरा होने ही वाला है। अब मेरा दोस्त आपको स्वीकार है?”

सोनल के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

“अभी मछली हाथ नहीं आई है” सोनल ने कुछ सोचकर जबाब दिया।

“वो भी आ ही जाएगी जल्द ही।” मुनीर ने दूर निगाह डालकर कहा।

“पर यहां मिलेगी कैसे?” अंगद ने चिंतित स्वर मे कहा, “मछली कोई द्वीप पर तो रहेगी नहीं। हमें आसपास खोजना चाहिए।”

“तो चलो हम सभी आज बहुत दिनों बाद समुद्री लहरों मे डुब्बी मारें।” मुनीर ने जोश से कहा।

“नहीं! कहानी मे था कि सोना भोंपू बजाती थी तो मछली आ जाती थी। हम वही करेंगे” सोनल ने कहा।

जहाज से एक भोंपू लाया गया और अंगद ने उसे बजाया। पहली बार की आवाज पूरे द्वीप पर गूंजी। कुछ न हुआ। उसने कुछ चलकर दोबारा बजाया। दूर-दूर तक कोई हलचल नहीं हुई। सभी का ध्यान केंद्रित था। उसने तीसरी बार बजाया। अंगद की नजरें सोनल पर थीं जो अब कुछ व्याकुल होने लगी थी। उसने चौथी बार बजाया किंतु कहीं कोई निशान न मिला मछली का।

“क्या सच मे यही पहाड़ी थी?” मुनीर ने हताश होकर कहा।

“हां! काली चट्टान वाली पहाड़ी” अंगद ने कहा।

“पर शायद वो यहां नहीं है” तवेशर ने कहा, “शायद अब न हो?

“हां लग तो ऐसा ही रहा है” अंगद ने घूमकर कहा, “चलो जहाज पर चलकर किसी और काली चट्टान की पहाड़ी को खोजते हैं।

सोनल वहीं खड़ी समुद्र को देख रही थी। दूर पश्चिम की ओर कुछ चमक देखकर उसने ध्यान दिया। आंखो को छोटा करके उसने और अधिक देखने का प्रयत्न किया। पीले रंग की एक रोशनी धूप मे भी चमक रही थी।

“अंगद!” उसने इशारा किया। सभी ने घूमकर देखा। लहरों के बीच गोता लगाती पीले स्वर्ण रंग मे रंगी मछली चली आ रही थी। आश्चर्य और खुशी की एक लहर सभी के बीच दौड़ गई। सब के सब तुरंत दौड़कर उसे उठाना चाहते थे लेकिन अंगद ने रुकने का इशारा दिया। सोनल आगे गई। उसकी आंखो मे आंसू थे। इतने सालों का स्वप्न आज सच हो गया था। वह मछली जिसे सिर्फ कथाओं मे जीवित रखा गया था, आज प्रत्यक्ष सामने आ रही थी।

“सोना!” मछली ने तट पर तैरते हुए कहा। वह शायद अपनी पहली दोस्त सोना को खोज रही थी।

सोनल उसके पास गई किंतु मछली पीछे हट गई। “अनोखी मछली!” उसने कहा।

“सोना कहां है?” मछली ने उसकी ओर देखते हुए कहा। उसकी दाहिनी आंख कुछ अधिक चमकदार थी।

“सोना यहां नहीं है। हमने तुम्हें बुलाया है” सोनल ने उसकी ओर देखकर प्यार से कहा।

“क्यों?” मछली जोर से चीखकर बोली, “क्यों तुम इंसान मुझे शांति से रहने नहीं देना चाहते?”

“हम तुमको परेशान नहीं करेंगे। हम तुम्हारे दोस्त बनना चाहते हैं।”

“हां! तुम इंसान ऐसा ही कहते हो और क्योंकि तुम गिरगिट से भी ज्यादा अच्छे से रंग बदलना जानते हो। लेकिन अब मै सब समझती हूं। मै तुम सब को समाप्त कर दूंगी। अभी मै तुम सबको खत्म कर दूंगी।” वह पानी मे इधर उधर घूमने लगी।

तट पर खड़े लोगों को यह बहुत अजीब लग रहा था। सोनल अब भी पानी मे खड़ी थी। उसने ध्यान दिया। मछली की दाहिनी आंख अब और अधिक चमकदार होने लगी थी। उसमें बिजली जैसी आने लगी।

“नही!” सोनल चीखी, “रुक जाओ मछली!”

