अनोखी मछली (भाग 9) | रोमांच। Anokhi Machhali (part 9) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch
अनोखी मछली
रोमांच। Anokhi Machhali (part 9) | Love Story | Comical Story | Mythology | Romanch
यह कहानी हमारी कहानी अनोखी मछली का नौंंवा भाग है। यदि आपने इसका पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहां से पढ़ें।
पिछला भाग- अनोखी मछली (भाग 8)
भाग 9
तवारी के विशेष आग्रह पर अंगद और उसके सभी साथी एक
दिन के लिए रुकने को तैयार हो गए थे। सभी ने घूमने की इच्छा की थी और तवारी ने
अपने कुछ लोगों को उनके साथ घूमने भेज दिया था।
सोनल आज कुछ परेशान सी थी। उसे पता था कि अंगद बहुत
कुछ छिपा रहा है और यही सब उसे बुरा लग रहा था। मछली की खोज अब भी उतनी ही दूर थी
जितनी पहले। उसे कबीले के भीतरी हिस्से मे घूमना अच्छा नहीं लगा। वह तट की तरफ चली
गई।
तट किनारे टहलते हुए वह लहरों को देखने लगी।
दूर-दूर तक शून्य दिखाई दे रहा था। सिर्फ शून्य। उसने नजरें वापस द्वीप की ओर की।
सामने एक पहाड़ी दिखाई दे रही थी। समुद्र और द्वीप के बीच एक पहाड़ी। आगे की तरफ
द्वीप से एक नहर बहकर समुद्र मे मिल रही थी। उसने नहर पार की और पहाड़ी पर चढ़ने
लगी।
इधर अंगद कबीले मे घूमते हुए पूर्वी ओर गया। उसके
साथ प्रदु नाम का एक चौदह-पंद्रह साल का बच्चा था जो उसे जगहों के विषय मे अपनी
जानकारी दे रहा था। हर एक जगह को बताने मे उसे अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा
था यद्यपि अंगद को कुछ भी आनंद नहीं मिल रहा था।
“अब मै आपको रबील की सबसे बेहतरीन जगह पर ले
चलुंगा” प्रदु ने जोश के साथ कहा, “ये रहा हमारा कछुआ मंदिर!”
अंगद ने सामने देखा। मिट्टी की मोटी दीवारों के ऊपर
फूस का एक छप्पर है। पूरा मंदिर एक चबूतरे पर बना हुआ है जिसकी ऊंचाई मुख्य मार्ग
से एक मीटर होगी। मंदिर के चारों तरफ फूलों के पेड़ लगे थे और दायीं-बायीं दोनों
तरफ पेड़ों की एक बाग थी।
चढ़ने के लिए बनी सीढ़ियों के सहारे वह चबूतरे पर
चढ़ा। बालक उससे आगे गया जैसे स्वागत करना चाहता हो।
“ये है हमारा कछुआ मंदिर! रबील की सबसे खूबसूरत
जगह” वह चहककर बोला।
अंदर सिर्फ एक कमरा ही था जिसके पिछले हिस्से मे एक
छोटी चौकी बनी हुई थी। चौकी पर एक कछुआ था जो बाहर की ओर मुंह किए था।
अंगद पास गया। उसने ध्यान से देखा।
“यह असली नहीं है?” उसने
बालक की तरफ देखा।
“क्या अंगद भैया! आप भी ना कैसी बात करते हो? भला असली जीवित रहेगा ऐसे ही?” बालक ने शिकायती अंदाज
मे कहा।
“हां” अंगद हंसा।
“ये पत्थर का है। पूरा।” उसने बताया।
“पर इसकी आंखों को ढंक दिया गया है?” अंगद ने कछुए की आंख पर ध्यान दिया।
“हां! ये जो आंखे ऊपर हैं ये तो ऊपर से बस लगाई गयी
हैं। कहते हैं कि इस कछुए की आंख ने बहुत से पाप सोख रखे हैं और अगर ये बाहर आयीं
तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। इसीलिए पूर्वजों ने इस मूर्ति की आंख पर अलग पत्थर लगाकर
जोड़ दिया है और ऊपर वाले पत्थर पर आंख लगा दी।” प्रदु ने अपने ज्ञान के अनुसार
सर्वोत्तम तरीके से समझाया।
“अच्छा! तो यह बात है इसके पीछे” अंगद ने समझते हुए
सिर हिलाया।
“पर इसको देखकर तो ऐसा नहीं लगता फिर आपने ये कैसे
जाना?” बालक ने प्रश्न किया।
अंगद को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसको ये बात
नहीं कहनी चाहिए थी। इस द्वीप पर रहना ही खतरनाक है।
“ये तो जाहिर है यहां से” उसने बात सम्भाली, “मै मछुवारा हूं ना इसीलिए मै जानता हूं कि कछुए की आंख कितना अंदर होती
है।”
“हां! ये तो है” बालक ने कहा।
“चलिए मै आपको कुछ और भी दिखाता हूं” उसने कहा।
“नहीं!” अंगद ने झट से कहा, “तुम अभी जाओ! मुझे तट पर जाना है जहां राजकुमारी हैं। मुझे यात्रा के
विषय मे आगे की योजनाएं बनानी हैं”
“अच्छा ठीक है” बालक ने कहा जबकि अंगद इतनी ही देर
मे बाहर निकल गया।
“ये जगह रहस्यमयी नहीं खतरनाक है” चलते हुए उसने
मन मे कहा। अंजाने मे ही उससे गलती हो गई थी। उसने खुद को रबील के लोगों से दूर
रखने का सोच लिया और तट पर आ गया जहां सोनल आई थी।
उसने तट को दूर तक देखा। वह कहीं नहीं दिखी। वह आगे
बढ़कर गया किंतु राजकुमारी ना दिखाईं दी। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई।
“अच्छा!” उसने पहाड़ी की ओर देखकर कहा, “ऊपर से नजारा ले रहीं हैं आप” वह पहाड़ी की तरफ जाने लगा।
सोनल ऊपर बैठी अपार समुद्र को देखती विचारों मे खोई
थी। उसका कोमल मन दुर्बल हो रहा था और वह देवों से प्रार्थना कर रही थी कि काश इस
समय वह मछली यहां आ जाए।
“आप यहां हैं?” अंगद ने चढ़ाई
पूरी की।
सोनल ने झट से पीछे मुड़कर देखा। “अंगद” वह खड़ी हो
गई।
“दृश्य कितना अच्छा है ना” सोनल ने देखते हुए कहा।
“हां!” उसने हामी भरी।
दोनों कुछ समय तक शांत रहे।
“राजकुमारी!” अंगद ने वार्ता शुरु करना चाहा।
“हूं” सोनल समुद्र की ओर देखती रही।
“मुझसे यहां रहना नहीं हो रहा। ये लोग बहुत खतरनाक
हैं।” अंगद ने उसको देखते हुए कहा।
“और इसका कारण आप मुझे बताना नहीं चाहते” सोनल ने
मायूसी से कहा।
“नहीं! ऐसा नहीं है राजकुमारी” अंगद ने झेंपते हुए
कहा।
“तो बताइए क्या है वो बात? आखिर कौन हैं ये लोग और आपका और इनका कौन सा रहस्य है जो आप इनके साथ
अजीब महसूस कर रहे हैं।” सोनल ने जिद की।
“यहां के सरदार तवारी मेरी मां के पिता हैं” अंगद
ने रहस्य से पर्दा उठाया।
“क्या?” सोनल चौंक गई, “तुम्हारी मां इस कबीले की हैं?”