लेकिन मछली पानी मे घूमती रही और उसके आसपास का पानी गर्म होने लगा। उसकी आंख से बिजली बहने लगी।

“राजकुमारी!” अंगद ने सोनल को पानी से बाहर खींच लिया। मछली पानी मे ही इधर उधर उन तक पहुंचने के लिए छटपटाने लगी।

“राजकुमारी सोनल!” पीछे की तरफ से आवाज आई। सभी ने मुड़कर देखा। नावों का एक बेड़ा पूर्व की तरफ से आ रहा था। कुछ जहाज आ भी चुके थे और उनमें से एक ने राजकुमारी को आवाज दी थी।

“ये?” अंगद ने कहा।

“हां मै, मछुवारे!” उस मोटे काले आदमी ने कहा।

“ये कौन है?” सोनल ने कहा।

“लुटेरा!” अंगद ने कहा। उसने समुद्र मे एक बार इनके दल को हराया था।

“आज वैसा नहीं होगा क्योंकि आज मै और मेरे लोग तुम सबको खत्म कर देंगे।” उसने अपने दांत दिखाते हुए कहा।

जहाजों का पूरा बेड़ा आ चुका था और सामने लगभग पांच सौ लोग थे। सोनल के दल मे कुल चौंवालिस लोग ही थे। उसने युद्ध से बचने का तरीका सोचा।

“तुमको क्या चाहिए?” सोनल ने उसकी ओर देखकर कहा।

“वो!” उसने मछली की ओर इशारा किया जो अब भी पानी मे खुद को गर्म कर रही थी।

“अनोखी मछली?” अंगद ने आश्चर्य से कहा। “तुमको भी राजकुमारी का स्वयंवर जीतना है क्या?”

“हूं” उसने नकारा। “मुझे राजकुमारी से विवाह करने मे कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम लोग तो इसे पिछले कुछ महीनों से ही खोज रहे हो लेकिन मैंने इसे पाने मे अपनी जिंदगी के दस साल लगा दिए।”

“दस साल!” मुनीर एकदम से बोला किंतु फिर शांत हो गया।

“ऐसा क्या है इस मछली मे?” सोनल ने पूछा और मछली की ओर देखा जिसने अपना घूमना बंद कर दिया था और इन लोगों की बातें सुन रही थी।

“दौलत” वह बोला। “यह मछली पूरे समुद्र मे सदियों से घूम रही है। इसे समुद्री खजानों की सबसे अधिक जानकारी है। हम इसको पकड़ कर उसको खोजेंगे।”

“क्या?” अंगद ने कहा। “तभी तुमने हम मछुवारों पर हमला किया था क्योंकि तुमको हमारी मछलियों मे इस मछली की तलाश थी।”

“हां! और अब तुम लोग मरने के लिए तैयार हो जाओ”

सोनल ने देखा कि युद्ध निश्चित सा है। उसने लड़ने का फैसला किया क्योंकि बचने का कोई तरीका नहीं दिख रहा था। उसने ललकारा।

“अगर तुम लोग युद्ध करने आए तो मै तुम सबको खत्म कर दूंगी” उसने दहाड़ लगाई।

लुटेरों का सरदार हसने लगा। “तुम और मेरे इतने सैनिकों को मारोगी?”

“हां!” सोनल ने जोश से कहा। “मैंने न जाने कितने लुटेरों को खत्म किया है। आज तुम्हारी बारी है।”

वह जानती थी कि इतने कम लोगों से जिनमें कई कुशल योद्धा भी नहीं है, पांच सौ से लड़ना आसान नहीं है। किंतु उसने प्रयास करना चाहा।

“अगर तुम बिना युद्ध के लौटना चाहो तो अभी चले जाओ अन्यथा मेरे लोग तुम्हें खत्म कर देंगे”

उसने अंगद की ओर देखा। “हमें युद्ध करना है”

सभी युद्ध के लिए तैयार हो गए। पानी मे रुकी हुई मछली सब कुछ देख रही थी।


कहानी जारी रहेगी....

अगला भाग- अनोखी मछली (भाग 11)

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