“हां। और मेरी मां यहां से गईं थीं क्योंकि यहां का
नियम है कि इस कबीले के बाहर इसके लोग विवाह नहीं कर सकते।”
“और तुम्हारी मां ने किया!” सोनल ने और अधिक जोर दिया।
“हां और इस तरह उन्होने यहां का नियम तोड़ा। नियम के
अनुसार सरदार का कर्तव्य है कि जो व्यक्ति ऐसा अपराध करे उस व्यक्ति को समाप्त कर
दे अथवा उसका त्याग कर दे। मेरी मां अपराधी हैं। मेरे पिता भी अपराधी हैं और अब मै
उनका पुत्र, मै भी अपराधी हूं इनके इस नियम का। यदि इन्हें
पता चल जाए कि मै कौन हूं तो ये मुझे जिंदा न छोड़ें। मां ने यहीं आने से मना किया
था और मै यहीं आ गया। हमें यहां से जाना ही होगा।”
“वैसे यह कोई अपराध नहीं है किंतु यदि ये लोग ऐसा
ही सोचते हैं तो तुम अब कुछ बोलो नहीं। हम
कल सुबह ही यहां से चले जाएंगे” सोनल ने उसको सांत्वना देना चाहा।
“हां वही करना है। तभी तो यहां आया हूं, ये कहने कि मछली के विषय मे कम ही बोलो क्योंकि यहां के लोग मछली के विषय
मे अजीब सा बर्ताव कर रहें हैं। उनके भावों से मैनें जान लिया कि वे कुछ कठोर हो
गए हैं इस बात को जानकर।”
“हां वो तो मै समझ गई थी उसी समय पर एक बात न समझ आयी
कि तुम्हारे पिता को यहीं की लड़की मिली प्रेम करने के लिए?” सोनल ने मजाक किया
“वो लगता है हम अनुवांशिक ही हैं ऐसे। प्रेम ऐसे
लोगों से करते हैं जहां जान जाने के बराबर मौके होते हैं। मै भी तो वैसा ही हूं”
बाल खुजाते हुए उसने समुद्र की ओर देखा।
“तो क्या मेरे पापा तुम्हें मार देंगे? तुम ये कहना चाहते हो? वो बिल्कुल नहीं मारेंगे।
मैं जानती हूं उन्हें।”
एक क्षण तक दोनों के होठों पर खामोशी रही लेकिन
दोनों के दिलों मे तूफान उठ गया। अपनी गलती का एहसास करके सोनल ने अपना चेहरा
दूसरी तरफ घुमा लिया था। उसने ये क्या कह दिया था। अभी! ये तो अभी नहीं कहना था। उसने दातों के बीच मे जीभ दबा दी।
दूसरी तरफ अंगद भी समझ गया था। उसके रोमांच ने आवाज
पाई किंतु उसने नियंत्रित रखते हुए कहा, “तो आप तैयार हो
गई हैं? मुझे लगा मुझे एकतरफा ही करना है प्रेम!”
सोनल दूसरी तरफ चेहरा किए रही।
“राजकुमारी!” अंगद ने आवाज दी, “मेरी मां ने शादी की पिताजी से तभी रबील के लोग हम सबकी जान के दुश्मन
हैं किंतु महराज क्यों होंगे जब आप तैयार नहीं मुझसे विवाह करने को?”
उसने सिर घुमाए रखा।
“अच्छा इधर देखिए तो?” अंगद की
नसों मे ऊर्जा दौड़ रही थी।
सोनल ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास
करते हुए चेहरा घुमाया किंतु उसके होठों पर मुस्कान और आंखो मे शर्म प्रत्यक्ष थी।
उसके गाल लाल हो गए थे।
हिम्मत तो नहीं हो रही थी किंतु सोनल के चेहरे को
देखते हुए अंगद ने उसके हाथों पर अपना हाथ रखा।
सोनल नीचे देख रही थी।
“राजकुमारी!” अंगद के कंठ से आवाज आई।
सोनल ने उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों से प्रेम स्पष्ट
था।
“राजकुमारी” उसने फिर से आवाज दी।
सोनल उसकी नजरों की तेजी न सह सकी और उसके गले लग
गई।
सागर की लहरों का शोर प्रेम के आलिंगन की खामोशी के
सामने फीका पड़ गया था।
कहानी जारी रहेगी..
पढ़ें अगला भाग- अनोखी मछली (भाग 10)
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